तुमने नहीं सुना
उसने कई बार कहा था...
”मेरी आँखों मे उड़ान से भरी
चिड़ियाँ कैद हैं
जब भी मैं आकाश देखती हूँ
मेरी पलकें चिड़िया के डैनों की तरह
फड़फड़ाने लगती हैं”
तुमने नहीं सुना..
जब तुम उसकी आँखों में
अपने जवाब ढूँढ़ रहे थे
वह बता रही थी
तुमने नहीं सुना..
जब
तुम वहाँ उसकी आँखों में
एक नर्म मुलायम बिस्तर ढूँढ़ रहे थे
जहाँ तुम अपने रास्तों की थकान भूल सको
तुम वहाँ अपने लिये एक तकिया ढूँढ़ रहे थे
जहाँ अपनी तपकती नसों वाले
लावारिस सिर को सुकून से टिका सको
तुम याद करो
तुम बार-बार कहते थे
”उसकी आँखें वही पिंजरा है
जिसमें मै कैद होना चाहता हूँ’
और यह तो वह भी कहती थी
कि उसकी आँखें एक पिंजरा हैं
जहाँ उड़ान से भरी चिड़ियाँ कैद हैं
और वह चिड़ियाँ बहुत व्याकुल हैं
सदियों से
तुम याद करो तुमने नहीं सुना था इसे
अभी-अभी काँपी हैं उसकी बिनौरियाँ तिनकों की तरह
जैसे उड़ी हों कई चिड़ियाँ एक साथ.
अवनीश गौतम
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
कविता लम्बी हो गई है अपने content के हिसाब से।
इतना कह कर भी कविता वही रहती
तुमने नहीं सुना
उसने कई बार कहा था...
”मेरी आँखों मे उड़ान से भरी
चिड़ियाँ कैद हैं
जब भी मैं आकाश देखती हूँ
मेरी पलकें चिड़िया के डैनों की तरह
फड़फड़ाने लगती हैं”
तुमने नहीं सुना..
जब तुम उसकी आँखों में
अपने जवाब ढूँढ़ रहे थे
वह बता रही थी
तुमने नहीं सुना..
बहुत कुछ है इन पंक्तियों में ..
अभी-अभी काँपी हैं उसकी बिनौरियाँ तिनकों की तरह
जैसे उड़ी हों कई चिड़ियाँ एक साथ.
दिल को छू जाने वाली एक लाजवाब कविता ..स्तब्ध कर देते हैं आप अपनी लिखी रचना से अवनीश जी ..बहुत सुंदर.. संजो के रखे जाने लायक है यह भी आपकी एक प्रेम कविता की तरह !!
अवनीश जी दिल में उतर जाने में सक्षम बेहतरीन कविता,मजा आ गया,
आलोक सिंह "साहिल"
आप मनोभावो के बेहरतीन चितेरे है6 और आपके शब्दचित्र....
तुम याद करो तुमने नहीं सुना था इसे
अभी-अभी काँपी हैं उसकी बिनौरियाँ तिनकों की तरह
जैसे उड़ी हों कई चिड़ियाँ एक साथ.
वाह!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
गौरव भाई. काश यह कविता इतनी ही होती जितनी आपने बताई है. कम से कम मैं आगे की पंक्तियाँ लिखने से बच जाता.
भाव तो कमाल के हैं आपके अवनीश जी.. वैसे दो बातें मुझे समझ नहीं आईं. तपकती साँसें और लावारिस सिर ! लावारिस सिर शब्द का अर्थ तो कुछ कोशिश कर निकाल पा रहा हूँ पर "तपकती साँसों" का मतलब में समझ नहीं पा रहा ..
वैसे शायद आप कविता की लंबाई को थोड़ा कम कर सकते थे.. पर कविता फिर भी लाजवाब है !
वाह! बहुत सुन्दर!!
और यह तो वह भी कहती थी
कि उसकी आँखें एक पिंजरा हैं
जहाँ उड़ान से भरी चिड़ियाँ कैद हैं
और वह चिड़ियाँ बहुत व्याकुल हैं
सदियों से
तुम याद करो तुमने नहीं सुना था इसे
अंतरंग तक पहुंचाते भाव ,बहुत सुंदर
काश :)
और यह तो वह भी कहती थी
कि उसकी आँखें एक पिंजरा हैं
जहाँ उड़ान से भरी चिड़ियाँ कैद हैं
और वह चिड़ियाँ बहुत व्याकुल हैं
सदियों से
और उन सय्यादों का क्या जो खुद भी पिंजरों में बसना चाहते हैं.... अवनीश जी one more gem....really
तुमने नहीं सुना..
जब तुम उसकी आँखों में
अपने जवाब ढूँढ़ रहे थे
वह बता रही थी
" सुंदर प्रस्तुती "
Regards
सुंदर भाव हैं अवनीश जी!
मुझे तो बहुत अच्छा लगा।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
अभिवयक्ति अच्छी है.
ऐसा लगता है मन से सीधी कागज पर उतरी है.
वाह......
अवनीश जी !
तुम याद करो तुमने नहीं सुना था इसे
अभी-अभी काँपी हैं उसकी बिनौरियाँ तिनकों की तरह
जैसे उड़ी हों कई चिड़ियाँ एक साथ.
सुंदर .....
बधाई
स-स्नेह
गीता पंडित
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