होली है भई होली है रंगों वाली होली है
चलिये खूब होमवर्क आया है और जम कर आया है इतना कि कहा जा सकता है ''मोगेम्बो खुश हुआ'' । होली मेरा मनपंसद त्यौहार है इतना कि मैं बता नहीं सकता । बचपन में भी जिस त्यौहार का मुझे वर्ष भर इंतजार रहता था वो ये ही त्यौहार होता था। और अब भी होली के छ: दिन ( हमारे यहां पर होली छ: दिन का त्यौहार होता है ) तक धींगामस्ती होती रहती है । फाग गायन में झूम कर नाचना, टेपा सम्मेलन काआयोजन करना होली हास्य समाचारों का परिशिष्ट निकालना ये वो काम हैं जो हर साल होते हैं और इस साल भी योजना हे । कल मास्टर साहब क्लास नहीं ले पाये थे क्योंकि कल बिजली विभाग ने इजाज़त नहीं दी कि कुछ करो । खैर वैसे भी होली का माहौल है और हम एक विभाग ( काफिया और रदीफ ) पूरा करके बैठे हैं सो अब होली के बाद ही हम आगे के अध्याय प्रारंभ करेंगें । संभवत: 21 को ही मेरी एक कहानी कहानी कलश पर आएगी वो भी होली पर ही है ।
चलिये अब होली के गीतों की बात करते हैं और बात करते हैं होमवर्क की । एक बात साफ हो जाए कि हम केवल काफिये को ही देखेंगें और किसी बात पर विचार नहीं करेंगें क्योंकि अभी तो हमने केवल वही सीखा है । और हां जिन भी विद्यार्थियों ने काफिये को लेकर सावधानी नहीं रखी है जो पांच काफिये होमवर्क में दिये थे वे नहीं लिये हैं तो उनकी ग़ज़लें यहां पर विचार के लिये नहीं ली जा रही हैं ये सख्ती केवल इसलिये है कि जिन लोगों ने मेहनत करके काफिये पर काम किया है उनको ऐसा नहीं लगे कि हम भी अगर किसी भी काफिये पर लिख देते तो हमे भी स्थान तो मिल ही जाता क्यों फिज़ूल में मेहनत की । और जैसा कि मैंने पहले लिखा है कि मैं केवल काफियों को ही देख रहा हूं तो ये याद रखें के अगर में नम्बर पूरे दे रहा हूं तो इसका मतलब ये नहीं है कि ग़ज़ल बहर में भी है मेरा अर्थ ये होगा कि काफिया सही है ।
- राजीव रंजन प्रसाद
- आँखों का सुर्ख रंग ये, होली तो नहीं है
तुम हो न हैं कहार, ये डोली तो नहीं है|
बस्तों को उलट लें, कि ज़ुराबों को जाँच लें
ईस्कूल में भी पिस्तल, गोली तो नहीं है।
भूखे ही भजन भगवन, करता भी मैं मगर
साँपों से लदे चंदन, रोली तो नहीं है।
वो दिल में बसा था, यही राहत रही मुझे
सडकें ही मुझपे हँसतीं, खोली तो नही है।
उसने तो तरक्की की, अंबर को छू लिया
क्या लूट सका कोई, भोली तो नहीं है।
एक लेख सामना में, एक राज बोलता था
ढोलक बजे धमाधम, पोली तो नहीं है।
'राजीव' चोर है पर, अब शोर कैसे होगा
नयनों की कोई भाषा, बोली तो नहीं है।
गुरूजी की टिप्पणी :- आपका रदीफ तो नहीं है तथा काफिया होली है । और दोनो का भली प्रकार निर्वाहन किया गया है । एक छोटी सी गुजारिश है वो ये कि होली एक उल्लास और उमंग का त्यौहार है इसमें भाव वही बनाए रखें तो अच्छा रहता है । और दूसरी बात ये कि क्या लूट सका कोई भोली तो नहीं है में बात कुछ भी समझ में नहीं आ रही है कि आप क्या कहना चाह रहे हैं । सो कटते हैं 2 नम्बर और मिलते हैं 10 में से 8 ।- रंजू गुरु जी इसको भी देखे ..और फ़िर एक साथ डांट लगाए ..मतलब इसकी गलतियां भी जरुर बताये :)
गुरूजी की टिप्पणी :- आपकी दोनों ही ग़ज़लों में काफिये कुछ और हैं सो एक तो नम्बर 10 में से 0 और आपकी ग़ज़लों को यहां लिया भी नहीं जा रहा है ।- मोहिन्दर कुमार
- पिया नहीं हैं साथ, अब के होली में
