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Monday, February 25, 2008

स्वागत बसंत


स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
हे प्रेम पुंज! हे आस रूप !!
ऋतुपति तेरी सुषुमा अनंत !!!
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!

कानन की कांति के क्या कहने !
किसलय कली कुसुम बने गहने !
अवनि शुचि पीत सुमन पहने !
मानो विधि के रचना जीवंत !!
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!

नव आम्र मंजर के महक से !
और खगकुल की चहक से !
और अलिकुल की भनक से !
गूंजते हैं दिक् दिगंत !
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!

मन्मथ की मार बनी असहय !
कोकिल की कूक करुण अतिशय !
सुन विरही उर उपजे संशय !
विरहानल को भड़काने या
करने आए हो सुखद अंत !
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!

यूनिकवि- केशव कुमार 'कर्ण'

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
हे प्रेम्पुन्ज! हे आस रूप !!
ऋतुपति तेरी सुषुमा अनंत !!!
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
" बसंत के आगमन का सुंदर स्वागत " अच्छी कवीता.

Regards

Anonymous का कहना है कि -

केशवजी......... अच्छी रचना है |

Anonymous का कहना है कि -

Keshav ji,
Swagat Basant kavita padhi. Jyada kuchh samajh nahin aaya. Phit bhi achha laga.
Dhanyavad
Prasad

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

केशव जी,
बखूबी वापसी करी है आपने और यूनिकवि वाले तेवर इस कविता में वापस हैं।
बधाई

Anonymous का कहना है कि -

://mehhekk.wordpress.com/रचना बहुत ही खूबसूरत है

Anonymous का कहना है कि -

केशव जी,पुराने से सबक लेना कोई आपसे सीखे,प्यारी प्रस्तुति,बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

RAVI KANT का कहना है कि -

कई जगह पर ऐसा लग रहा है जैसे शब्दों को जबरन डाला गया है। शब्दों के अतिशय मोह से बचें। वैसे पिछली रचना से बेहतर है।

विश्व दीपक का कहना है कि -

मन्मथ की मार बनी असहय !
कोकिल की कूक करुण अतिशय !
सुन विरही उर उपजे संशय !
विरहानल को भड़काने या
करने आए हो सुखद अंत !
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!

उपर्युक्त पंक्तियाँ बहुत हीं सुंदर लगीं
तो वहीं
और अलिकुल की भनक से !
मानो विधि के रचना जीवंत !!

ये पंक्तियाँ कमजोर लगीं।

भाषा और शब्दों पर आपकी पकड़ दर्शाती है कि आप इस रचना को और भी खूबसूरत बना सकते थे।
तब भी आपकी पिछली रचनाओं से तो यह रचना निस्संदेह बढिया है।
बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

वाह केशव जी,

इस तरह की रचनायें आज कहाँ पढने को मिलती हैं। बेहतरीन भाषा, शिल्प...

*** राजीव रंजन प्रसाद

Alpana Verma का कहना है कि -

सुंदर शब्दों से सजी सुंदर कविता है

गीता पंडित का कहना है कि -

मन्मथ की मार बनी असहय !
कोकिल की कूक करुण अतिशय !
सुन विरही उर उपजे संशय !
विरहानल को भड़काने या
करने आए हो सुखद अंत !
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!


भाषा और शब्दों पर पकड़ ....
खूबसूरत......

बधाई स्वीकारें।

Anonymous का कहना है कि -

बहुत सुंदर प्रभावी रचना .....

बधाई !


स-स्नेह
देवेन्द्र कुमार मिश्रा

Unknown का कहना है कि -

Unbelievable !
After so many readings, it seems still unbelievable. Such a lovely poems can be written nowadays ??Anyway, congrats !!!

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