1
चाँद,क्यों सहते हो तुम
शायरॉं के इतने ज़ुल्म!
कुछ सीखो!
दहेज की सताई
ख़ुदकुशी करने वाली लड़की से
और...
2
आज आईने से गायब था
मेरा अक्स!
शायद आँसुओं में घुलकर
बह गया कहीं!
मिले तो बताना ..
3
आधी रात को
चाँद आया कुछ तारों के साथ
मुझे धमकाया और जला गया
वो सारे पन्ने..
जिनमें लिखा था मैने उसे
बेवफा!
4
उसकी हर चीज़ प्यारी है मुझे
मैं नहीं रोता,कभी नहीं!
डर है,
गम कम हो जाएगा!
5
ठंड से बचने के लिए
ओढ़ लिया मैने कंबल
यादों के लिए भी एक होता,
तो क्या खूब होता!
6
पैसे रखने को बटुआ खोला
तो तस्वीर में मां मुस्कुरा दी!
सालों पहले
तड़प कर मरी थी कैंसर से..
7
पाठ चल रहा है,
सिर्फ़ शुद्ध घी का दीपक
पवनपुत्र को स्वीकार है..
कल सर्वे था,पता चला,
गाँव का हर तीसरा बच्चा
कुपोषण का शिकार है!
8
यहाँ धर्म की लकड़ी जलाकर
इंसानी बर्तनों में
जज़्बात उबाले जाते हैं!
देखो..मेरा प्यारा भारत
चूल्हा बन गया है !
क्षणिकाएँ
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
विपुल जी!
बहुत सुंदर, एक से बढ़कर एक।
सब की सब स्तब्ध करने वालीं हैं।
बधाई
उसकी हर चीज़ प्यारी है मुझे
मैं नहीं रोता,कभी नहीं!
डर है,
गम कम हो जाएगा!
" बहुत सुंदर , अच्छी लगीं ये क्षणिकाएँ "
Regards
आह !! विपुल भाई...... शब्द नहीं हैं.. सब एक से बढ़ कर एक. इन्हें क्षणिकाएँ मत कहिये.
"पैसे रखने को बटुआ खोला
तो तस्वीर में मां मुस्कुरा दी!
सालों पहले
तड़प कर मरी थी कैंसर से.."
ये... बिल्कुल ये, रोज़ होता था मेरे साथ सालों, फिर मैं ने वो मुस्कान बटुए से हटा कर अपने सिरहाने रखे एक मेज़ पर सजा दी है. लेकिन माँ की मुस्कराहट, और तड़प .... वो नहीं बदले, न कम हुए.
उत्कृष्ट क्षणिकाएँ हैं। दूसरी और चौथी थोड़ी कम प्रभावित करती हैं बाकी सभी बेमिशाल हैं। बधाई।
चाँद,क्यों सहते हो तुम
शायरॉं के इतने ज़ुल्म!
कुछ सीखो!
दहेज की सताई
ख़ुदकुशी करने वाली लड़की से
और...
-- क्या व्यंग है | आसमान से सीधे ज़मीन पर प्रहार |
पैसे रखने को बटुआ खोला
तो तस्वीर में मां मुस्कुरा दी!
सालों पहले
तड़प कर मरी थी कैंसर से..
-- यह भी बहुत सुंदर है |
एक मुझे याद आ गया किसी सफल लेखक का ...
"किसी को घर मिला हिस्से मे
किसी के हिस्से दुन्का आयी
मैं घर मे सबसे छोटा था
मेरे हिस्से मे माँ आयी | "
सुंदर रचना के लिए मित्र बधाई |
अवनीश तिवारी
यहाँ धर्म की लकड़ी जलाकर
इंसानी बर्तनों में
जज़्बात उबाले जाते हैं!
देखो..मेरा प्यारा भारत
चूल्हा बन गया है !....... लाजवाब पंक्तियाँ.....बधाई मेरे भाई!
