कुछ अलग तरह की रचना है। डरते-डरते पेश कर रहा हूँ। कोशिश की है कि खुसरो की पंक्तियों-सा कुछ लिख सकूँ।
छाप-तिलक सब छीन सताए,
खुसरो जिसके बलि-बलि जाए,
स्वर्ग यहीं , इसी ठौर बताए,
कहे - प्रीत बड़-भाग है लाए!!!
कहे-प्रीत सरसो की चुनरी,
चढी जिसपे रंगरेज की धुन री,
कहाँ-कहाँ ढूँढे साजन यह,
सखियन तू उससे हीं सुन री!!!
कभी
अमलतास की छांव में ,
कभी कदंब की डाल पर
तो कभी
हिना की पत्तियों से
छन-छन कर आती धूप में!
कभी
गोरी की तर्जनी या मध्यमा में,
कभी लरजती साँसों में
तो कभी
’हायो रब्बा’ कहती
उन वर्तुल अधरों पर!
कभी
स्वयं को खोजती आँखों में
कभी खुद को समेटती बाहों में
तो कभी
सारी दुनिया को भूलाती
अनमनी-सी बातों में!
खुसरो कहे-शिवाला तज दे,
सब मोतियन की माला तज दे,
पनघट पर बस गोरी हो जब,
बस जा वहीं, निज शाला तज दे।
खुसरो!प्रीत की सेज सयानी,
सजती खुद , करती मनमानी,
कह निजाम दे चादर डारि,
दे इसको तू कोई निशानी ।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
अलग सी ही है तन्हा भाई। मैंने कभी खुसरो को भी नहीं पढ़ा सो बिना किसी पूर्वज्ञान के पूरा समझ भी नहीं पाया कि इस अन्दाज़ में लिखने का पूरा अर्थ क्या है। लेकिन जितनी समझ में आई, अच्छी थी।
भइ वाह तन्हाजी
खुसरो को पुनर्जीवित कर दिया
खुसरो कहे-शिवाला तज दे,
सब मोतियन की माला तज दे,
पनघट पर बस गोरी हो जब,
बस जा वहीं, निज शाला तज दे।
और फिर इन पंक्तियों का कवि कौन है?
मैं कहूं खूसरो, ना सखि तन्हाजी ...
तनहा जी ऐसा होता है कभी कभी, कोई शायर जिसे हम बहुत पढ़ते या सुनते हैं पसंद करते हैं, वो मिलने आते हैं हमसे, और साथ में अपनी कुछ ताज़ा रचनाएँ भी लाते हैं, लगता है की आपके ख्वाबों में भी खुसरो पधारे हैं, आपने जो भी लिखा है उसमे खुसरो की छाप है यकीनन, वही सच्चाई , वही सादगी, खुसरो से मुलाकात की बधाई, कभी मिर्जा ग़ालिब को भी न्योता दीजिये.....
अच्छी रचना है, उतनी गहराई से तो समझ नही आयी,
कभिस्वयं को खोजती आँखों में
कभी खुद को समेटती बाहों में
तो कभी
सारी दुनिया को भूलाती
अनमनी-सी बातों में!
ये पंक्तियाँ अच्छी लगीं.
Regards
बहुत अलग है ,बहुत अच्छी भी बधाई
कभी
स्वयं को खोजती आँखों में
कभी खुद को समेटती बाहों में
तो कभी
सारी दुनिया को भूलाती
अनमनी-सी बातों में!
बहुत ही सुंदर ..और अलग ही है यह रचना दीपक जी ..मज़ा आ गया इसको सुबह सुबह पढ़ के ..बहुत ही अच्छा और सफल प्रयोग किया है आपने बधाई !
क्या बात है...भाई वाह..वा..
नीरज
वाह! मजा आ गया!
तन्हा जी!
खुसरो के छाप तिलक.....का खूब रीमिक्स बनाया है आपने,
रीमिक्स गानों के बाद अब......रीमिक्स कविताएं....
बहुत खूब!!!