गुरूजी की टिप्पणी :- मोहिन्दर जी आपने जो काफिया लिया है वो है होली और रदीफ है में । आपने दोनों का भली प्रकार निर्वाहन किया है ( डांट का असर है ) मगर एक दोष जिसके बारे में मैंने अभी बताया नहीं है वो इस ग़ज़ल में आ रहा है और वो ये है कि आपके मिसरा उला में भी रदीफ 'में' आ रहा है जो नहीं आना चाहिये वो एक दोष होता है । मिसरा उला का अर्थ शेर की पहली पंक्ति । आपने लिखा भंग में, मौज में, ताल में तो रदीफ का प्रयोग हो गया है । खैर ये बात तो मैंने अभी तक कक्षा में बताई नहीं है सो आपको तो 10 में से 10 मिलते ही हैं ।
बाहर मची है धूम, और मैं खोली में
सखी-सहेली नाचें गायें, रंग उडायें
चुहुल और मनुहार, लगी है टोली में
रंग तरंग में, है कोई नशे के भंग में
मस्त है सारे मलंग,आज ठिठोली में
भैया भाभी,दीदी जीजा, धुत मौज में
रंगा हुआ है अंग-अंग, साडी चोली में
ढोल मंजीरे बज रहे सब लय ताल में
हवा में उडते राग, प्यार की बोली में
आयेंगे पिया जब,तब खेलूंगी होली मैं
रखे अरमां संवार, सपनों की झोली में- AMIT ARUN SAHU
- दग्ध ज्वाला - सी उठती है होली
जैसे किसी ने मन की गांठ हो खोली
जल जाएँ आज, द्वेष मन के सारे
गालियों मे भी खनके, मीठी-सी बोली
सजती है दीवाली में जमीं पर
आज सजेंगी चेहरे पर रंगोली
दुश्मन से भी आज न होंगी दुश्मनी
भरेंगें प्रेम से हम ,सबकी झोली
हिंदुओंकी खुशी मे मुस्लिम भी आएं
निकलेंगी फिर भाईचारे की टोली
होली कहती है, हम सब मे प्यार है
झूठी है जो, नेताओं ने नफरतें है घोली- गुरूजी की टिप्पणी :- सही काफिये हैं इस में आपके 2 में से 2 नम्बर इसलिये क्योंकि आपकी हर ग़ज़ल को 2 नम्बर देना है ।
- २} दूसरी गजल
- आज प्रेम के रंगों से पिचकारी भरी है
मन ने फिर आज बच्चों सी किलकारी भरी है
कितनी उमंगें, कितने रंग है, होली में
आज ह्रदय में आकांक्षाएँ बड़ी प्यारी भरी है
आज मैं बचपन अपना लौटा लाऊंगा
इस जवानी में, बड़ी दुश्वारी भरी है
यही तो एक दिन है, मौज और मस्ती का
बाकी तो फिर जीवन में, जिम्मेदारी भरी है
देता हूँ नेताओं को मैं एक सलाह
जला दो, मन मे जितनी भी गद्द्दारी भरी है
इक दिन किया था, शक तुमने मेरे प्यार पर
देख लो चीरकर, मन में कितनी वफादारी भरी है
अरे, कहाँ से ले आया मैं दर्द ग़ज़ल में
आज तो होली के रंगों से, ये फुलवारी भरी है- गुरूजी की टिप्पणी :- आपके दूसरे शेर में काफिया तो ठीक है पर रदीफ वो नहीं चल सकता क्योंकि आपने आकांक्षाएं लिखा है जो कि बहुवचन है तो आपको भरी है कि जगह भरी हैं लिखना होगा जो कि ग़लत हो जाएगा । हमें एक वचन और बहुवचन का ध्यान भी रखना होगा । इस ग़ज़ल में आपने काफिया रदीफ जमाने के चक्कर में कुछ ग़लत प्रयोग किये हैं । जैसे देख लो चीरकर मन में कितनी वफादारी भरी है । इसमें ग़लत क्या है कि चीर कर दिल को देखा जाता है मन को नहीं मन तो एक अशरीरी शै: है उसको कैसे चीरा जाएगा भला । वही कुछ ग़लती जिम्मेदारी भरी है में भी हो रहा है जीवन में जिम्मेदारी भरी है कहना वाक्य का ग़लत प्रयोग है । आपके काफिये सही है पर फिर भी आपका एक नम्बर काटा जा रहा है ।
- ३} तीसरी गजल
- आज होली है, होली में गीले सूखे रंग है
गुरूजी की टिप्पणी :- फिर वही एक वचन बहुवचन का दोष आया है मां की दुआएं बहुवचन हो गईं हैं और आपका रदीफ एकवचन का है तो आपको मां की दुआ संग है करना होगा । और ऐसा ही कुछ सारे ही दंग हैं में भी है वहां भी है की जगह हैं आएगा क्योंकि सारे का अर्थ बहुवचन होता है । खैर फिर भी आपको पूरे नम्बर दिये जा रहे हैं क्योंकि एक वचन बहुवचन के ऐब के बारे में हमने कक्षा में चर्चा नहीं की है ।
ले रही मन में अंगडाई नई उमंग है
है सब हथियार तैयार,रंग,पिचकारी,गुब्बारे
