वो मुझे इक बुत बनाना चाहता है,
ख्वाहिशों को आजमाना चाहता है...
मुस्कुरा देता है हर इक बात पर,
मुझसे अपने ग़म छिपाना चाहता है...
सच कहूँ ऐसे कि जैसे सच न हो,
क्या कहें, क्या-क्या ज़माना चाहता है....
आसमां की सब हदों को चूमकर,
अब परिंदा आशियाना चाहता है....
कौन देता है भला ताउम्र साथ,
जाए, जो भी छोड़ जाना चाहता है...
मैं कहीं काफिर न हो जाऊं "निखिल"
वो मेरी महफ़िल में आना चाहता है...
निखिल आनंद गिरि
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28 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या कहना निखिल जी
बहुत खूब
आसमां की सब हदों को चूमकर,
अब परिंदा आशियाना चाहता है....
कौन देता है भला ताउम्र साथ,
जाए, जो भी छोड़ जाना चाहता है...
-- सुंदर है |
अवनीश तिवारी
मैं कहीं काफिर न हो जाऊं "निखिल"
वो मेरी महफ़िल में आना चाहता है...
क्या बात है भावनाएं बिल्कुल उफान पेर हैं बहुत ही बढ़िया लिखा है
अच्छी गज़ल है निखिल जी खासकर ये शेर बहुत ही उम्दा है
मैं कहीं काफिर न हो जाऊं "निखिल"
वो मेरी महफ़िल में आना चाहता है...
निखिल !
आसमां की सब हदों को चूमकर,
अब परिंदा आशियाना चाहता है....
कौन देता है भला ताउम्र साथ,
जाए, जो भी छोड़ जाना चाहता है...
मैं कहीं काफिर न हो जाऊं "निखिल"
वो मेरी महफ़िल में आना चाहता है...
शुभकामनाएं
बहुत दिनों बाद आये हो और आते ही छा गए हो क्या बात है -
आसमां की सब हदों को चूमकर,
अब परिंदा आशियाना चाहता है....
बाकि शेरों में भी नयापन लेकर आओ तो और मज़ा आये
bahut pasand aai...
आसमां की सब हदों को चूमकर,
अब परिंदा आशियाना चाहता है....
बहुत खूब
निखिल
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल लिखी है-
मुस्कुरा देता है हर इक बात पर,
मुझसे अपने ग़म छिपाना चाहता है...
सच कहूँ ऐसे कि जैसे सच न हो,
क्या कहें, क्या-क्या ज़माना चाहता है....
बहुत अच्छे . आशीर्वाद sahit
बहुत अच्छी ग़ज़ल है ,शुभकामनाएं
सीमा सचदेव
बहुत अच्छी ग़ज़ल है ,शुभकामनाएं
सीमा सचदेव
अरे मालिक ! हद है ये तो. कमाल कित्ता भाई साहब. हर शेर लाजवाब. और ये तो बस .......
"मैं कहीं काफिर न हो जाऊं "निखिल"
वो मेरी महफ़िल में आना चाहता है..."
आदाब सर जी !!
नमस्कार,
कम समय में इतनी टिप्पणियाँ देखकर दिल खुश हो गया.....हिन्दयुग्म की ताकत उसके पाठक हैं....हमारे मंच का एक अदना कवि भी औसतन २०-२५ पाठक पा लेता है और बड़ी-बड़ी पत्रिकाएं भी कुल मिलाकर ४००-५०० ढूंढ पाती हैं,,,सभी पाठकों को सलाम ....
और मेरी इस रचना पर तो कई नए(मेरे लिए) पाठकों की टिप्पणियाँ आई हैं...
मैं उत्साहित हूँ....सबका धन्यवाद,,,,,
निखिल आनंद गिरि
बहुत उम्दा...निखिल..अच्छा लिख रहे हो.
मुस्कुरा देता है हर इक बात पर,
मुझसे अपने ग़म छिपाना चाहता है...
" बहुत सुंदर ग़ज़ल, एक एक शेर लाजवाब "
" खोजता हूँ मैं ख़ुद को कहीं खो गया हूँ ,
वो मुझे अपने अक्स मे छुपाना चाहता है !
Regards
कौन देता है भला ताउम्र साथ,
जाए, जो भी छोड़ जाना चाहता है...
बहुत सुंदर लिखा है निखिल आपने . बहुत खूब !!
हर शे'र लाजवाब है निखिल भाई।
बहुत दिनो के बाद आये हो 'निखिल' तुम
हर शख्श तुमको रोज बुलाना चाहता है
आज तेरी इस गजल को खासकरके
दिल हमारा, गुनगुनाना चाहता है
मजा आ गया..
बहुत खूब..कुलवंत
सच कहूँ ऐसे कि जैसे सच न हो,
क्या कहें, क्या-क्या ज़माना चाहता है....
आसमां की सब हदों को चूमकर,
अब परिंदा आशियाना चाहता है....
बहुत खूब !
निखिल जी,
गज़ल बहुत हीं बढिया है। कुछ शेर प्रभावित करते हैं। मसलन
सच कहूँ ऐसे कि जैसे सच न हो,
क्या कहें, क्या-क्या ज़माना चाहता है....
मैं कहीं काफिर न हो जाऊं "निखिल"
वो मेरी महफ़िल में आना चाहता है...
बाकी शेरों में कुछ और मेहनत की जरूरत है।नए बिंब लाने में आप माहिर हैं, इस बार थोड़े से कमतर रह गए आप।अगली बार के लिए उम्मीदें बढ गई हैं मेरी।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बहुत सुन्दर लिखा है ...
रिपुदमन
रोशनी से ईश्क है उस दीवाने को इस कदर
बाहर अन्धेरा देख अपना घर जलाना चाहता है
क्या बात है निखिल जी आजकल बड़े शायराना हो गये हैं आप !खूबसूरत ग़ज़ल ...
मैं कहीं काफिर न हो जाऊं "निखिल"
वो मेरी महफ़िल में आना चाहता है...
आसमां की सब हदों को चूमकर,
अब परिंदा आशियाना चाहता है....
आसमां की सब हदों को चूमकर,
अब परिंदा आशियाना चाहता है...
बहुत खूब!
लाजवाब निखिल बही,क्या खूब कही-आसमां की सब हदों को चूमकर,
अब परिंदा आशियाना चाहता है
आलोक सिंह "साहिल"
बहुत बढ़िया प्रस्तुति है, निखिल! पर भाई ये आपको क़ाफ़िर बनाने वाला है कौन :)
आसमां की सब हदों को चूमकर,अब परिंदा आशियाना चाहता है
अच्छा लिखा है निखिल जी। हालांकि अभी तो मैं खुद ही सीख रहा हुँ इसलिए १०० प्रतिशत श्योर नहीं हुँ पर एक दो जगह बहर दोषपूर्ण लग रहा है।
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