स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
हे प्रेम पुंज! हे आस रूप !!
ऋतुपति तेरी सुषुमा अनंत !!!
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
कानन की कांति के क्या कहने !
किसलय कली कुसुम बने गहने !
अवनि शुचि पीत सुमन पहने !
मानो विधि के रचना जीवंत !!
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
नव आम्र मंजर के महक से !
और खगकुल की चहक से !
और अलिकुल की भनक से !
गूंजते हैं दिक् दिगंत !
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
मन्मथ की मार बनी असहय !
कोकिल की कूक करुण अतिशय !
सुन विरही उर उपजे संशय !
विरहानल को भड़काने या
करने आए हो सुखद अंत !
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
यूनिकवि- केशव कुमार 'कर्ण'
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
हे प्रेम्पुन्ज! हे आस रूप !!
ऋतुपति तेरी सुषुमा अनंत !!!
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
" बसंत के आगमन का सुंदर स्वागत " अच्छी कवीता.
Regards
केशवजी......... अच्छी रचना है |
Keshav ji,
Swagat Basant kavita padhi. Jyada kuchh samajh nahin aaya. Phit bhi achha laga.
Dhanyavad
Prasad
केशव जी,
बखूबी वापसी करी है आपने और यूनिकवि वाले तेवर इस कविता में वापस हैं।
बधाई
://mehhekk.wordpress.com/रचना बहुत ही खूबसूरत है
केशव जी,पुराने से सबक लेना कोई आपसे सीखे,प्यारी प्रस्तुति,बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
कई जगह पर ऐसा लग रहा है जैसे शब्दों को जबरन डाला गया है। शब्दों के अतिशय मोह से बचें। वैसे पिछली रचना से बेहतर है।
मन्मथ की मार बनी असहय !
कोकिल की कूक करुण अतिशय !
सुन विरही उर उपजे संशय !
विरहानल को भड़काने या
करने आए हो सुखद अंत !
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
उपर्युक्त पंक्तियाँ बहुत हीं सुंदर लगीं
तो वहीं
और अलिकुल की भनक से !
मानो विधि के रचना जीवंत !!
ये पंक्तियाँ कमजोर लगीं।
भाषा और शब्दों पर आपकी पकड़ दर्शाती है कि आप इस रचना को और भी खूबसूरत बना सकते थे।
तब भी आपकी पिछली रचनाओं से तो यह रचना निस्संदेह बढिया है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
वाह केशव जी,
इस तरह की रचनायें आज कहाँ पढने को मिलती हैं। बेहतरीन भाषा, शिल्प...
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुंदर शब्दों से सजी सुंदर कविता है
मन्मथ की मार बनी असहय !
कोकिल की कूक करुण अतिशय !
सुन विरही उर उपजे संशय !
विरहानल को भड़काने या
करने आए हो सुखद अंत !
स्वागत! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
भाषा और शब्दों पर पकड़ ....
खूबसूरत......
बधाई स्वीकारें।
बहुत सुंदर प्रभावी रचना .....
बधाई !
स-स्नेह
देवेन्द्र कुमार मिश्रा
Unbelievable !
After so many readings, it seems still unbelievable. Such a lovely poems can be written nowadays ??Anyway, congrats !!!
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