आज प्यार और मुस्कान बाटने की जंग है
होली सिखाती है दुश्मनी मिटाना,द्वेष जलाना
होली मानो त्यौहार नही, कोई सत्संग है
अरमान तो बहुत से, होली के वास्ते है सजाए
पर हालात थोड़े कठिन और जेब तंग है
कुछ हसरतें पैसों के कारण दबी रह जाती है
पर जानता हूँ,होंगी पूरी,माँ की दुआएं संग है
होली का अबीर-गुलाल घुला है सारी फिजा में
दिल आजाद है जैसे, हवा मे कोई पतंग है
कुछ सैलानी आए थे, मथुरा घूमने के लिए
देखकर होली का हुडदंग, सारे ही दंग है
अमीर देशों मे तो, खुशियाँ पैसों से आती है
ये भारत की फिजा है, इसमे घुली खुशी की भंग है
४} चौथी गजल- आज पूरे शबाब पर फागुन है
गुरूजी की टिप्पणी :- आपको दस संटी मारी जाती है और ऊपर दिये गए पांच नम्बरों में से तीन काट भी लिये जाते हैं । आपको छोटी उ और बड़ी ऊ में फर्क समझ में नहीं आता है क्या । मतले में फागुन और धुन है तथा मजमून खून प्रसून में मात्राएं बड़ी हैं और सम्पूर्ण में तो आपने पूरा रायता ही ढोल दिया है ।
मन में छिड़ी प्रेममयी धुन है
ये लिफाफा बड़ा रंगीन है
मैं जानता हूँ 'होली' इसका मजमून है
होलीं उससे मिलने का बहाना होगीं
सोचकर खिल रहे ह्रदय के प्रसून है
देश जब भी खेलना चाहे होली
सदा हाज़िर हम नौजवानों का खून हैं
अमीर-गरीब सब एक रंग मे रंग जाते हैं
होली एकता का त्यौहार सम्पूर्ण हैं
५} पांचवीं गजल- पुरानी डायरी के पन्नों में,दबा सूखा पलाश था
मानो सतरंगी इन्द्रधनुष लिए, छोटा सा आकाश था
आज होली का मौका भी है , दस्तूर भी
लगा कि जैसे, होली के रंगों की तलाश था
फूल की भी देखिये ज़िंदगी, मौत के बाद रंग देती है
रंग कहता है छूटूगा नहीं ,मानो कोई विश्वास था
केमिकल रंगों की दुनिया में, भूल गए पलाश को
मैंने देखा बगीचे में, पलाश बड़ा निराश था- गुरूजी की टिप्पणी :- आकाश के साथ विश्वास का काफिया हिंदी में चल जाता है पर ग़ज़ल में नहीं चलता क्योंकि ग़ज़ल में ध्वनि का खेल है और श तथा स की ध्वनियों में फर्क होता है । आपके काफिये भर्ती के हैं मगर फिर भी आपको 1 नम्बर तो दिया जा ही रहा है कुल होते हैं 3 नम्बर 10 में से ।
- mehek.
- होली
मन में घुली मीठी गुझिया सी बोली हो
नफ़रत पिघलाती मिलन सार ये होली हो |
गुस्ताखियों के अरमानो की लगती है कतारें
हर धड़कन की तमन्ना उसका कोई हमजोली हो |
जज़्बातों की ल़हेरें ऐसी उठता है समंदर
दादी शरमाये इस कदर जैसे दुल्हन नवेली हो |
प्यार के रंगों में डूब जाने दो हर शक्स
छूटे न कोई चाहे वो दुश्मन या सहेली हो |
मुबारक बात दिल से अब कह भी दो “महक”
आप सब के लिए होली यादगार अलबेली हो |
2. पलाश
कौन हो नूरे-जिगर कोई मोह्पाश हो
दहकते दिल में खिला प्यार पलाश हो |
खीची चली आती हूँ उसी मकाम पर
मुश्किल से मिलती वो बूँद आस हो |
शाहे-समंदर कब का रीता हो चुका
बुझती ही नही कभी अजीब प्यास हो |
तुमसे दूर जाउँ ये ख़याल सितम ढाए
जिस में जकड़ना चाहूं एसे बँधपाश हो |
जमाने से छुपाना और जताना भी है
नवाजिश करूँ सब से हसीन राज हो |
परदा उठाओ अब,के बेसब्र “महक” हुई
या पलकों में सजता बस ख़याल हो. |- गुरूजी की टिप्पणी :-आपने तो काफिये लेने में अपनी हिटलर शाही चलाई है जो हम कहें वही काफिया । अगर आपन मतले में ही बोली हो के साथ सहेली हो कह दिया होता तो तो आगे के काफिये चल जाते पर आपने मतले में लिया है बोली हो और होली हो तो हमजोली को छोड़ कर सारे काफिये खारिज होते हैं । दूसरी ग़ज़ल में तो आपने पलाश के साथ खयाल और राज को कैसे मिला लिया ये आप ही बताएं आपने पूरी कक्षाएं अटेंड नहीं की है जीटी मारी है शायद । तो आपके केवल दो काफिये सही हैं सो मिलते हैं 1 नम्बर 10 में से ।