तन्हा भाई,खुसरो साहब को कभी पढ़ा था,आज आपको पढ़ा,तुलना करना तो ग़लत होगा क्योंकि जो चले जाते हैं वो महान कहलाते हैं,और उनकी शान में कोई गुस्ताखी कर सकूं ऐसी औकात नहीं पर इतना जरुर कह सकता हूँ कि आनन्दम,और मैं सारथी जी से सहमत हूँ कि कभी ग़ालिब तो कभी मीर भी,बहुत बहुत शुभकामनाएं
आलोक सिंह "साहिल"
खुसरो कहे-शिवाला तज दे,
सब मोतियन की माला तज दे,
पनघट पर बस गोरी हो जब,
बस जा वहीं, निज शाला तज दे।
वाह-वाह! तन्हा जी सुन्दर प्रयोग है। संदेश भी सहजता के साथ प्र्तिबिंबित हो रहा है। बधाई।
कहे-प्रीत सरसो की चुनरी,
चढी जिसपे रंगरेज की धुन री,
कहाँ-कहाँ ढूँढे साजन यह,
सखियन तू उससे हीं सुन री!!!
...............really enjoyed the poem:-)
तन्हा जी! खुसरो से प्रभावित होना या उनकी शैली में कुछ लिखने का प्रयास करने में न तो कुछ नया है और न गलत. खुसरो की एक रचना ’ज़िहाले-मिस्कीं मकुन्तगाफ़ुल’ से प्रभावित होकर एक बहुत सुन्दर और लोकप्रिय गीत लिखा गया है.
आपकी रचना इस लिहाज़ से अच्छी बन पड़ी है, पर मेरे विचार से ’खुसरो कहे-शिवाला तज दे’ और ’खुसरो!प्रीत की सेज सयानी’ में खुसरो के नाम का प्रयोग नहीं होना चाहिये था क्योंकि ये शब्द खुसरो के न होकर ’तन्हा’ के हैं.
परन्तु कुल मिलाकर एक अच्छा प्रयास है.
आप नाहक ही डरते हैं तनहा जी..बेहतरींन प्रस्तुति..
*** राजीव रंजन प्रसाद
तन्हाजी
आप की रचनाओं में काफी विविधता रहती है-यह नया प्रयोग भी ठीक लगा-हिंद युग्म पर शायद यह पहला ऐसा प्रयोग किया गया है-
बहुत अच्छा लिखा है आपने तन्हा जी.. मज़ा आगया.. आपके नये-नये प्रयोग बड़े अच्छे लगते हैं .. यह पंक्तियाँ बहुत पसंद आईं !
"कहे-प्रीत सरसो की चुनरी,
चढी जिसपे रंगरेज की धुन री,
कहाँ-कहाँ ढूँढे साजन यह,
सखियन तू उससे हीं सुन री!!!"
"खुसरो कहे-शिवाला तज दे,
सब मोतियन की माला तज दे,
पनघट पर बस गोरी हो जब,
बस जा वहीं, निज शाला तज दे।"
खुसरो!प्रीत की सेज सयानी,
सजती खुद , करती मनमानी,
और,
शैली है जानी पहचानी !
किंतु झलकती मौलिक वाणी !
तन्हा कवि का न कोई सानी,
कथ्य शिल्प का कहौं बखानी !
वाह..........
छाप-तिलक सब छीन सताए,
खुसरो जिसके बलि-बलि जाए,
कहे-प्रीत सरसो की चुनरी,
चढी जिसपे रंगरेज की धुन री,
खुसरो कहे-शिवाला तज दे,
सब मोतियन की माला तज दे,
खुसरो!प्रीत की सेज सयानी,
सजती खुद , करती मनमानी
वाह...वाह....
खुसरो कहे-शिवाला तज दे,
सब मोतियन की माला तज दे,
पनघट पर बस गोरी हो जब,
बस जा वहीं, निज शाला तज दे।
तनहा कवि जी आपकी कविता थोड़ी हट के है ,पढ़ने का मजा आ गया .......सीमा सचदेव
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