पढ़त-पढ़त पलकें घिसीं,लिखत लिखत सब पोर
झूठी शौकत शान की, चमक दिखै सब ओर
चमक दिखै सब ओर, कान में घुसा मोबाइल
डाला चौथा गियर, दिखाई फिर स्टाइल
एक्सीलेटर कान, ऐंठ रहे होड़ होड़ में
बैंगन की चाहे मिले सिकाई गोड़ गोड़ में
लिए हाथ में ताश करें बकवास रात-दिन खेलें पत्ते
बड़ी गनीमत, मिलें किसी दिन, अगर निहत्थे
जैसा साइलेंसर, वैसी ही इनकी बातें ऊँची
लिखें इबादत दीवारों पर बिन कलम औ कूँची
फिरें थूकते पीक और धूँआं गरज-गरज कर
जानबूझ कर टकराते जो निकलो बचकर..
बाप के पैसे,कहाँ से कैसे? बिना फिकर के मज़े उडाते..
कालिज फीस के पैसे भी सट्टे में जाते..
भूख लगी तो गुट्खा फाँका, प्यास लगी तो सिगरेट-बीड़ी
छोड़ो फिक्र अब, करो फक्र अब, होनहार है आज की पीढ़ी
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
एक एक शब्द सचा हे,मन को छु गई आप की कविता के शब्द..बाप के पैसे,कहाँ से कैसे? बिना फिकर के मज़े उडाते..
कालिज फीस के पैसे भी सट्टे में जाते..
बाप के पेसे जहां से आते,बच्चे मय व्याज वापिस लोटाते
भुपिन्द्र जी,धन्यवाद सुन्दर काविता के लिऎ
होनहार नही कहा जा सकता ऐसी पीढ़ी को,पर लिखा बहुत सही है,उन्हें सुधारना भी तो हमारा हि कर्तव्य है,कही parvarish mein kami ya generation gap kahein.
kavita bahut achhi hai,sachhai darshati,seems google toggle is not working here,sorry for half comment in roman.
चमक दिखै सब ओर, कान में घुसा मोबाइल
डाला चौथा गियर, दिखाई फिर स्टाइल
एक्सीलेटर कान, ऐंठ रहे होड़ होड़ में
बैंगन की चाहे मिले सिकाई गोड़ गोड़ में
लिए हाथ में ताश करें बकवास रात-दिन खेलें पत्ते
बड़ी गनीमत, मिलें किसी दिन, अगर निहत्थे
" ह्म्म कहाँ से लातें हैं आप इतना हास्य , बहुत अच्छी मन को गुदगुदाने वाली रचना"
आधुनिक लोगों पर पुराने तरीके से व्यंग अच्छा है |
अवनीश तिवारी
अच्छी हास्य -व्यंग्य कविता है-बिल्कुल सही राह पकडी है आपने इस बार--एक दम मजेदार कविता बनी है - आज तो बच्चे भी खूब हँसे इसे पढ़ कर----आज का सच प्रस्तुत करती एक सफल कविता -
छोड़ो फिक्र अब, करो फक्र अब, होनहार है आज की पीढ़ी
वाह मज़ा आ गया पढ़ के .आज की पीढ़ी पर बहुत सही लिखा है आपने राघव जी बधाई आपको !
अच्छा व्यंग्य कसा है राघव भाई
होनी चाहिये ऐसों की कडी सुताई
राघव जी, अच्छा प्रहार किया है आज की पीढ़ी पर।
भूख लगी तो गुट्खा फाँका, प्यास लगी तो सिगरेट-बीड़ी
छोड़ो फिक्र अब, करो फक्र अब, होनहार है आज की पीढ़ी
आज की पीढ़ी पर
बहुत सही व्यंग्य ....
पर..... कही उसे
सुधारना भी हमारा कर्तव्य है...
राघव जी,
बधाई |
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