- अवनीश एस तिवारी
- इसबार बड़ी खूबसूरत होली है,
फागुन, रंग संग मेरा हमजोली है |
रहता था उखडा जो मुखड़ा सदा ,
उस पर आज सजी मोहक रंगोली है ,
बरसों से सिले पड़े थे ओंठ जो,
उनपर खिली मुस्कान, मीठी बोली है ,
देख इतराते थे जो अक्सर हमें ,
हम पर आज अपने आँखें उसने खोली है,
फ़ेंक गुलाल बस हंस देती है,
हे ईस्वर ! वो इतनी भी क्यों भोली है,
मदमस्त हुया जा रहा है 'अवि',
प्रेम - रस होली मे उसने जो घोली है |- गुरूजी की टिप्पणी :-आपने काफिया होली लिया हे और रदीफ लिया हे है । आपने दो जगहों पर ग़लती कर दी है और वो ये कि आंखें बहुवचन है एक वचन नहीं है आपका रदीफ है से हैं हो जाएगा जो कि गलत होगा और दूसरी ग़लती जिस पर आपके नम्बर कट रहे हैं वो है प्रेम रस को आपने काफिया मिलाने के चक्कर में पुरुष से स्त्री कर दिया है । रस पुल्लिंग है स्त्रीलिंग नहीं है उसे घोला जाएगा घोली नहीं । तो पहली ग़लती पर तो नहीं हां दूसरी पर आपके दो नम्बर कटते हैं । और मिलते हैं 10 में से 8 ।
- RAVI KANT
- रंग तुम्हारे प्यार का है भा गया यूँ होली में
गुरूजी की टिप्पणी :- रवि जी आपने काफिये और रदीफ तो बिल्कुल सही लिये ही हैं साथ ही आपकी ग़ज़ल भी लगभग बहर में चली है । केवल जहर के ऐ दोस्तों में से ऐ हटा दें तो ठीक रहे गा । आपको 10 में से 10 और गुरूजी की तरफ से 2 बोनस ये ग़ज़ल को लगभग ( ध्यान रखें मैं लगभग बहर लिख रहा हूं मतलब अभी भी कुछ कमी है ) बहर में लिखने के लिये । कुल 12 अंक ।
अब मजा आता नहीं चंदन-तिलक औ रोली में
पास कुछ भी है नहीं पर ये अमीरी देखिए
दर्द के मोती भरे हैं आज मेरी झोली में
तीर रखते हैं छिपाकर जो जहर के ऐ दोस्तों
हाँ शहद ही है टपकता यार उनकी बोली में- सजीव सारथी
- रंगों भरी पिचकारी, जिंदगी है,
गुरूजी की टिप्पणी :- सजीव जी रदीफ और काफिये तो सही हैं और उसके लिये आपको अंक भी पूरे मिल जाएंगें पर एक बात ज़रूर कहना चाहता हूं जीने की लाचारी जिन्दगी है में कुछ खटक रहा है और वो ये कि जीना और जिनदगी तो एक ही बात है लगभग आप का रदीफ तो निभ गया पर मजा नहीं आ पाया आपको इसलिये कह रहा हूं क्योंकि आप हिंद युग्म के लिये गीत लिख रहे हैं । जरा और मेहनत करें पर फिलहाल तो 10 में से 10 ।
ख्वाबों की फुलवारी, जिंदगी है,
गम के बुझते सन्नाटों से आती,
खुशियों की किलकारी, जिंदगी है,
मौत से रोज लड़ती मरती,
जीने की लाचारी, जिंदगी है,
झूठ के मयान में मुंह छुपाती,
सच की तलवार दो-धारी, जिंदगी है,
अलसुबह आराम की नीद से जागी,
अलसाई सी खुमारी, जिंदगी है,
दूँढती है जाने क्या, कहाँ भटकती है,
पगली सी है बेचारी, जिंदगी है- सतपाल का कहना है कि -यह ग़ज़ल मैने कोई १० साल पाहले लिखी थी मै खासकर पंकज जी के लिए इसे पेश कर रहा हूं. आशा है सब को पसंद आयेगी.
गुरूजी की टिप्पणी :- अभी तो आपकी ग़ज़ल को नहीं ले सकते क्योंकि वो होमवर्क का हिस्सा नहीं है ।- Alpana Verma
- हर और बिखर गए होली के रंग ,
ऐसे ही संवर गए फागुन के ढंग.
भँवरे भी रंग रहे कलियों के अंग,
हो रहे बदनाम कर के हुडदंग.
भर के पिचकारी,लो हाथ में गुलाल,
गौरी तुम खेलो मनमितवा के संग.
अब के बीतेगा सखी,फागुन भी फीका,
है परेशां दिल और ख्यालों में जंग.
बिरहन के फाग ,सुन बोली चकोरी,
मिलना जल्दी चाँद ! करना न तंग.
गहरे हैं नेह रंग, झूमे हर टोली,
गाए 'अल्प' फाग,बाजे ढोल और चंग.