ये अच्छी लगी
चाँद,क्यों सहते हो तुम
शायरॉं के इतने ज़ुल्म!
कुछ सीखो!
दहेज की सताई
ख़ुदकुशी करने वाली लड़की से
और...
विपुल, मैं अब तक काफ़ी क्षणिकाएं लिख चुका हूं। अच्छी भी और बुरी भी.... और अपना अनुभव तुमसे बाँटना चाहता हूं।
कविता ऐसी विधा है जो अनायास ही लिखी जाती है। उसमें जितना अंश सायास होगा, वह उसे उतना ही हल्का करेगा। क्षणिका कविता की विशेष विधा है जिसमें पूरा बोझ चन्द पंक्तियों पर ही आ जाता है अर्थात क्षणिका का कोई भी अंग बिगड़ा तो पूरी क्षणिका खराब होते देर नहीं लगती।
मुझे क्षणिकाओं से कुछ अधिक अपनापन लगता है इसीलिए तुम्हें टोक रहा हूं। मैंने शायद चाँद को ज्यादा ही इस्तेमाल कर लिया है, इसलिए तुम्हारे चाँद वाले बिम्ब और क्षणिकाएं नई नहीं लगीं।
कवि का काम नए बिम्ब, नए उपमान ढूंढ़ते रहना है। मैं भी ढूंढ़ रहा हूं। तुम भी ढूंढ़ो।
और एक सलाह विशेषकर क्षणिकाओं के लिए...
इन्हें अपने आप आने दो। अच्छी क्षणिकाएं हमेशा नहीं लिखी जा सकतीं।
किस किस का बयान करुं १..२....७..८
सभी लाजवाब
पाठ चल रहा है,
सिर्फ़ शुद्ध घी का दीपक
पवनपुत्र को स्वीकार है..
कल सर्वे था,पता चला,
गाँव का हर तीसरा बच्चा
कुपोषण का शिकार है!
पाठ चल रहा है,
सिर्फ़ शुद्ध घी का दीपक
पवनपुत्र को स्वीकार है..
कल सर्वे था,पता चला,
गाँव का हर तीसरा बच्चा
कुपोषण का शिकार है!
आज आईने से गायब था
मेरा अक्स!
शायद आँसुओं में घुलकर
बह गया कहीं!
मिले तो बताना .
सुंदर
गौरव जी.. कवि का काम नये बिंब और उपमान ही ढूँढना नहीं बल्कि उससे भी बढ़कर कुछ है.. आप समझ गये होंगे !
आप यह ना समझें कि मैं आपकी कही बातों को नकारात्मक अर्थ में ले रहा हूँ .. बल्कि यह तो मेरे लिए बहुत अच्छी बात है कि आप मुझे अपना समझ कर कुछ सिखा रहे हैं | क्षणिका मेरी प्रिय विधा नहीं है मुझे तो करुण रस पर नयी कविता लिखना ही अच्छा लगता है | यकीन मानिए मैने प्रेम जैसे विषय पर लिखना अभी-अभी शुरू किया है आपसे और तन्हा जी से प्रेरित होकर| मैं इन विषयों पर लिखता हूँ बस इसीलिए क्योंकि सोचता हूँ कि एक कवि को हर विषय पर लिखना चाहिए ,संपूर्ण होना चाहिए |
क्षणिकाओं में मैने पूरी कोशिश की है कि ये कुछ चोंका पाएँ इसीलिए पिछली बार की तरह सिर्फ़ गम वाली क्षणिकाएँ ना देकर अन्य विषयों को छूने का प्रयास भी किया जैसे अंत की तीन क्षणिकाएँ | मैने आपकी लगभग सारी क्षणिकाएँ पढ़ी हैं. सचमुच असाधारण हैं वे और चाँद वाली तो एक दम लाजवाब हैं !
