ओ हंस ,
तुम ज्वालामुखी क्यों हुए ?
कि एकबारगी ही
फ़ूट पड़े
अपने श्वेत लावे के साथ –
फ़िर
सूख गये धरा तक पहुँचने से पहले ही !
क्षीर विवेकी ओ !
किस भाँति तय किये
पृथकता के पैमाने तुमने
कि आज भी मिलती है
उजली गन्ध
हर कुएँ के जल में ?
ओ श्वेतपंख !
क्यों तुम गरुड़ बने ?
कि तुम्हारे धारदार पंखों के
अग्निमय निशान
क्षितिज पर टिक न सके
अरुणिम ज्योति सदृश !
ओ हंस !
तुम नदी क्यों न हुये
कि पत्थर की दरार से धीरे धीरे
रिसकर फ़ैलते और बहते,
बड़ी धार बनकर-
दूर तक
फ़िर उगता तुम्हारा रक्त
- आलोक शंकर
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
सफेदी पर बिखरे लाल रंग रक्त का दर्द mehsus karati kavita bahut khub
आलोक जी
सुन्दर रचना के लिए बधाई ।
आलोक जी,
कथ्य यद्यपि बहुत नया नहीं है तथापि आपके बिम्ब अत्यंत अध्भुत है। बिम्बों का पूरे वैज्ञानिक कारणों के साथ कथ्य में प्रयोग आपकी रचना को उँचाई प्रदान करता है।
वाह भाई. क्या बात है. बहुत बढ़िया.
बेहद सुंदर रचना , बेहतरीन अभिव्यक्ति !
basha ke madhaym se vicahr vyakt karne ka prayash to acah hai lekin hav aam-admi ki soch se pare hain phir bhi apne badhiay prayash kiya hai prakritik cheejon ke madhyam se vyangya kafi anutha ho gaya hai
वाह क्या बात है अलोक जी.....उत्कृष्ट रचना है...
main samajh nahi paata apki kavitayen abhi bhi, log kah rahe hain ahcchi hain to achchi hi hongi..jai ho
बेहद सुंदर रचना बधाई
कविता में शब्दों का चयन और गठन तो अच्छे हैं .
भाव भी गहरे हैं.
namaskaar aalok ,
जी
आपकी कविता बहुत अच्छे गहरे भाव व्यक्त karatee है ,पर samajhane के लिए dimaag की achchee -खासी kasarat bhee karvaatee है ,मैंने इसे 3-4 बार पढ़ा tabhee जा के आपके hans और garud का abhipraay समझ पाई |hamaare dimaag की preekSha लेने के lie शुक्रिया ...और achchee rachana के लिए badhaai .....सीमा sachadev
अद्भुत रचना
ओ हंस ,
तुम ज्वालामुखी क्यों हुए
अति सुंदर आलोक जी
आलोक जी!
बहुत हीं खूबसूरत रचना है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
अच्छी कविता है आलोक जी ,बधाई हो
पूजा अनिल
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