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Monday, March 10, 2008

ढूंढ़ते हो मुम्बई में राज कपूर, आजकल राज ठाकरे हैं यहाँ


मुम्बई में हो रही उत्तर भारतीयों के साथ ज्यादतियों पर बहुत से कलमकारों ने आवाज़ बुलद की है (किसका शहर, भूमिपुत्र, नफ़रत न घोलो सारी फ़िज़ा में)। आज ही विश्व दीपक 'तन्हा' ने तो सीधे तौर पर बाला साहब ठाकरे का सामना किया। इसी क्रम में मुंशी प्रेमचंद के साहित्यिक वंशज प्रेमचंद्र सहजवाला ने ग़ज़लनुमा रचना के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया भेजी है। आपकी नज़र है।

मुम्बई

आंख के ख़्वाब सब बुरे हैं यहाँ,
लोग किस कद्र सिरफिरे हैं यहाँ

ये किनारा तो समुन्दर का है पर
दिल के कुछ तंग दायरे हैं यहाँ

सिर्फ़ मरकज़ पे रौशनी क्यों है
क्योंकि गायब सभी सिरे हैं यहाँ

यह जगह इसलिए मुझे हैं पसंद
मेरे कुछ अश्क भी गिरे हैं यहाँ

एक शीशे में बहुत से चेहरे
दोस्त शीशे भी खुरदरे हैं यहाँ

सहर तक मैं और तुम आए थे
सिर्फ़ तेरे ही दिन फिरे हैं यहाँ

ढूंढ़ते हो यहाँ पे राज कपूर
आजकल राज ठाकरे हैं यहाँ

सब सितारों को ज़मानत है मिली
हथकडी में ज़र्रे ज़र्रे हैं यहाँ

मौत का खेल सभी ने खेला
चंद मुलजिम ही क्यों घिरे हैं यहाँ

मरकज़- वृत्त का केन्द्र, केन्द्र स्थल

-प्रेमचंद सहजवाला

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

anju का कहना है कि -

बहुत खूब प्रेमचन्द्र जी आपने बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी जिसका एक एक शेर चुन चुन कर लिखा गया है
मुम्बई में हो रही इस घटना पर खरी उतर रही है आपलोग इसी तरह अपने विचार लिखते रहिये

Anonymous का कहना है कि -

ढूंढ़ते हो यहाँ पे राज कपूर
आजकल राज ठाकरे हैं यहाँ

सब सितारों को ज़मानत है मिली
हथकडी में ज़र्रे ज़र्रे हैं यहाँ

मौत का खेल सभी ने खेला
चंद मुलजिम ही क्यों घिरे हैं यहाँ

प्रेमचन्द्र जी,जितना कहें कम है,बेहतरीन
शुभकामनाएं
आलोक सिंह "साहिल"

Anita kumar का कहना है कि -

यह जगह इसलिए मुझे हैं पसंद
मेरे कुछ अश्क भी गिरे हैं यहाँ


वाह बहुत ही मार्मिक रूप से अपनी बात कही, अच्छा लगा। लिखते रहिए

Sajeev का कहना है कि -

यह जगह इसलिए मुझे हैं पसंद
मेरे कुछ अश्क भी गिरे हैं यहाँ
प्रेम जी बहुत खूब.... आपका अंदाज़ भी खूब लगा .

seema gupta का कहना है कि -

ये किनारा तो समुन्दर का है पर
दिल के कुछ तंग दायरे हैं यहाँ

सिर्फ़ मरकज़ पे रौशनी क्यों है
क्योंकि गायब सभी सिरे हैं यहाँ

यह जगह इसलिए मुझे हैं पसंद
मेरे कुछ अश्क भी गिरे हैं यहाँ
" बहुत सुंदर ग़ज़ल, हर शब्द अपने आप में एक शेर , बहुत भावनात्मक अभीव्य्क्ती "
Regards

Anonymous का कहना है कि -

यह जगह इसलिए मुझे हैं पसंद
मेरे कुछ अश्क भी गिरे हैं यहाँ
बहुत खूब

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

सरस और सारगर्भित ग़ज़ल ! एक-एक शे'र में गहरी संवेदना एवं तीक्ष्ण व्यंग्य !
बहुत खूब !

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

प्रेम जी,

पिछ्ली गजल में आपने यह बोला था कि आप गजल सीख रहे हों..
मगर ये गजल देखकर मुझे लग रहा है कि

आपके पास काला कौवा आयेगा जी....
भले ही काटे ना पर डरायेगा जी...

इसको नौसिखिये की गजल कहा जाये या नो - सिखिये की..

बहुत ही अच्छी गजल बनी है .. प्रथम गियर ऐसा है तो टोप गियर कैसा होगा......

RAVI KANT का कहना है कि -

एक शीशे में बहुत से चेहरे
दोस्त शीशे भी खुरदरे हैं यहाँ

वाह-वाह प्रेमचंद जी, मज़ा आ गया।

नागेन्द्र पाठक का कहना है कि -

wah premchand ji kamal kar diya aapne to. aaj to har jagah bal thakre hin dekhne ko milenge. kyonki aisa karna bahut hin aasan hota hai. Raj kapoor ko pachas varson men safalta mili parantu Jar thakre? Kya aap nahin jante?Par ek bat hai ki jo paudha teji se badha hai wahi paudha aapna jiwan kal jald hin samapta kar leta hai. Dhanyawad , aise hin aur likhiye. Nagendra pathak

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