मैं तो बस सीख रहा हूँ ...मैने सोचा कि चाँद को सिर्फ़ अपने प्रेम से ना जोड़कर कुछ ज़मीनी हक़ीकत से जोड़ा जाए इसीलिए प्रथम वाली क्षणिका लिखी |
पिछली बार शैलेश जी ने टिप्पणी की थी
"मैं अवनीश जी से सहमत हूँ। आपकी क्षणिकाएँ हिन्द-युग्म की क्षणिकाओं के मध्य गुम हो सकती हैं, क्योंकि सभी क्षणिकाएँ अच्छी तो हैं, लेकिन इनके विषय अनूठे नहीं हैं। जिस प्रकार आप अपनी अन्य कविताओं में सामान्य कवियों की तरह न लिखकर बुधिया के माध्यम से सामाजिक विडम्बनाओं को उठाते हैं, उसी तरह क्षणिकाओं को भी गम्भीर बनाइए।"
तो इस बार उनकी सलाह पर अमल करने की कोशिश की | पता नहीं कहाँ तक सफल हुआ ...
विपुल जी हिल गया मैं.किस किस क्षणिका की तारीफ करूँ?बेहतरीन
मुबारक हो सर जी
आलोक सिंह "साहिल"
vipul ...........
tumne hamesha ki tarah hi choukaya........
jyada kuch nahi kahoonga kyunki baki sab kah chuke,,,,,,
han ye shanikayen vishesh pasand aayi
आधी रात को
चाँद आया कुछ तारों के साथ
मुझे धमकाया और जला गया
वो सारे पन्ने..
जिनमें लिखा था मैने उसे
बेवफा!
4
उसकी हर चीज़ प्यारी है मुझे
मैं नहीं रोता,कभी नहीं!
डर है,
गम कम हो जाएगा!
5
ठंड से बचने के लिए
ओढ़ लिया मैने कंबल
यादों के लिए भी एक होता,
तो क्या खूब होता!
aur ye wali vishesh napasand aayi........
ya shyad mai nahi nikal paya arth par...mujhe kuch arth nikalta prteet nahi hua
आज आईने से गायब था
मेरा अक्स!
शायद आँसुओं में घुलकर
बह गया कहीं!
मिले तो बताना
aaine se aks kyun gayab ho gaya....
isaka aansoono se dhulne k alava koi aur vishesh karan nahi pata hoon..
tumhara mitr piyush
Very nice Vipul
No.5 and 7 -
realy-2 so good,
I've no words to explain.....
But only say to you-
LAGE RAHE Boss
-Nitin Sharma
Very nice Vipul
No.5 and 7 -
realy-2 so good,
I've no words to explain.....
But only say to you-
LAGE RAHE Boss
-Nitin Sharma
sir bahul hi gahri baateen likhi hai aapne................especialy ".....gam ho jayega" wali line bahut aachchi lagi.............
विपुल भाई!
हर क्षणिका सच में खूबसूरत है। सब एक-से-बढकर-एक। इसलिए किसी एक को चुन नहीं पाया।
हाँ, गौरव भाई की बात सुनना...वो क्षणिकाओं के उस्ताद हैं।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
मैं उस्ताद नहीं हूं विपुल, लेकिन मैंने क्षणिकाओं पर बहुत दिनों तक काम किया है इसलिए अपना अनुभव तुम्हें बताया।
यह तुमने सही कहा कि अभिव्यक्ति ही सबसे ऊपर है...उपमाओं और बिम्बों से भी।
विपुल आप की सभी क्षणिकाएँ पसंद आयीं.
सभी में ,सरलता के साथ अपनी बात कह पाने की
ख़ास बात से इन्हें लोकप्रिय होने में देर नहीं लगेगी.
विपुल जी!
उसकी हर चीज़ प्यारी है मुझे
मैं नहीं रोता,कभी नहीं!
डर है,
गम कम हो जाएगा!
आज आईने से गायब था
मेरा अक्स!
शायद आँसुओं में घुलकर
बह गया कहीं!
मिले तो बताना ..
" बहुत सुंदर क्षणिकाएँ "
बधाई
स-स्नेह
गीता पंडित
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