गुरूजी की टिप्पणी :- आपने काफिया सही निभाया है और कोई दोष नहीं है ( काफिये में अभी हम बहरों का दोष और व्याकरण दोष की बात कर ही नहीं रहे हैं ) आपने मेरे मनपसंद काफिये चंग को भी ले लिया है 10 में से 10 सभी काफिये सही हैं ।- anju
- मच रहा चारों ओर होली का हुडदंग
आओ प्रिये लगाये प्रेम रंग
मस्ती में सब झूम रहे है
खेले हम भी मिलकर होली संग
महसूस करता हूँ बिन तुमर्हे
अपने जीवन को नीरस और अपंग
वादा करता हूँ तुमसे
नहीं करूँगा कभी तुमको तंग
रहेंगे मिलकर हम ऐसे जेसे
रहे खुले आस्मान में डोर पतंग- गुरूजी की टिप्पणी :- आपने भी काफिया निभा लिया है मेरे ख्याल से बिन तुम्हारे होगा आपने जहां पर बिन तुम्हें लिखा है वहां पर । अपंग ज़रूर एक कठोर काफिया है जो इस तरह की ग़ज़लों में नहीं चलता है । फिर भी आपने निभा लिया है सो 10 में से 10 ।
- रेनू जैन
- गालों पे तुम्हारे, जो गुल पलाश के हैं,
गुरूजी की टिप्पणी :- आपने बहुत अच्दी तरह से निभाया है और अगर आपके मतले में गालों पे तुम्हारे की जगह गालों पे ये तुम्हारे कर दिया जाए तो मतला बहर में भी आ जाएगा । हां एक बात है की पानी सावन में बरसता है फागुन में नहीं ( अपवाद को छोड़कर ) तो इसका भी ध्यान रखें कि मौसम का सही चित्रण हो । मेरे एक संपादक मित्र ने एक कविता जो होली की थी मुझे दिखाते हुए कहा था कि पंकज अब इसका क्या करूं जो फागुन में मोर नचवा रहा है । फिर भी सही काफिये के 10 में से 10
हारोगी फिर भी तुमही, पत्ते ये ताश के हैं.
न अब मुझे बुलाना, कुछ रोज़ भूल जाना,
इतना नहीं क्या काफ़ी, अब दिन अवकाश के हैं.
बरखा ने कुछ न पूछा, ओ गयी बरस छमाछम,
होली पे यूं नशीले, नैना आकाश के हैं.
न जाम में नशा है, अमृत भी न सुहाए,
महबूब हम तो कायल, तेरे बाहुपाश के हैं.
छोड़ो यह ताजमहल, अपनी कुटी सजाओ,
बने प्रीत के यह मन्दिर, पत्थर तराश के हैं.- hemjyotsana
- रंगो ने की रंगो से बातें , होली हो गई ।
गुरूजी की टिप्पणी :- दो जगह पर समस्याएं हैं एक तो बीच खड़ी दीवारें पल में पोली हो गई में बात कुछ जम नहीं रही है दीवारें पोली होने का अर्थ ये नहीं है कि दीवारें हट ही गईं । और दीवारें भी बहुवचन है सो आपका रदीफ जो कि एकवचन है वो नहीं निभेगा । और ऐसा ही है आखिरी शेर में भी है वहां भी आप अगर ''हर इक धड़कन मेरी चंदन रोली हो गई '' करें तो बात बनेगी । खैर केवल पोली दीवार के 1 नम्बर कटते हैं और मिलते हैं 10 में से 9 ।
मस्ती में मस्तो का मिलना ,वो टोली हो गई ।
देखा चुराया माखन ,खूब लगाई ड़ांट ,पर
देख के भोले मोहन को ,वो भोली हो गई ।
मन रंगा जब से श्याम रंग में ,
हर एक खुशी मेरी तब से ,हमजोली हो गई ।
हर रात को बंसी सुन सुन कर ,
नीम चढ़े मेरे मन की , मिठी बोली हो गई ।
जब दिल ने आवाज़ लगाई कान्हा कान्हा कान्हा ।
सुख सपनो से भारी , मेरी झोली हो गई ।
मुस्काके जब जब देखा मैंने उसको ,
बीच खड़ी सब दिवारें पल में ,पोली हो गई ।
पूजा दिल में दिल से जब जब उस मुरत को ,
सांसे धड़कन मेरी ,चन्दन रोली हो गई । - आँखों का सुर्ख रंग ये, होली तो नहीं है
- चलिये बात हो गई होमवर्क की अब हम मिलेंगें शुक्रवार को।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
25 कविताप्रेमियों का कहना है :
पंकज जी,
पहले के जमाने में गुरुजी की बात आँख बंद कर के मानने की परंपरा थी, लेकिन नये जमाने की कोचिंग क्लासेज में शिष्यों को थोडी धृष्टता की इजाजत होती है कि वे गुरुजी से मूल्यांकन पर भी प्रश्न खडे कर सकें। तो पूरी क्षमायाचना के साथ दो प्रश्न हैं:
"एक छोटी सी गुजारिश है वो ये कि होली एक उल्लास और उमंग का त्यौहार है इसमें भाव वही बनाए रखें तो अच्छा रहता है ।" यह तो होमवर्क की शर्त नहीं थी पंकज जी। खैर, क्या इससे (उत्साह जो मैने नहीं रखा)गज़ल के फर्मेट में कोई त्रुटि आ जाती है?
