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Saturday, March 29, 2008

ओ हंस !


ओ हंस ,

तुम ज्वालामुखी क्यों हुए ?

कि एकबारगी ही

फ़ूट पड़े

अपने श्वेत लावे के साथ

फ़िर

सूख गये धरा तक पहुँचने से पहले ही !

क्षीर विवेकी ओ !

किस भाँति तय किये

पृथकता के पैमाने तुमने

कि आज भी मिलती है

उजली गन्ध

हर कुएँ के जल में ?

ओ श्वेतपंख !

क्यों तुम गरुड़ बने ?

कि तुम्हारे धारदार पंखों के

अग्निमय निशान

क्षितिज पर टिक न सके

अरुणिम ज्योति सदृश !

ओ हंस !

तुम नदी क्यों न हुये

कि पत्थर की दरार से धीरे धीरे

रिसकर फ़ैलते और बहते,

बड़ी धार बनकर-

दूर तक

फ़िर उगता तुम्हारा रक्त

सदियों तक फ़सलों में ।

- आलोक शंकर


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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

सफेदी पर बिखरे लाल रंग रक्त का दर्द mehsus karati kavita bahut khub

शोभा का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
शोभा का कहना है कि -

आलोक जी
सुन्दर रचना के लिए बधाई ।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

आलोक जी,

कथ्य यद्यपि बहुत नया नहीं है तथापि आपके बिम्ब अत्यंत अध्भुत है। बिम्बों का पूरे वैज्ञानिक कारणों के साथ कथ्य में प्रयोग आपकी रचना को उँचाई प्रदान करता है।

अमिताभ मीत का कहना है कि -

वाह भाई. क्या बात है. बहुत बढ़िया.

रवीन्द्र प्रभात का कहना है कि -

बेहद सुंदर रचना , बेहतरीन अभिव्यक्ति !

vivek "Ulloo"Pandey का कहना है कि -

basha ke madhaym se vicahr vyakt karne ka prayash to acah hai lekin hav aam-admi ki soch se pare hain phir bhi apne badhiay prayash kiya hai prakritik cheejon ke madhyam se vyangya kafi anutha ho gaya hai

Sajeev का कहना है कि -

वाह क्या बात है अलोक जी.....उत्कृष्ट रचना है...

Upasthit का कहना है कि -

main samajh nahi paata apki kavitayen abhi bhi, log kah rahe hain ahcchi hain to achchi hi hongi..jai ho

seema gupta का कहना है कि -

बेहद सुंदर रचना बधाई

Alpana Verma का कहना है कि -

कविता में शब्दों का चयन और गठन तो अच्छे हैं .
भाव भी गहरे हैं.

seema sachdeva का कहना है कि -

namaskaar aalok ,
जी

आपकी कविता बहुत अच्छे गहरे भाव व्यक्त karatee है ,पर samajhane के लिए dimaag की achchee -खासी kasarat bhee karvaatee है ,मैंने इसे 3-4 बार पढ़ा tabhee जा के आपके hans और garud का abhipraay समझ पाई |hamaare dimaag की preekSha लेने के lie शुक्रिया ...और achchee rachana के लिए badhaai .....सीमा sachadev

anju का कहना है कि -

अद्भुत रचना
ओ हंस ,

तुम ज्वालामुखी क्यों हुए

अति सुंदर आलोक जी

विश्व दीपक का कहना है कि -

आलोक जी!
बहुत हीं खूबसूरत रचना है।
बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी कविता है आलोक जी ,बधाई हो
पूजा अनिल

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