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Wednesday, February 06, 2008

दफ़न होती आवाज़



हम बस्तर के आदिवासी हैं
तुम्हारे सभ्य और संसदीय भाषा में
आदिम अनपढ असभ्य शबर-संतान
सही में हम अब तक नहीं समझ सके
इन जंगलों-पहाडों के उस पार रहस्य क्या है
कैसे हो तुम, और तुम्हारी बाहर की दुनिया
आपके इन बडे-बडे शब्दों के अर्थ भी
हमारी समझ से अभी कोसों दूर है
विकास शोषण देशप्रेम राजद्रोह कर्म-भाग्य
सदाचार भ्रष्टाचार समर्थन और विरोध
क्या इन शब्दों के अर्थ अलग-अलग हैं ?
जनतांत्रिक समाजवादी राष्ट्रवादी क्षेत्रवादी
पूँजीवादी नक्सलवादी ये सब विचारधाराएँ
क्या तुम्हारे अपने ही हितों के लिए नही हैं ?
और चाहे तुम इनका जैसा उपयोग करो
तुम्हारा ही लिखा इतिहास कहता है
कि तुम सदा से क्रुर रहे हो
आज भी हमसे जहाँ चाहो जय बोलवा लो
तुम्हारे पास जन-धन और सत्ता की ताकत है
साम-दाम और दंड-भेद तुम्हारे अस्त्र-शस्त्र हैं
कर डालो संविधान में संशोधन
हम आदिवासियों के नाम मौत लिखवा दो
हम चुप रहेंगे , कुछ नही बोल सकेंगे
हमारी आवाज़ पर भी तुम्हारा ही पहरा है
हमें तो अभी तक यह भी पता नही
कि आज़ादी का स्वाद कैसा होता है
और आज़ादी के इन साठ सालों में
हमारा कितना और कैसा विकास हुआ
वैसे हम वो नहीं जो विकास का विरोध कर रहे
हम वे भी नही हैं, जो समर्थन में खडे हुए हैं
हम तो वो हैं जो अपनी ही जमीन से बेदखल
शरणार्थियों का जीवन बिता रहे हैं
फिर ये बस्तर के विकास के समर्थन में
या विरोध में खडे आंदोलनरत लोग कौन है ?
हम नही समझ पा रहे हैं
क्यों हम पर गोलियाँ चलाई जाती है
क्यों हमारे बच्चे असमय मारे जाते हैं
बुधनी सरे राह क्यों लूट ली जाती है
और पुलिस के बूटों और बटों से
क्यों उसके पति की हत्या हो जाती है
क्या इन प्रश्नों के उत्तर दोगे तुम ?
इन आंदोलनों के अगुवा होते हो तुम
जिनका अंत तुम्हारे ही हितों से होता है
और आगे भी यह विकास
तुम्हारे लिए ही कल्पतरू सिद्ध होगा
भूख दुख और शोषण ही हमारी नियति है
हमारे नेता तो चुग रहे हैं, तुम्हारा ही चुग्गा
और लड रहे हैं मस्त होकर मुर्गे की लडाई
आओ उर्वर है यह माटी तुम्हारे लिए,आओ
दुनिया भर से अपने रिश्तेदारों को बुलाओ
जंगल काटो, पहाड खोदो, फैक्टरियाँ लगाओ
और हमारी छाती पर मूँग दलवाओ
आओ व्यापारी, व्यवसायी आओ
आओ समाजसेवी, नक्सली आओ
हमारी जिन्दगी और मौत की बोली लगाओ
नेता आओ-मँत्री आओ,साहब और संतरी आओ
पुलिस आओ-फौज़ी आओ,दस लाख का बीमा कराओ
जो मारे जाओ मलेरिया से भी,शहीद होने का गौरव पाओ
हम तो ‘बलि’ के बकरे हैं, हमें दाना चुगाओ
और कोई बडा प्रशासनिक आयोजन कर
झोंक दो, हमें विकास की वेदी में
वहीं दफ़न हो जाएगी हमारी आवाज़
(यह देश तुम्हे ‘भारत-रत्न’ से नवाजेगा।)


