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Monday, February 25, 2008

पुष्यमित्र की सुबहें


भागलपुर, बिहार निवासी और हिन्दुस्तान दैनिक में उप संपादक पुष्यमित्र ने पहली बार यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लिया और टॉप २० में जगह बना ली। यह इस श्रृंखला की अंतिम रचना है।

कविता- सुबहें

काश! मेरी सुबहें इतनी हरी हों
कि कोई भी मौका न हो
टोटका बुनने का।
यानी यह हिसाब लगाने का
कि दिन शुभ है या अशुभ।
आंखों को देखने का मौका तक न हो
होठों को गिनने की फुरसत भी नहीं।
सुबहें ऐसी हों कि इनमें मैं भी न रहूं,
इतना भी नहीं कि
हवाओं में लिपटी खुशबू भी
झकझोर कर ही अहसास दिला पाए।
चीजें उलट-पुलट हो जाए
और सजाने का मौका तक न मिले।
या ऐसी तो हो ही कि
कम से कम कविताएं लिखने का ख्याल न आए।
यानी ऐसी।
झटपट नहाकर बाहर निकलने की हड़बड़ी जैसी
या चाय बनाकर
सबको जगा देने की खुशी जैसी।
या फिर
चु॰॰प॰॰चा॰॰प॰॰
सड़कों पर निकल जाऊं
अ...के...ला।
ह..वा..ओं.. में उत्तेजना की थ.र.थ.रा.ह.ट
बि..खे..र..ता।

निर्णायकों की नज़र में-


प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰४
स्थान-चौबीसवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰६, ७, ७॰४ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰६६७
स्थान- आठवाँ


तृतीय चरण के जज की टिप्पणी- भाव भटका हुआ है। सामान्य कविता।
कथ्य: ४/२ शिल्प: ३/१ भाषा: ३/१॰५
कुल- ४॰५
स्थान- बीसवाँ


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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

बहुत खूब एक आजाद सुभः का ख्याल बहुत अच्छा है बधाई हो

Anonymous का कहना है कि -

कविता पढ़ते वक्त बार बार लगता रहा, कुछ और होता तो क्या होता?थोड़े कागज और जाया करने चाहिए थे,खैर,कविता का समापन थोड़ा अलग और आनंदकारी रहा,बधाई
आलोक सिंह "साहिल"

RAVI KANT का कहना है कि -

शिल्प पर थोड़ा और ध्यान दें ताकि कथ्य खूबसूरती के साथ प्रकट हो।

Harihar का कहना है कि -

वाह पुष्यमित्र जी, काश ऐसी
सुबहें सब की हों।

यानी यह हिसाब लगाने का
कि दिन शुभ है या अशुभ।
आंखों को देखने का मौका तक न हो
होठों को गिनने की फुरसत भी नहीं।
सुबहें ऐसी हों कि इनमें मैं भी न रहूं,
इतना भी नहीं कि
हवाओं में लिपटी खुशबू भी
झकझोर कर ही अहसास दिला पाए।

Sajeev का कहना है कि -

सुंदर कल्पना है, पर प्रस्तुति उतनी दमदार नही बन पायी

seema gupta का कहना है कि -

बहुत खूब ,सुंदर कल्पना बधाई हो

Alpana Verma का कहना है कि -

.' कम से कम कविताएं लिखने का ख्याल न आए'
-कवि तो उस स्थिति में से भी ख्याल खोज लायेंगे कविता लिखने को!

गीता पंडित का कहना है कि -

बहुत खूब ....

सुबहें ऐसी हों कि इनमें मैं भी न रहूं,
इतना भी नहीं कि
हवाओं में लिपटी खुशबू भी
झकझोर कर ही अहसास दिला पाए।


बधाई !


स-स्नेह
गीता पंडित

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

उत्कृष्ट रचना ,सुंदर अभिव्यक्ति !
सुनीता यादव

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