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Monday, March 31, 2008

मोहनजोदड़ो


मोहनजोदड़ो,
हाँ शायद
मोहनजोदड़ो की नालियों से
हीं बह कर निकला हूँ मैं,
लथपथ,
रक्त्तरंजित।

मोहनजोदड़ो!
सबसे पुरानी सभ्यता,
सबसे पुरानी शहरी सभ्यता,
सबसे पुरानी शहरी विकसित सभ्यता;
और सभ्य मैं!
उसी
मुर्दों के टीले से
बहता आ गिरा हूँ
इस कुलबुलाती
मिट्टी में,
केंचुओं की भांति।

मैं
जो हूँ,
जैसा हूँ,
जानता हूँ कि
मैं निस्संदेह
किसी
बोधिवृक्ष की जड़ों से नहीं निकला,
जबकि बुद्ध
मेरा सगा था,
किसी
पावापुरी के पत्थरों से नहीं ढाला गया,
जबकि महावीर
मेरी गोद में पला था,
किसी
अयोध्या या मथुरा की गलियों में नहीं बिछा,
जबकि राम या कृष्ण ने
मुझ पर हीं साँसें लीं थीं,
किसी
अब्राहिम या मुहम्मद के उपदेशों पर नहीं जिया,
जबकि मैने हीं उन्हें संभाला था;
मैं-
हाँ , मै
शायद इसीलिए जानता हूँ कि
मोहनजोदड़ो की कब्रो से हीं
जुड़ा है मेरा अस्तित्व!

मैं,
जोकि
बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, असम, मणिपुर
या दूसरे जगहों में
अलग नामों से बसता हूँ,
उत्तर ,दक्षिण
जैसे उपनामों में जिंदा हूँ,
एकता की छद्म जमीन में
मतभेद और बँटवारे के
बीज डाले खड़ा हूँ,
मोहनजोदड़ो की
की उसी मुर्दानगी का दूसरा नाम हूँ।
मैं,
और कोई नहीं
तुम्हारा
या फिर किसी का नहीं,
वही बीमार , घायल
भारत हूँ!!!!!!!

मैं!
हाँ मैं......


-विश्व दीपक ’तन्हा’

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Harihar का कहना है कि -

मोहनजोदाड़ो की
की उसी मुर्दानगी का दूसरा नाम हूँ।
मैं,
और कोई नहीं
तुम्हारा
या फिर किसी का नहीं,
वही बीमार , घायल
भारत हूँ!!!!!!!

तन्हा जी आपकी कविता गजब है
बड़ी सशक्त कविता है

Sajeev का कहना है कि -

तुम्हारा
या फिर किसी का नहीं,
वही बीमार , घायल
भारत हूँ!!!!!!!
तनहा जी काश इस कविता की गूँज हर भारतवासी तक पहुँच पाती

A Silent Lover का कहना है कि -

nice one tanhaji.. kaash ki yeh baat koi samajh pata..

Mahatma Gandhi nehi samjha paaye to ab to koi nehi samjha payega.. neways, nice effort.. and very nice writing

Alpana Verma का कहना है कि -

''अलग नामों से बसता हूँ,
उत्तर ,दक्षिण
जैसे उपनामों में जिंदा हूँ,''
बिल्कुल सही लिखा है...
तनहा जी आप की कविता सामायिक है..कल भी मुम्बई की ख़बर सुनी थी.दुःख होता है देश की ऐसी स्थिति जान कर.
भविष्य में विश्व की सब से बड़ी ताकत बनने का दावा करने वाला देश अगर यह कहने लगे-''वही बीमार , घायल
भारत हूँ!!!!!!!'''
तो सच में यह गंभीर विषय है.

