तुम प्रेम हो
या बस उसका भ्रम
नहीं जानती
पर जीवन बेल
तुमसे रस पाकर
फूलती फलती जा रही है
या बस उसका भ्रम
नहीं जानती
पर जीवन बेल
तुमसे रस पाकर
फूलती फलती जा रही है
इस पर आस के
कितने ही सुन्दर फूल
खिल आए हैं
मन का सरोवर
मीठे जल से लबालब है
पता नहीं मौसम बदला है
या मन…
पर मेरी बगिया
महक उठी है
कानों में हर पल
एक मीठी सी धुन
गूँजती रहती है
पीहू-पीहू--
झंकृत है तन
आह्लादित है मन
छलकता है हृदय
मीठे पानी का
यह अजस्र स्रोत
कहाँ से फूट रहा है
प्रेम की अतिशयता
चंचलता जगा रही है
मन करता है
अपनी इस खुशी को
अंबर में लिख आऊँ
हवाओं के हवाले कर दूँ
अथवा गीत बनकर
कोकिल कंठ में समाऊँ
सबको सुनाऊँ
इसकी सुगन्ध पहुँचाऊँ
हर दिल को महकाऊँ
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
तुम प्रेम हो
या बस उसका भ्रम
नहीं जानती
पर जीवन बेल
तुमसे रस पाकर
फूलती फलती जा रही है
" बहुत सुंदर, सरल से शब्दों मे मन के भावों की सुंदर अभीवय्क्ती "
Regards
सरलता और भाव के अनूठे सौन्दर्य से आलोडित अद्भुत...... प्रणाम
मन के मोहक भावों से सजी सुंदर रचना के लिए ढेरों बधाई
शोभा जी,
बहुत सुन्दर कविता, प्रेम की अनुभूति को शब्दों में पिरोये हुए..
tt123मन करता है
अपनी इस खुशी को
अंबर में लिख आऊँ
हवाओं के हवाले कर दूँ
अथवा गीत बनकर
कोकिल कंठ में समाऊँ
सबको सुनाऊँ
-- सुंदर सपना है |
अवनीश तिवारी
झंकृत है तन
आह्लादित है मन
छलकता है हृदय
मीठे पानी का
यह अजस्र स्रोत
कहाँ से फूट रहा है
प्रेम की अतिशयता
चंचलता जगा रही है
सुंदर मनोभाव को दर्शाती कोमल सी रचना .बहुत अच्छी लगी शोभा जी!!
प्रेम की अनुभूति को इतने सहज ढंग से प्रस्तुत करने के लिए बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
शोभा जी,
बहुत प्यारी रचना!!
पता नहीं मौसम बदला है
या मन…
पर मेरी बगिया
महक उठी है
कानों में हर पल
एक मीठी सी धुन
गूँजती रहती है
पीहू-पीहू--
बधाई स्वीकारें।
शोभा जी!
बहुत हीं खूबसूरत प्रेम गीत है। हृदय स्पंदित एवं तरंगित हो गया।
बधाई स्वीकारें!
-विश्व दीपक ’तन्हा’
मन करता है
अपनी इस खुशी को
अंबर में लिख आऊँ
हवाओं के हवाले कर दूँ
अथवा गीत बनकर
कोकिल कंठ में समाऊँ
सबको सुनाऊँ
सुनाइये न..... सोच क्या रही हैं .....सुंदर रचना शोभा जी...
शोभा जी , आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी
प्रकर्ति प्रेम झलकता है वह प्रकृति जो इस भीड़ भाड़ की दुनिया से अलग है
मन करता है
अपनी इस खुशी को
अंबर में लिख आऊँ
हवाओं के हवाले कर दूँ
अथवा गीत बनकर
कोकिल कंठ में समाऊँ
सबको सुनाऊँ
बहुत अच्छे
शोभा जी,
प्रेम रस से सरोबार रचना बहुत पसन्द आई.
बधाई
पता नहीं मौसम बदला है
या मन…
पर मेरी बगिया
महक उठी है
मन करता है
अपनी इस खुशी को
अंबर में लिख आऊँ
हवाओं के हवाले कर दूँ
रचना बहुत अच्छी है शोभा जी, बधाई स्वीकारें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
झंकृत है तन
आह्लादित है मन
छलकता है हृदय
मीठे पानी का
यह अजस्र स्रोत
कहाँ से फूट रहा है
प्रेम की अतिशयता
चंचलता जगा रही है
सरल शब्दों में इतनी गूढ़ता ! शोभा दी ! बहुत खूब !
बहुत बढ़िया ,बहुत खूबसूरत ,ह्म्म्म्म्म...और और
प्यारी-सी कविता :-)
सुनीता यादव
इस बार आपकी लेखनी ने बहुत प्रभावित किया। आपका लिखने का ढंग निखर गया है। खुशी हो रही है इस कविता को पढ़कर।
मन करता है
अपनी इस खुशी को
अंबर में लिख आऊँ
हवाओं के हवाले कर दूँ
अथवा गीत बनकर
कोकिल कंठ में समाऊँ
सबको सुनाऊँ
_---बहुत सुंदर कविता बन पड़ी है.
सरल शब्दों का चयनऔर विषय प्रकृति की क़रीब होने से मन को लुभा रही है.
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