अधकाच्ची अधपक्की
भाषा कैसी भी हो
कुछ तो बोलो..
खामोशी की भाषा में
कुछ बातें ठहरी रह जाती हैं
आँखों के भीतर गुमसुम हो
गहरी गहरी रह जाती हैं
मैं कब कहता हूँ मेरे जीवन में
उपवन बन जाओ
मैं कब कहता हूँ तुम मेरे
सपनों का सच बन ही जाओ?
मैं कब कहता हूँ तुम मेरे
सपनों का सच बन ही जाओ?
लेकिन अपने मन के भीतर
की दीवारों की कैद तोड कर
शिकवे कर लो, लड लो
या रुसवा हो लो
कुछ तो बोलो..
मैनें अपने सपनों में तुमको
अपनों से अपना माना है
तुम भूल कहो
मैने बस अंधों की तरह
मन की हर तसवीर
बताओ सही मान ली
देखो मन अंधों का हाथी
हँस लो मुझ पर..
मैने केवल देखा है
ताजे गुलाब से गूंथ गूथ कर
बना हुआ एक नन्हा सा घर
तुम उसे तोड दो
लेकिन प्रिय
यह खामोशी खा जायेगी
मेरी बला से, मरो जियो
यह ही बोलो
कुछ तो बोलो..
ठहरी ठहरी बातों में चाहे
कोई बेबूझ पहेली हो
या मेरे सपनों का सच हो
या मेरे दिल पर नश्तर हो
जो कुछ भी हो बातें होंगी
तो पल पल तिल तिल मरनें का
मेरा टूटेगा चक्रव्यूह
या मन को आँख मिलेगी प्रिय
या आँखों को एक आसमान
कोई बेबूझ पहेली हो
या मेरे सपनों का सच हो
या मेरे दिल पर नश्तर हो
जो कुछ भी हो बातें होंगी
तो पल पल तिल तिल मरनें का
मेरा टूटेगा चक्रव्यूह
या मन को आँख मिलेगी प्रिय
या आँखों को एक आसमान
तुम मत सोचो मेरे मन पर
बिजली गिर कर
क्या खो जायेगा
तुम बोलो प्रिय
कुछ तो बोलो
अधकच्ची अधपक्की
भाषा कैसी भी हो..
*** राजीव रंजन प्रसाद
२८.०५.१९९७
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाह वाह राजीव जी सुंदर प्रेम गीत ....कुछ तो बोलो
लेकिन अपने मन के भीतर
की दीवारों की कैद तोड कर
शिकवे कर लो, लड लो
या रुसवा हो लो
कुछ तो बोलो..
पहली पंक्ति में " अधकाच्ची " लिख दिए है ठीक कर लें
बहुत सुंदर राजीव जी..
लेकिन प्रिय
यह खामोशी खा जायेगी
मेरी बला से, मरो जियो
यह ही बोलो
कुछ तो बोलो..
तुम मत सोचो मेरे मन पर
बिजली गिर कर
क्या खो जायेगा
तुम बोलो प्रिय
कुछ तो बोलो
अधकच्ची अधपक्की
भाषा कैसी भी हो..
" बहुत सुंदर रचना ,दिल को भा गई, और रचना के साथ चित्र आँखों को जैसे ठंडक पहुंचा गया, बहुत खूब एक एक शब्द बोलता सा लगा"
Regards
बहुत सही चित्रण किया है रति प्रेम का बहुत बहत बधाई वियोग का समावेश कविता को भावनात्मक बना रही है
सुन्दर रजीव जी सुन्दर...
आपकी अन्य कविताओं से एक दम भिन्न, भिन्न होना शायद इसलिये कि प्रेम पर है..
मैनें अपने सपनों में तुमको
अपनों से अपना माना है
तुम भूल कहो
मैने बस अंधों की तरह
मन की हर तसवीर
बताओ सही मान ली
देखो मन अंधों का हाथी
हँस लो मुझ पर..
मैने केवल देखा है
ताजे गुलाब से गूंथ गूथ कर
बना हुआ एक नन्हा सा घर
तुम उसे तोड दो
लेकिन प्रिय
यह खामोशी खा जायेगी
मेरी बला से, मरो जियो
यह ही बोलो
बहुत अच्छा ..
राजीव जी हमारे पास बोलने के लिए शब्द नही है येही कहेंगे बहुत अच्छा लिखा है
विशेषकर यह पंक्तियाँ
उपवन बन जाओ
मैं कब कहता हूँ तुम मेरे
सपनों का सच बन ही जाओ?
लेकिन अपने मन के भीतर
की दीवारों की कैद तोड कर
शिकवे कर लो, लड लो
या रुसवा हो लो
कुछ तो बोलो..