आपने लिखा है "क्या लूट सका कोई भोली तो नहीं है, में बात कुछ भी समझ में नहीं आ रही है" मुझे यह कहने में आपत्ति नहीं कि आपने एक गंभीर कथ्य को नजरंदाज किया है अथवा शेर के निहितार्थ पर आप नहीं गये। जहाँ तक मैं समझता हूँ आपका गृहकार्य काफिये तक ही था। इस शेर के अर्थ पर गहरी और लम्बी चर्चा की जा सकती है लेकिन वह आपके गृहकार्य का हिस्सा नही है।
अत: जितना गृहकार्य था उसके इतर शेर की स्पष्टता और निहितात्थ पर आलोचना/समालोचना प्रखंड रखा जाये तो ठीक किंतु आपका मूल्पांकन गलत है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
शुक्रिया गुरूजी ,आब वापस अपनी रचना आपकी तिपनी के बाद पढी टू बहुत गलतियाँ समझ भी आ गई
गुरूजी मगर हम राजीव जी से सहमत है,आपने ही कहा tha har sher ka vishay alag ho sakta hai, ek hi hona jaruri nahi,ab kuch sher uamng se bhare hote hai kuch ek satyata darshate hai.har sher mein khushi hi jhalke ye jaruri to nahi hai.rang gum ki bhi hazar hote hai daman mein,ek khushi ke rang mein bhigna hi zindagi nahi hoti.
मैंने उल्लास और उमंग पर नहीं काटे हैं अंक केवल आपकी बात क्या लूट सका कोई भोली तो नहीं है उसके काटे हैं और वो इसलिये कि आप जिस निहितार्थ की बात कर रहें हैं वो बात जिस तरफ इशारा कर रही है मैंने उस दृष्टि से भी देखा मगर
उसने तो तरक्की की, अंबर को छू लिया
क्या लूट सका कोई, भोली तो नहीं है।
आपका वाक्य अपने को स्पष्ट नहीं कर पा रहा है आपने भी निहितार्थ को समझाने का प्रयास अपनी टिप्पणी में नहीं किया कि आपके दोनों मिसरे जो एक पूरब और दूसरा पश्चिम जा रहा है उसका निहितार्थ क्या है । आप एक बात ध्यान रखें कि आपने ''सका'' शब्द जो प्रयोग किया है उसको जस्टीफाई ज़रूर करें । ''भोली '' से आपका जो आशय है वो भी स्पष्ट करें क्योंकि मेरे हिसाब से भोली का आशय यहां पर भोली लड़की तो हो ही नहीं सकता तो फिर और क्या हो सकता है वो बताएं । फिर कह रहा हूं कि ''सका'' और ''भोली'' का आपस में संयोग ज़रूर स्पष्ट करें ।
आपने शायद मेरी बात पूरी देखी नहीं मैंने कहा है
''एक छोटी सी गुजारिश है वो ये कि होली एक उल्लास और उमंग का त्यौहार है इसमें भाव वही बनाए रखें तो अच्छा रहता है ।'' मैंने ग़ुजारिश की है अर्थात निवेदन, वहां अंक काटे नहीं है मैंने, अंक तो आपके मिसरे पर काटे हैं और वो भी काफिया भर्ती का लग रहा है इसलिये
ओह्ह्ह मैं तो फ़ेल हो गई:( फ़िर से कोशिश करेंगे .:)..बाकी सब मित्रों जिन्होंने होली के रंग अपनी गजल में पूरे कायदे कानून के साथ बिखेरे थे उनको पढ़ना बहुत अच्छा लगा :) सबने बहुत ही सुंदर लिखा है ...गुरु जी और बाकी सबको होली और इतने अच्छे अंकों से पास होने की बहुत बहुत बधाई :)
पंकज जी,
मैने आपकी बात पूरी गंभीरता से पढी है और मेरी गुजारिश यह है कि हिन्दी के कवि चाहे गज़ल लिखें चाहे दोहा या कि नयी कविता अपनी आलंकारिक भाषा से पृथक नहीं हो सकते।
उसने तो तरक्की की, अंबर को छू लिया
क्या लूट सका कोई, भोली तो नहीं है।
इस शेर में "उसने" तो स्वयं बता रहा है कि "भोली" कौन है? जिसने तरक्की की वह भोली नहीं है, यह है पहले मिसरे का दूसरे से संबंध।
जिसने तरक्की कर अंबंर को छुवा है वह स्वयं को लुटने के लिये प्रस्तुत करती है, लेकिन क्या लूटने वाला इसे लूट कह सकता है? या कि इस्तेमाल होता है?
यहाँ अलंकार का ज्ञान पाठक के लिये अनिवार्य है, यह मैं मानता हूँ, और इसी कारण आपसे पूरी तरह से असहमत भी हूँ। पुनश्च आपने उस शेर को कत्तई नहीं समझा।
*** राजीव रंजन प्रसाद
समझ गए गुरूजी :):),आप क्या कहना चाहते है |सब को होली मुबारक .हमारी भी कोशिश जरी रहेगी.
अरे वाह!
