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Saturday, February 23, 2008

हर रोज़


मैं हर रोज़ जीता हूँ
अपने मन के संग्रहालय में
रखी किताब का एक पन्ना.....

हर सुबह
मेरे सपनों के पंख जल जाते हैं
यथार्थ के तपते सूरज को
छूने की कोशिश मे.....

हर दोपहर
उठाता हूँ शब्दों का हथौड़ा,
तर्क की छेनी
तोड़ता हूँ पोषित चट्टानों को
और बनाने की कोशिश करता हूँ
एक सड़क, प्यास से पानी तक.....

हर साँझ
उतारकर रख देता हूँ किनारे
थकान के कपड़े
और नहाता हूँ
हृदय के झरने में.....

हर रात
हवन करता हूँ कुछ जख्मी विचारों का
सूली चढ़ा देता हूँ सीने की आग को
जानते हुए भी
कि ये आग कल फ़िर जी उठेगी.....

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Sajeev का कहना है कि -

वाह... रविकांत जी सुंदर कविता है.....बधाई

seema gupta का कहना है कि -

हर रात
हवन करता हूँ कुछ जख्मी विचारों का
सूली चढ़ा देता हूँ सीने की आग को
जानते हुए भी
कि ये आग कल फ़िर जी उठेगी.....
" दिल और मन के मनोभावों का वेदना का सुंदर चित्रण"
Regards

Harihar का कहना है कि -

हर दोपहर
उठाता हूँ शब्दों का हथौड़ा,
तर्क की छेनी
तोड़ता हूँ पोषित चट्टानों को
और बनाने की कोशिश करता हूँ
एक सड़क, प्यास से पानी तक.....

बहुत सुन्दर

शोभा का कहना है कि -

रवि जी
बहुत सुंदर लिखा है-
हर रात
हवन करता हूँ कुछ जख्मी विचारों का
सूली चढ़ा देता हूँ सीने की आग को
जानते हुए भी
कि ये आग कल फ़िर जी उठेगी.....
बधाई

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बहुत बहुत सुंदर रचना |

अवनीश तिवारी

रंजू भाटिया का कहना है कि -

हर सुबह मेरे सपनों के पंख जल जाते हैं
यथार्थ के तपते सूरज को छूने की कोशिश मे....

सुंदर भाव पूर्ण रचना है रवि जी बधाई !!

विश्व दीपक का कहना है कि -

रवि जी,
आपकी इस कविता की खासियत यह है कि आपने इसमें चुन-चुन कर शब्द पिरोये हैं।

हर रात हवन करता हूँ कुछ जख्मी विचारों का सूली चढ़ा देता हूँ सीने की आग को जानते हुए भी कि ये आग कल फ़िर जी उठेगी.....

इन पंक्तियों में आपकी रचना उफान पर है।
बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Anonymous का कहना है कि -

बहुत ही शानदार कविता,हर शब्द,हर पंक्ति ऐसी की जिसे अलग से विभूषित नहीं किया जा सकता,बधाई हो सर जी
आलोक सिंह "साहिल"

Alpana Verma का कहना है कि -

अति सुंदर रचना.

गीता पंडित का कहना है कि -

रविकांत जी !

शब्दों का हथौड़ा, तर्क की छेनी तोड़ता हूँ पोषित चट्टानों को और बनाने की कोशिश करता हूँ एक सड़क, प्यास से पानी तक.....


हर रात
हवन करता हूँ कुछ जख्मी विचारों का
सूली चढ़ा देता हूँ सीने की आग को
जानते हुए भी
कि ये आग कल फ़िर जी उठेगी.....

सुंदर .....

बधाई

स-स्नेह
गीता पंडित

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