बहुत बहुत बधाई
शिकवे कर लो, लड लो
या रुसवा हो लो
कुछ तो बोलो..
बहुत खूब राजीव जी। आपकी पुरानी डायरी से निकली रचनाएँ, नज़्म आपके हर रूप से परिचय कराते हैं। प्रेम पर लिखी आपकी हर कविता एक अलग हीं माहौल बनाती हैं, मज़ा आ जाता है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
सपनों का सच बन ही जाओ?
लेकिन अपने मन के भीतर
की दीवारों की कैद तोड कर
शिकवे कर लो, लड लो
या रुसवा हो लो
कुछ तो बोलो..
बेहद खूबसूरत गीत लिखा है आपने राजीव जी ..बहुत अच्छा लगा इसको पढ़ना !!
मैं कब कहता हूँ मेरे जीवन में उपवन बन जाओ
मैं कब कहता हूँ तुम मेरे
सपनों का सच बन ही जाओ?
लेकिन अपने मन के भीतर
की दीवारों की कैद तोड कर
शिकवे कर लो, लड लो
या रुसवा हो लो
मैनें अपने सपनों में तुमको
अपनों से अपना माना है
तुम मत सोचो मेरे मन पर
बिजली गिर कर
क्या खो जायेगा
Yeh kuch panktiyaan bin bole hi sab vyakt kar deti hai.kavita aachi ban padi hai...yeh panktiyaan seedhe man bhed rahi hain.
अपने मन के भीतर
की दीवारों की कैद तोड कर
शिकवे कर लो, लड लो
या रुसवा हो लो
कुछ तो बोलो..
panktiyaan man ko bha gai.............seema
लेकिन प्रिय
यह खामोशी खा जायेगी
मेरी बला से, मरो जियो
यह ही बोलो
कुछ तो बोलो
बहुत सुंदर रचना ,बहुत बधाई
चुप्पी तोडने का आवहन करती हुई सुन्दर भाव भरी रचना.
एक गाना याद आ गया
कोई शिकवा नहीं, कोई शिकायत भी नहीं
और तुम्हें वो पहली सी मुहव्वत भी नहीं
राजीव जी
भावप्रधान रचना । इसमें भावों का आवेग है जो प्रभावित करता है।
ठहरी ठहरी बातों में चाहे
कोई बेबूझ पहेली हो
या मेरे सपनों का सच हो
या मेरे दिल पर नश्तर हो
जो कुछ भी हो बातें होंगी
तो पल पल तिल तिल मरनें का
मेरा टूटेगा चक्रव्यूह
या मन को आँख मिलेगी प्रिय
या आँखों को एक आसमान
ए क सशक्त रचना के लिए बधाई
प्रेम हो या फिर कोई सम-सामयिक विषय राजीव जी ... आपकी कलम से निकला हर लफ्ज़ सीधे दिल तक पहुँचता है |
अधिक क्या कहूँ? बहुत,बहुत खूबसूरत लिखा है आपने ...
"सपनों का सच बन ही जाओ?
लेकिन अपने मन के भीतर
की दीवारों की कैद तोड कर
शिकवे कर लो, लड लो
या रुसवा हो लो
कुछ तो बोलो.."
राजीव जी, बहुत प्यारी रचना!!
मैं कब कहता हूँ मेरे जीवन में उपवन बन जाओ
मैं कब कहता हूँ तुम मेरे
सपनों का सच बन ही जाओ?
लेकिन अपने मन के भीतर
की दीवारों की कैद तोड कर
शिकवे कर लो, लड लो
या रुसवा हो लो
कुछ तो बोलो..
बहुत-बहुत पसंद आई।
आप जब भड़कते हैं तो ज्यादा प्यारे लगते हैं। ;)
प्यार भी अच्छा कहते हैं वैसे... :)
राजीव जी !
ठहरी ठहरी बातों में चाहे
कोई बेबूझ पहेली हो
.... ..
कुछ भी हो बातें होंगी
तो पल पल तिल तिल मरनें का
मेरा टूटेगा चक्रव्यूह
या मन को आँख मिलेगी प्रिय
या आँखों को एक आसमान
.....
तुम बोलो प्रिय
कुछ तो बोलो
अधकच्ची अधपक्की
भाषा कैसी भी हो..
...मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ
शायद संवाद का अभाव ... कटु संवाद से भी अधिक पीड़ा कारक होता है
शुभकामना
बहुत खूब राजीव जी। प्रेम के भावों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ती है किसी की खामोशी तोडने के लिये अलफ़ाज़ का ये मायाजाल यकीनन प्रभावी है मुबारक हो
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)