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Wednesday, February 06, 2008

चाँद और क्षणिकाएँ


चाँद-1
तुम आज रात
छुट्टी लेकर
पिक्चर देख आओ चाँद
उसने कहा है
कि वो आएगी

मेरे ख़ुदा
पगली,
कम से कम
तू तो नास्तिक मत कहा कर मुझे,
सबको है हक़
अपना ख़ुदा चुनने का


चाँद-2
चाँद की चाशनी में
डुबो डुबोकर पी थी रात
आज सुबह से
चाँदी सा हूँ


आदतें
मैं पेड़ बन गया था
और वो लकड़हारा
उसकी भूख थी बेचारी
और मेरी आदत थी
इश्क़ में फ़ना होना


चाँद-3
मेरे माथे की पट्टियाँ बदलता रहा
कोई रात भर
सुबह से सुन रहा हूँ
शॉल ओढ़कर कहीं गया था चाँद


मौसम
तुमने जुल्फ़ों से
ढक लिया है सूरज
और झुक गई हैं तुम्हारी ठंडी साँसें
मुझे चूमने को
नादान शहरी फिर भी कहते हैं
कि कोहरा है बहुत


चाँद-4
तुम से मोहब्बत
जैसे कोई
चाँद के उजले चकले पर
रात भर बेलता रहे रोटियाँ
और सुबह
भूख से मर जाए


भ्रम
तेरी पदचाप है
या बजते हैं मेरे कान?
तेरा चेहरा है
या आँखें भरमा गई हैं?
तेरा इनकार है
या मर गया हूँ मैं?

चाँद-5
सुना है कि
चाँद पर एक मोहल्ला है
जहाँ माँएं नहीं सिखाती बच्चों को
कि मोहब्बत करोगे
तो दोज़ख़ में जलोगे


'?'
कोई याद आता है
पता नहीं कौन?
मैं घुला जाता हूँ याद में
पता नहीं किसकी?
कोई तो है मेरा कहीं
है क्या?


चाँद-6
तारों की छाँव में
झूठ बोला था उसने
अब मर गया
कोई कहता है कि चाँद था



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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

Avanish Gautam का कहना है कि -

मुझे क्षणिकाँए साधारण लगीं और दुहराव भी लगा. गौरव भाई चाँद बासी हो रहा है.

seema gupta का कहना है कि -

भ्रम
तेरी पदचाप है
या बजते हैं मेरे कान?
तेरा चेहरा है
या आँखें भरमा गई हैं?
तेरा इनकार है
या मर गया हूँ मैं?
" अती सुंदर "

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

तुम से मोहब्बत
जैसे कोई
चाँद के उजले चकले पर
रात भर बेलता रहे रोटियाँ
और सुबह
भूख से मर जाए

-- बहुत खूब

अवनीश तिवारी

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

गौरव जी,

इस बार क्षणिकायें कुछ कमतर जँची..

कुछ एक ने मन मोह लिया पूर्ववत ही..
मेरे ख़ुदा
पगली,
कम से कम
तू तो नास्तिक मत कहा कर मुझे,
सबको है हक़
अपना ख़ुदा चुनने का

चाँद-4
तुम से मोहब्बत
जैसे कोई
चाँद के उजले चकले पर
रात भर बेलता रहे रोटियाँ
और सुबह
भूख से मर जाए

kamal का कहना है कि -

पिक्चर तो देख लेंगे पर साथ तो चले कोई ..
और कुछ नही टिकेट के पैसे दे और वापस आ जाए भले
अति उत्तम ...चाँद पर प्यार भरा एक आशियाना मेरा भी हो मतलब आपका भी हो

डाॅ रामजी गिरि का कहना है कि -

आपकी चाँद-तारों की दुनिया मुझे तो काफी दिलकश लगी...

विश्व दीपक का कहना है कि -

गौरव भाई,
क्षणिकाएँ लिखने में तुम तो माहिर हो हीं,लेकिन इस बार कुछ कमजोर रह गई हैं। अवनीश जी की तरह मैं यह नहीं कहूंगा कि चाँद बासी हो गया है, लेकिन बाकी के मुकाबले चाँद-१, २ और ६ कुछ कमतर हैं। वहीं कुछ क्षणिकाएँ ऎसी हैं कि उन्हें पढते हीं अनायास हीं मुख से वाह निकल जाती है, मसलन "मेरे खुदा" ,"चाँद-३,४,५"

इसलिए कुल मिलाकर प्रस्तुति बढिया है। :)

-विश्व दीपक ’तन्हा’

mehek का कहना है कि -

बहुत सुंदर चाँद की साडी क्षणिकाएँ बहुत सुंदर बनी है,चाँद के चकले पर रोटी बेलना,और भूख से मरना,चाँद पर मोहोला,बेहतरीन.

Dr.Ajit का कहना है कि -

bhut sunder gorav ji...kya baat hai chand ko leker itni samvedna..bibm pasand aaye.
dr.ajeet

Unknown का कहना है कि -

अनुभूति के स्तर पर सभी रचनायें दिल के बहुत पास हैं एक- एक पंक्ति मन मे कुछ
भुला हुआ सा समय याद दिला देती है

Sajeev का कहना है कि -

तुम से मोहब्बत
जैसे कोई
चाँद के उजले चकले पर
रात भर बेलता रहे रोटियाँ
और सुबह
भूख से मर जाए
waah

डॉ .अनुराग का कहना है कि -

मेरे माथे की पट्टियाँ बदलता रहा
कोई रात भर
सुबह से सुन रहा हूँ
शॉल ओढ़कर कहीं गया था चाँद

aor chand ke ukle par.......


ye vali behad pasand aayi.aapne inhe shanikaye nam diya. ham inhe chhoti nazm bhi kah sakte hai.gulzar ji ki tarah.

likhte rahiye.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुना है कि
चाँद पर एक मोहल्ला है
जहाँ माँएं नहीं सिखाती बच्चों को
कि मोहब्बत करोगे
तो दोज़ख़ में जलोगे

बहुत सुंदर ..

कोई याद आता है
पता नहीं कौन?
मैं घुला जाता हूँ याद में
पता नहीं किसकी?
कोई तो है मेरा कहीं
है क्या?


गौरव बहुत अच्छा लगा इन को पढ़ना ..कई तो बहुत दिल के करीब लगीं .!!

Mohinder56 का कहना है कि -

प्यार के चांद के उस पार
और भी बहुत से चांद हैं
जो हुस्न के जल्वों से
नजर नहीं आते
यह कसूर तुम्हारा नहीं
नादान उम्र का तकाजा है

RAVI KANT का कहना है कि -

गौरव जी,
सुना है कि
चाँद पर एक मोहल्ला है
जहाँ माँएं नहीं सिखाती बच्चों को
कि मोहब्बत करोगे
तो दोज़ख़ में जलोगे

यह बहुत अच्छी लगी।

गीता पंडित का कहना है कि -

कोई याद आता है
पता नहीं कौन?
मैं घुला जाता हूँ याद में
पता नहीं किसकी?
कोई तो है मेरा कहीं
है क्या?

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मैं आपकी क्षणिकाओं का इस कदर प्रसंशक हूँ कि कमियाँ देख नहीं पाता, फिर भी इतना कहूँगा कि नये-नये प्रतीकों को लायें हमेशा। चाँद से बाहर निकलकर बस, स्कूटर, द्रक, बल्ब, ट्यूबलाइट पर आयें।

ARUN SHEKHAR का कहना है कि -

sundar hain .. khashar.. aaj wo aanewali hai..yaaphir mujhe fana hone ki aadat thi...

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