यहाँ तो गुरु और शिष्य ही उलझ पड़े। खैर जो भी हो ,इससे भी हम विद्यार्थियों को ही फ़ायदा हो रहा है। पता चल रहा है कि बातें ज्यादा घुमावदार नहीं होनी चाहिए लेकिन अलंकार प्रधान भी होना चाहिए। वैस धीरे-धीरे सारी बातें समझ में आ जायेंगी। मुझे भरोसा है।
नमस्ते,
गुरूजी आपको धन्यवाद |
सुधर किया है, जैसा आपने बताया -
इसबार बड़ी खूबसूरत होली है,
फागुन, रंग संग मेरा हमजोली है |
रहता था उखडा जो मुखड़ा सदा ,
उस पर आज सजी मोहक रंगोली है ,
बरसों से सिले पड़े थे ओंठ जो,
उनपर खिली मुस्कान, मीठी बोली है ,
देख इतराते थे जो अक्सर हमें ,
हम पर आज उनकी नज़र डोली है,
फ़ेंक गुलाल बस हंस देती है,
हे ईस्वर ! वो इतनी भी क्यों भोली है,
मदमस्त हुया जा रहा है 'अवि',
मिलन - इच्छा होली मे उसने जो घोली है |
अवनीश तिवारी
:) चलिये परीक्षा तो पास हुई--
--ये भी मालूम है कि आगे आगे तो कठिन डगर है!!
-सभी सहपाठियों को बधाई.
- होली की रंग बिरंगी शुभकामनाएं!
सर आपकी टिप्पणियां पढ़कर मजा आ गया. क्या गहराई मे उतरकर analysis किया है . सर संटी भी बड़ी जोर की मारी . सर negative marking बारे मे तो आपने बताया ही नही था . सर मुझे लगता है भर्ती के कफियों पर और ज्यादा चर्चा की जरुरत है . छोटी उ और बड़ी ऊ पर तो शक मुझे भी था. इसलिए पहले ही माफ़ी मांग ली थी . सर ऐसे ही टेस्ट लेते रहिये तो सुधार होता रहेंगा.
सर एक सवाल बार बार मन मे उठ रहा है और वह ये कि ग़ज़ल मे काफिया , रदीफ़, बहर और व्याकरण का तो महत्त्व है , पर इसमे विचारों की गहराई का कितना महत्त्व है? क्योंकि काफिया जोड़कर और सीखकर दोष रहित ग़ज़ल तो बन जाएंगी . परन्तु ग़ज़ल के शेर सुनकर जो वाह वाह निकलती है , वह तो नही निकल पाएंगी. इसलिए बहर का पाठ शुरू करने के पहले अगर आप इस बात पर भी प्रकाश डालेंगे तो अच्छा रहेंगा.
राजीव जी
मैं ग़ज़ल की कक्षा का विद्यार्थी होने के नाते आप को लिख रहा हूँ. किसी भी विधा को सीखने के लिए गुरु का होना आवश्यक है. गुरु की बात को समझ कर उसका सम्मान करना आना चाहिए तभी हम कुछ सीख सकते हैं. जहाँ हम अपनी गलती को जस्टीफाई करने लगते हैं वहीं सीखने की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है. आप को मैं पढता आया हूँ और आप की काव्य प्रतिभा का कायल भी हूँ लेकिन जिस प्रकार से आपने पंकज जी को लिखा है की वो आप के शेर का अर्थ नहीं समझ पाए, मेरी समझ में ग़लत है. पंकज जी आप के कथन से आहत हुए हैं या नहीं कह नहीं सकता लेकिन मुझे कहने में कोई शर्म नहीं है की आप की बात गरिमा पूर्ण नहीं है.
नीरज
गुरूजी,आपका प्रोत्साहन पाकर खुश हूँ। बाकी कमियाँ भी आपके सान्निध्य में रहकर दूर हो ही जाएँगी।
नीरज जी,
मेरी बात कहना किसी की गरिमा का हनन करना नही है और इस प्रकार के स्टेटमेंट आज के समय में व्यावहारिक भी नहीं लगते। अपनी काव्य-प्रतिभा का लोहा मनवाने के लिये मैने प्रतिवाद नहीं किया है अपितु असहमति जताने के लिये प्रतिवाद किया है। यही सीखने का सही तरीका भी है जब दो और दो का जोड पाँच मुझे भी तार्किक लगे।
इस तरह की बाते लिख कर सकारात्मक चर्चा को विराम लगाने की अथवा उसमें घी डालने की आवश्यकता मैं नहीं समझता।.... और मैं अपने तर्क पर कायम हूँ।
*** राजीव रंजन प्रसाद
जी पंकज जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आप इतना समय हम लोगो के लिए देते हैं
मैंने जो ग़ज़ल लिखी थी
उसमें बिन तुम्हारे ही लिखा था किंतु जल्दबाजी के कारन तुमर्हे हो गया
बहुत बहुत शुक्रिया गुरु जी
आप इसी तरह हमारा मार्ग दर्शन करते रहे
होली
मन में घुली मीठी गुझिया सी बोली हो
प्यार के रंग लगाओ दुश्मन या सहेली हो |
गुबार वो बरसों से पलते रहे है दिल में
नफ़रत पिघलाती मिलन सार ये होली हो |
गुस्ताखियों के अरमानो की लगती है कतारें
हर धड़कन की तमन्ना उसका कोई हमजोली हो |
जज़्बातों की ल़हेरें ऐसी उठता है समंदर
दादी शरमाये इस कदर जैसे दुल्हन नवेली हो |
मुबारक बात दिल से अब कह भी दो “महक”
आप सब के लिए होली यादगार अलबेली हो |
गुरुजी मिसरे की ग़लती पर सुधार अब कर लिया है,मत्ले का कनों वाली कक्षा फिर पढ़ी
ग़लती साँझ आ गयी,बहुत शुक्रिया.
