प्रतियोगिता से एक बार फिर हम नया चेहरा लेकर आये हैं वो है नेहरू सेंटर, लंदन से जुड़ी दिव्या माथुर का। इनकी कविता २७वें पायदान पर है।
कविता- क्लोन
बधाई हो, बधाई हो
बेटा हुआ है, बधाई हो
अब शायद
नवजात बच्चियों की
हत्या न हो
न स्त्री भ्रूण को
गर्भ में ही
समाप्त करने की आवश्यकता पड़े
काँसे के थालों को
अब कोलकी में बंद कर दो
क्यूँकि पैदा होने वाला हर बच्चा
बेटा ही होगा
बधाइयों की अनवरत ध्वनि
से गूँज उठेगा संसार
बधाई हो, बधाई हो
बेटा हुआ है, बधाई हो
जल्दी ही
पुरूष क्लोन की
बस्तियाँ बस जाएँगी
प्रतिलिपियों पर आधारित
एक ऐसी पीढ़ी होगी
जिसके न माँ का पता चलेगा
न ही बाप का
संग्रहालय में प्रदर्शित
बची खुची महिलाएँ
तब भी मनोरंजन का
साधन ही रहेंगी
हाथापाई, युद्ध, लड़ाई, संग्राम में जुटी
पुरूष प्रधान पृथ्वी
कब तक टिकेगी
पर फिलहाल
बधाई हो, बधाई हो
बेटा हुआ है, बधाई हो!
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
कविता आधुनिक है |
व्यंगात्मक चिंता की गयी है |
अवनीश
दिव्या जी
बहुत ही बढ़िया लिखा है । बधाई स्वीकारें ।
दिव्या जी, जैसे आपके विचार हैं, यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले ३०-४० सालों में सच हो जायेंगे।
आपने २ पंक्तियाँ
बधाई हो, बधाई हो
बेटा हुआ है, बधाई हो
मुझे ऐसा लगा कि अपनी मर्जी से जहाँ चाहे लगा दी।
काव्य दृष्टि से बहुत मेहनत चाहिये। कोशिश जारी रखें।
सामयीक विषय पर अच्छी कविता है दिव्याजी
इस समस्या के परिणाम नजर आने लगे हैं
जैसे कि विशेष कर पंजाब में।
बहुत ही अच्छी कविता है
Regards
एक जायज चिंता को शब्द दिया आपने ... बधाई
आज की सबसे बडी समस्या को शब्दों में उकेरने के लिये बधाई।
सही कहा है आपने
सही कहा है आपने
जिस तरह से बेटे की उत्सकता पाई जाती है ,उससे टू आपकी कविता सही है लेकिन कुछ बदलाव भी टू हो रहा है ,आज लड़की को उतना बुरा नही माना जाता ,फिक्र मत कीजिए ,जो पुरूष क्लोन बनेगे टू आवश्यकता पड़ने पर महिला क्लोन भी बन जाएगे ,वो कहते है न :-आवश्यकता आविष्कार की जननी है ......सीमा सचदेव
संग्रहालय में प्रदर्शित
बची खुची महिलाएँ
तब भी मनोरंजन का
साधन ही रहेंगी
बहुत ही बढ़िया व्यंग रूप प्रदान किया है आपने इन पंक्तियों मे बिल्कुल इस पुरूष-प्रधान समाज को जब तक एक बड़ा झटका नही लगेगा यह महिलावों को सिर्फ़ उपयोग एवं भोग का साधन समझाता रहेगा आखिर कब यह वास्तविकता से रूबरू होगा
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