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Thursday, February 07, 2008

मेरी खताएं....


महक रहीं हैं मेरी साँसों में वफायें तेरी
हर सिम्त तेरे अक्स तो तरसे हैं निगाहें मेरी !!
अदा औ" शर्म का खुद पर श्रृंगार ढाला हैं
जान ना ले लें किसी की ये अदाएं तेरी !!
तेरी धड़कन ने मेरा नाम पुकारा होगा
आज तक जेहन में सुनता हूँ सदायें तेरी !!
कैसे मानूँ कि मुझे भूल गया हैं तू "मन"
मुझ को हर लम्हा दुलारे हैं दुआएं तेरी
"हम ने तो सिर्फ मुहब्बत ही करी थी यारो
उसने उँगली पे गिना दी थी खताये मेरी " !!

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

mehek का कहना है कि -

तेरी धड़कन ने मेरा नाम पुकारा होगा
आज तक जेहन में सुनता हूँ सदायें तेरी !!
बहुत बढ़िया कहा है,बधाई |

Anonymous का कहना है कि -

waahm, badiya hai,,,ungliyon per ginadi khatein meri,, kuchh pane ke liye khona bhi padta hai...
Surinder Ratti

seema gupta का कहना है कि -

हम ने तो सिर्फ मुहब्बत ही करी थी यारो
उसने उँगली पे गिना दी थी खताये मेरी " !!

" तुझको भी याद याद नही जब वो वफायें मेरी ,
आज फ़िर क्यों बातें आकर इस कद्र रुलायें तेरी, "

Regards

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

विपिन जी,

कमाल की लेखनी है आपके पास

हम ने तो सिर्फ मुहब्बत ही करी थी यारो
उसने उँगली पे गिना दी थी खताये मेरी " !!

बहुत सुन्दर..

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सुंदर है |
बहुत अच्छा | एक बात नयी मिली - अपने उपनाम का प्रयोग अन्तिम पंक्ति मे ना करके पहले किया है |

मेरे लिए यह जानना नया था |

अवनीश तिवारी

RAVI KANT का कहना है कि -

हम ने तो सिर्फ मुहब्बत ही करी थी यारो
उसने उँगली पे गिना दी थी खताये मेरी

क्या बात है विपिन जी!!!!

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी रचना पर मेरी भी दाद कबूल करे :)
सादर
हेम

विश्व दीपक का कहना है कि -

विपिन जी,
मैं आपकी गज़ल पढकर थोड़ा कन्फ़्यूज हो गया हूँ। सजीव जी की एक टिप्पणी के जवाब में गुरूवर पंकज सुबीर जी ने कहा था कि "मतले में काफिया और रदीफ जिसे बना लें , उसे बरकरार रखें।" परंतु आपने मतले में हीं "वफायें तेरी" एवं "निगाहें मेरी" लिखी हैं..अगर काफिया "वफायें,निगाहें, अदाएँ..." में "एँ" को बनाना था तो रदीफ को या तो "तेरी" या फिर "मेरी" कोई एक रखना चाहिए था। लेकिन आपने दोनों को रखा है। आगे भी आपने "मेरी" एवं "तेरी" दोनों का प्रयोग किया है। मेरे अनुसार, जितना मैने पंकज जी से जाना एवं सीखा है, ऎसा नहीं होता।

मैं भी पहले-पहल जब लिखा करता था, तो ऎसे कई सारे प्रयोग कर डालता था, लेकिन पंकज जी की बात सुनकर मैने ऎसा करना बंद कर दिया है। अब आप हीं कहें कि इसे नए जमाने की गज़ल मान कर स्वीकार कर लूँ या एक उम्दा एवं नियमबद्ध गज़ल मानकर इसमें थोड़े-से सुधार की गुंजाइश मानूँ।

रही बात भाव की तो मुझे अंतिम शेर
"हम ने तो सिर्फ मुहब्बत ही करी थी यारो
उसने उँगली पे गिना दी थी खताये मेरी "
बहुत हीं पसंद आया।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

गीता पंडित का कहना है कि -

हम ने तो सिर्फ मुहब्बत ही करी थी यारो
उसने उँगली पे गिना दी थी खताये मेरी

बहुत सुन्दर..

Alpana Verma का कहना है कि -

माफ़ कीजियेगा विपिन जी -मुझे यह ग़ज़ल साधारण ही लगी--

Anonymous का कहना है कि -

विपिन जी गजल अच्छी लगी पर दिल को छू जाए ये कमी रह गई,खैर,बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

जबकि सभी पंकज जी से ग़ज़ल की कक्षाएँ ले रहे हैं, वैसे में ग़ज़ल के शिल्प पर किसी की टिप्पणी न आना चिंता का विषय है। विपिन जी आप खुद पहले उनके शागीर्द बनें।

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