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डॉ. नंदन , बचेली , बस्तर (छ.ग.)
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

Avanish Gautam का कहना है कि -

..नंदन जी यह सिर्फ बस्तर नहीं है लगभग पूरे हिन्दुस्तान और लगभग पूरी दुनियाँ में यही चल रहा है. सही लिखा है.

seema gupta का कहना है कि -

आओ व्यापारी, व्यवसायी आओ
आओ समाजसेवी, नक्सली आओ
हमारी जिन्दगी और मौत की बोली लगाओ
नेता आओ-मँत्री आओ,साहब और संतरी आओ
पुलिस आओ-फौज़ी आओ,दस लाख का बीमा कराओ
जो मारे जाओ मलेरिया से भी,शहीद होने का गौरव पाओ
हम तो ‘बलि’ के बकरे हैं, हमें दाना चुगाओ
और कोई बडा प्रशासनिक आयोजन कर
झोंक दो, हमें विकास की वेदी में
वहीं दफ़न हो जाएगी हमारी आवाज़
(यह देश तुम्हे ‘भारत-रत्न’ से नवाजेगा।)
बस्तर के आदिवासियों की पीड़ा और शोषण का बहुत अच्छा प्रस्तुतीकरण किया गया है इस कवीता मे '
Regards

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बिल्कुल सही है |
जीता जागता उदाहरण है मुम्बई मे क्षेत्रवाद का सफल प्रयोग जो आज तीसरे दिन भी जारी है |

अवनीश तिवारी

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

नन्दन जी,

बहुत ही सशक्त शब्दों में पीड़ा को व्यक्त किया है..
मगर निःसन्देह अगर आवाज उबलेगी तो दफन नहीं होगी..

mehek का कहना है कि -

बहुत बढ़िया ,आदिवासी भोले जन है,शहरी लोगो से दूर.अपना सरल जीवन जीने वाले,दर्द को बखूबी बयां किया है.

विश्व दीपक का कहना है कि -

वैसे हम वो नहीं जो विकास का विरोध कर रहे
हम वे भी नही हैं, जो समर्थन में खडे हुए हैं
हम तो वो हैं जो अपनी ही जमीन से बेदखल
शरणार्थियों का जीवन बिता रहे हैं
फिर ये बस्तर के विकास के समर्थन में
या विरोध में खडे आंदोलनरत लोग कौन है ?

सत्य वचन!
नंदन जी,
आपके शब्दों में भरसक हीं इतनी ताकत है कि वह दफ़न होती हरेक आवाज़ को फिर से जिंदा कर सके।
बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Unknown का कहना है कि -

नंदन जीआप की रचना हृदय को छु लेनेवाली है तथा हर एह पंक्ति में आज की esthiti को साफ साफ बयां कर रही है यह देश तुमेह भारत रत्न से नवाजे गा यह अन्तिम पंक्ति पुरी रचना की जान साबित हो रही है
भारती.

Mohinder56 का कहना है कि -

नंदन जी,

मार्मिक व सामायिक रचना के लिये आप वधाई के पात्र हैं.
वह दिन दूर नहीं जब विस्फ़ोट होगा और परिस्थितियां बदलेंगी... प्रयास जारी है.. ऐसा नहीं सब लोग सोये हुये हैं

गीता पंडित का कहना है कि -

नंदन जी !

पूरी दुनियाँ में यही चल रहा है....

बस्तर के आदिवासियों की पीड़ा ....
बहुत ही सशक्त शब्दों में व्यक्त की है..

बधाई स्वीकारें ।

Alpana Verma का कहना है कि -

आदिवासी आज भी उपेक्षित हैं--
-आपने अपनी कविता में उनके दर्द को सही प्रस्तुत किया है--

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

नंदन जी,

हिन्द-युग्म पर कवि के रूप में आपका आगमन सुखद है। आपका लेखन सामयिक है। आशा है नव-अंकुर आपसे बहुत कुछ सीखेंगे।

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