Pitambar का कहना है कि -

Good work Tanhaji ...
apne akhand bharat ke alag alag kshetron se juri jin bhawnaon ko apni kavita mein darshaya hai wo hum sab bhartiyon ko ekta ka sanwaad deta hai...
aise bhi bharat ko vividhataon mein ekta ka desh kaha jaata hai ... par kuchh log apne swarth ke khatir inhin vividhtaon to tod maror kar apna ullu sidha karne mein lage hain ... par wo tanhaji jaise kaviyon aur lekhakon ke kalam ki taqat ko bhool rahe hain ... jo jantaon ke aakhon kholne ke liye kaafi hain ...
aapke likhne ke dhang aur bhasha ka to jawab hi nahi hai aur unmein jo saralta hai wo to aur bhi kaabile tareef hai ...
keep it up

Anonymous का कहना है कि -

और कोई नहीं
तुम्हारा
या फिर किसी का नहीं,
वही बीमार , घायल
भारत हूँ!!!!!!!
सोचने पर विवश करती एक कविता कि क्या भारत सचमुच एक है???बहुत अच्छा लिखा है तन्हा जी
पूजा अनिल

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

जब सुबह पहली बार कविता पढ़ी थी तो अलग विचार मन में उपजे थे। तब उतना महसूस नहीं कर पाया था, लेकिन अब कुछ और नज़रिये से महसूस कर रहा हूं।
अब यह कविता पढ़ने के बाद अखण्ड भारत, क्षेत्रीयता जैसी भावनाओं की बजाय मेरे दिमाग में एक पुरानी वैभवशाली सभ्यता उभरी, भारत नहीं...
कविता का यही आनन्द है कि बार बार अलग अर्थ मिलें।
धन्यवाद विश्वदीपक।

ajit singh का कहना है कि -

भारत के विस्मृत गौरवशाली अतीत और वर्त्तमान त्रासदी को व्यंग्य का पुट दिया गया है / सही प्रयास है / क्षेत्रवाद और भाषावाद करने वालों से भारतीय जन्त्मानस को सावधान करने की कोशिश की गयी है /
भारत अपने स्वर्णिम अतीत को भुला कर कभी भी समग्र भारत नही बन सकता / इसकी जड़ें सनातन संस्कृति का परिचायक हैं /

इस दिशा मे यह रचना सराहनीय है/

anuradha srivastav का कहना है कि -

मैं,
जोकि
बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, असम, मणिपुर
या दूसरे जगहों में
अलग नामों से बसता हूँ,
उत्तर ,दक्षिण
जैसे उपनामों में जिंदा हूँ,
एकता की छद्म जमीन में
मतभेद और बँटवारे के
बीज डाले खड़ा हूँ,
मोहनजोदड़ो की
की उसी मुर्दानगी का दूसरा नाम हूँ।
मैं,
और कोई नहीं
तुम्हारा
या फिर किसी का नहीं,
वही बीमार , घायल
भारत हूँ!!!!!!!

विश्वदीपक जी कविता आज के संदर्भ में विचलित करती है। प्रान्तीयता की पैरवी अखंडता को खोखला कर रही है।ऐसे समय में आपका लेखन निश्चय ही काबिले तारीफ है।

विपुल का कहना है कि -

तन्हा जी इसके पहले भी एक बार मैने पूरा सपष्टीकरण दिया था कि मैं क्यों आपकी कविताओं पर टिप्पणी करने से बचता हूँ | शायद याद होगा आपको...

खैर.. आपकी कविता निस्संदेह बहुत ही अच्छी है | अपनी बात को अच्छी तरह कह पाए हैं आप | थोड़े दिन पहले इसी विषय पर मैने भी कविता प्रकाशित की थी पर आप कहीं कम शब्दों में सब-कुछ कह गये हैं..| मैं क्या बोलूं.. सारी बातें कविता खुद कह रही है|
बहुत बहुत बधाई !

"राज" का कहना है कि -

Awesome....completely different creation...i must say deepak...u r going to sign lik a star vry soon...

anju का कहना है कि -

मैं,
और कोई नहीं
तुम्हारा
या फिर किसी का नहीं,
वही बीमार , घायल
भारत हूँ!!!!!!!

मैं!
भारत की संस्कृति और गौरव हमेशा महान थी
पर इसको सुनकर बीमार , घायल अच्छा नही लगा
अब भारत जातिवाद और कई बुराइयों का शिकार हो गया है

seema sachdeva का कहना है कि -

मैं,
और कोई नहीं
तुम्हारा
या फिर किसी का नहीं,
वही बीमार , घायल
भारत हूँ!!!!!!!

काश हम कह सकते कि अब मैं स्वस्थ भारत हूं , हालत ही कुछ ऐसे है कि........?......सीमा सचदेव

Avanish Gautam का कहना है कि -

achchi kavitaa. aur behtar ho sakati hai. fir bhi badiya. badhiya!

raybanoutlet001 का कहना है कि -

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