सर जी ने कहा -->
दो जगह पर समस्याएं हैं एक तो बीच खड़ी दीवारें पल में पोली हो गई में बात कुछ जम नहीं रही है दीवारें पोली होने का अर्थ ये नहीं है कि दीवारें हट ही गईं । और दीवारें भी बहुवचन है सो आपका रदीफ जो कि एकवचन है वो नहीं निभेगा । और ऐसा ही है आखिरी शेर में भी है वहां भी आप अगर ''हर इक धड़कन मेरी चंदन रोली हो गई '' करें तो बात बनेगी । खैर केवल पोली दीवार के 1 नम्बर कटते हैं और मिलते हैं 10 में से 9 ।
जी सर जी सही कहा आपने " दीवार " शब्द का प्रयोग करना चाहिये था ।
पर शेर का अर्थ फ़िर भी वहीं रखना चाहूँगी ..... सिर्फ़ एक पल मुस्का ने से दीवार इतनी नरम हो गई कि आग बढ़ने से हट सकती , पर हटने के लिये आगे आना होगा ।
और दुसरे शेर में सासों को चंदन कहा..... क्योकि सासें दिल से पुजा करने के बाद महक रही है और धड़कन रोली की तरह दिल के मन्दिर की मुरत को सजा रही हैं ।
सादर
हेम ज्योत्स्ना "दीप"
आपकी पोस्ट मे बिखरे रंग देख कर ही होली का मज़ा आ गया, यह मेरा भी पसंदीदा त्यौहार है, पंकज जी और राजीव जी आप दोनों फिलहाल होली का लुत्फ़ लें, बाकि बातें उसके बाद करें तो कैसा रहेगा ? ढेरों शुभकामनाएं , पहली सफल परीक्षा के लिए बधाईयाँ भी
वैचारिक बहसें किसी की गरिमा का हनन नहीं हैं। पंकज जी, आप शेर फिर से पढ़ें। मुझे तो पहली बार पढ़ते ही समझ आ गया था। इतने गहरे शे'र को यदि आप गज़ल की कमजोरी बताएंगे तो लिखने वाला अवश्य आहत होगा।
बहुत बढिया है , बधाई स्वीकारें !होली की शुभकामना...!
आदरणीय गजल गुरु
यद्यपि मैं तो भगोड़ा विद्यार्थी भी नहीं हूँ परन्तु आज इस पहले होम वर्क में टिप्पणियां देख कर आनंद आ गया. फ़िर भी राजीव जी वाले प्रसंग में मेरा मतैक्य गौरव से ही है नाकि शैलेष से. क्योंकि मैं स्वयम भी जब रचना सरसरी तौर से भी पढ़ रहा था, तो भी मैं संदर्भित पंक्तियों का अर्थ समझ गया था कि जो लोग स्वयम ही अपनी अस्मिता को ऊपर चढ़ने की सीढियां बना लेते हैं उन्हें कोई क्या लूट सकेगा. वह जो भी लुटाने को लेकर घूम रहे होंगे वो सब तो वह स्वयम ही पहले से 'यूज' .... संभवतः यह बहुत ही कठिन व्यंग्य भी राजीव जी करना चाहते हैं इन तथाकथित तरक्कीपसंद लोगों पर. इसलिए यह संयोग से एक निहितार्थ की ग़लत फहमी का ही बिन्दु है. चलें हम सब होली का आनंद लें... शुभकामनाएं सभी पास और फेल मित्रों को ... मैं भी अगली बार यदि समय मिला पाया तो आप सब के साथ ही रहूँगा ताकि आप सब को मेरी टांग खींचने का भी अवसर मिले .... तब तक सस्नेह प्रणाममित्रो
सबसे पहले मैं गुरुजी से माफ़ी चाहुंगा कि मैं परीक्षा मे हिस्सा नहीं ले पाया इसका मलाल मुझे हमेशा रहेगा आजकल कुछ अधिक व्यस्तता थी इस लिये ऐसा हुआ पर सभी मित्रवर की रचनायें पडी और उनका मूल्यांकन भीेजो पास हुए उनको बधाई जो फ़ैल हुए वो निराश न हों मेरी तरह अगली परीक्षा क इंतज़ार करें
माननीय गुरु जी
मेरी ग़ज़ल मूल्यांकन के काबिल लगे तो कृपया
मूल्यांकन करने की कृपा करे ,
--------------------------- वीनस केशरी
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