चाँद-1
तुम आज रात
छुट्टी लेकर
पिक्चर देख आओ चाँद
उसने कहा है
कि वो आएगी
मेरे ख़ुदा
पगली,
कम से कम
तू तो नास्तिक मत कहा कर मुझे,
सबको है हक़
अपना ख़ुदा चुनने का
चाँद-2
चाँद की चाशनी में
डुबो डुबोकर पी थी रात
आज सुबह से
चाँदी सा हूँ
आदतें
मैं पेड़ बन गया था
और वो लकड़हारा
उसकी भूख थी बेचारी
और मेरी आदत थी
इश्क़ में फ़ना होना
चाँद-3
मेरे माथे की पट्टियाँ बदलता रहा
कोई रात भर
सुबह से सुन रहा हूँ
शॉल ओढ़कर कहीं गया था चाँद
मौसम
तुमने जुल्फ़ों से
ढक लिया है सूरज
और झुक गई हैं तुम्हारी ठंडी साँसें
मुझे चूमने को
नादान शहरी फिर भी कहते हैं
कि कोहरा है बहुत
चाँद-4
तुम से मोहब्बत
जैसे कोई
चाँद के उजले चकले पर
रात भर बेलता रहे रोटियाँ
और सुबह
भूख से मर जाए
भ्रम
तेरी पदचाप है
या बजते हैं मेरे कान?
तेरा चेहरा है
या आँखें भरमा गई हैं?
तेरा इनकार है
या मर गया हूँ मैं?
चाँद-5
सुना है कि
चाँद पर एक मोहल्ला है
जहाँ माँएं नहीं सिखाती बच्चों को
कि मोहब्बत करोगे
तो दोज़ख़ में जलोगे
'?'
कोई याद आता है
पता नहीं कौन?
मैं घुला जाता हूँ याद में
पता नहीं किसकी?
कोई तो है मेरा कहीं
है क्या?
चाँद-6
तारों की छाँव में
झूठ बोला था उसने
अब मर गया
कोई कहता है कि चाँद था
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
18 कविताप्रेमियों का कहना है :
मुझे क्षणिकाँए साधारण लगीं और दुहराव भी लगा. गौरव भाई चाँद बासी हो रहा है.
भ्रम
तेरी पदचाप है
या बजते हैं मेरे कान?
तेरा चेहरा है
या आँखें भरमा गई हैं?
तेरा इनकार है
या मर गया हूँ मैं?
" अती सुंदर "
तुम से मोहब्बत
जैसे कोई
चाँद के उजले चकले पर
रात भर बेलता रहे रोटियाँ
और सुबह
भूख से मर जाए
-- बहुत खूब
अवनीश तिवारी
गौरव जी,
इस बार क्षणिकायें कुछ कमतर जँची..
कुछ एक ने मन मोह लिया पूर्ववत ही..
मेरे ख़ुदा
पगली,
कम से कम
तू तो नास्तिक मत कहा कर मुझे,
सबको है हक़
अपना ख़ुदा चुनने का
चाँद-4
तुम से मोहब्बत
जैसे कोई
चाँद के उजले चकले पर
रात भर बेलता रहे रोटियाँ
और सुबह
भूख से मर जाए
पिक्चर तो देख लेंगे पर साथ तो चले कोई ..
और कुछ नही टिकेट के पैसे दे और वापस आ जाए भले
अति उत्तम ...चाँद पर प्यार भरा एक आशियाना मेरा भी हो मतलब आपका भी हो
आपकी चाँद-तारों की दुनिया मुझे तो काफी दिलकश लगी...
गौरव भाई,
क्षणिकाएँ लिखने में तुम तो माहिर हो हीं,लेकिन इस बार कुछ कमजोर रह गई हैं। अवनीश जी की तरह मैं यह नहीं कहूंगा कि चाँद बासी हो गया है, लेकिन बाकी के मुकाबले चाँद-१, २ और ६ कुछ कमतर हैं। वहीं कुछ क्षणिकाएँ ऎसी हैं कि उन्हें पढते हीं अनायास हीं मुख से वाह निकल जाती है, मसलन "मेरे खुदा" ,"चाँद-३,४,५"
इसलिए कुल मिलाकर प्रस्तुति बढिया है। :)
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बहुत सुंदर चाँद की साडी क्षणिकाएँ बहुत सुंदर बनी है,चाँद के चकले पर रोटी बेलना,और भूख से मरना,चाँद पर मोहोला,बेहतरीन.
bhut sunder gorav ji...kya baat hai chand ko leker itni samvedna..bibm pasand aaye.
dr.ajeet
अनुभूति के स्तर पर सभी रचनायें दिल के बहुत पास हैं एक- एक पंक्ति मन मे कुछ
भुला हुआ सा समय याद दिला देती है
तुम से मोहब्बत
जैसे कोई
चाँद के उजले चकले पर
रात भर बेलता रहे रोटियाँ
और सुबह
भूख से मर जाए
waah
मेरे माथे की पट्टियाँ बदलता रहा
कोई रात भर
सुबह से सुन रहा हूँ
शॉल ओढ़कर कहीं गया था चाँद
aor chand ke ukle par.......
ye vali behad pasand aayi.aapne inhe shanikaye nam diya. ham inhe chhoti nazm bhi kah sakte hai.gulzar ji ki tarah.
likhte rahiye.
सुना है कि
चाँद पर एक मोहल्ला है
जहाँ माँएं नहीं सिखाती बच्चों को
कि मोहब्बत करोगे
तो दोज़ख़ में जलोगे
बहुत सुंदर ..
कोई याद आता है
पता नहीं कौन?
मैं घुला जाता हूँ याद में
पता नहीं किसकी?
कोई तो है मेरा कहीं
है क्या?
गौरव बहुत अच्छा लगा इन को पढ़ना ..कई तो बहुत दिल के करीब लगीं .!!
प्यार के चांद के उस पार
और भी बहुत से चांद हैं
जो हुस्न के जल्वों से
नजर नहीं आते
यह कसूर तुम्हारा नहीं
नादान उम्र का तकाजा है
गौरव जी,
सुना है कि
चाँद पर एक मोहल्ला है
जहाँ माँएं नहीं सिखाती बच्चों को
कि मोहब्बत करोगे
तो दोज़ख़ में जलोगे
यह बहुत अच्छी लगी।
कोई याद आता है
पता नहीं कौन?
मैं घुला जाता हूँ याद में
पता नहीं किसकी?
कोई तो है मेरा कहीं
है क्या?
मैं आपकी क्षणिकाओं का इस कदर प्रसंशक हूँ कि कमियाँ देख नहीं पाता, फिर भी इतना कहूँगा कि नये-नये प्रतीकों को लायें हमेशा। चाँद से बाहर निकलकर बस, स्कूटर, द्रक, बल्ब, ट्यूबलाइट पर आयें।
sundar hain .. khashar.. aaj wo aanewali hai..yaaphir mujhe fana hone ki aadat thi...
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