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Wednesday, February 20, 2008

शब्द




क़्या तुम्हारे आँगन में अपना
पहला कदम रख सकता हूँ
शब्द हूँ मैं तुम्हारे लबों का
क्या तुमसे व्यक्त हो सकता हूँ...


अपनी मर्यादा में कसकर बंधा हुआ हूँ
ऊँच नीच जाति भेद में तुला हुआ हूँ
क्या मैं तुम्हारे पंखों का आत्मसात कर
खुले गगन में उङने का आभास कर सकता हूँ

शब्द हूँ मैं तुम्हारे लबों का...


भुलाया हुआ चैतन्य परमार्थी हूँ
तुम्हारी पहचान का सच्चा सार्थी हूँ
क्या तुममें बस प्रेम का आवाहन कर
तुम्हें पिरो जीवन के धागे में गा सकता हूँ

शब्द हूँ मैं तुम्हारे लबों का...
*****************अनुपमा चौहान****************

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

diवाह!! वाह!!! बहुत खूब अनुपमा जी...

शब्द हूँ मैं तुम्हारे लबों का
क्या तुमसे व्यक्त हो सकता हूँ...

भुलाया हुआ चैतन्य परमार्थी हूँ
तुम्हारी पहचान का सच्चा सार्थी हूँ
क्या तुममें बस प्रेम का आवाहन कर
तुम्हें पिरो जीवन के धागे में गा सकता हूँ

अनुपम अभिव्यक्ति।

*** राजीव रंजन प्रसाद

seema gupta का कहना है कि -

क़्या तुम्हारे आँगन में अपना
पहला कदम रख सकता हूँ
शब्द हूँ मैं तुम्हारे लबों का
क्या तुमसे व्यक्त हो सकता हूँ...
" अती सुंदर परिभाषा शब्दों की "

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

अपनी मर्यादा में कसकर बंधा हुआ हूँ
ऊँच नीच जाति भेद में तुला हुआ हूँ
क्या मैं तुम्हारे पंखों का आत्मसात कर
खुले गगन में उङने का आभास कर सकता हूँ
-- शब्दों के माध्यम से स्वतंत्रता की कामना और भाषा का सम्प्रदाय के बंधनों से मुक्ति का विचार एक नव प्रयास हो सकता है |

सुंदर रचना....
अवनीश तिवारी

रंजू भाटिया का कहना है कि -

क्या मैं तुम्हारे पंखों का आत्मसात कर
खुले गगन में उङने का आभास कर सकता हूँ

सुंदर रचना अनुपमा जी ..बहुत दिनों आपका लिखा हुआ कुछ यहाँ आया अच्छा लगा !!

Mohinder56 का कहना है कि -

अनुपमा जी,

सुन्दर शब्दों को माला में पिरो कर बनाई गई एक सशक्त रचना

विश्व दीपक का कहना है कि -

अनुपमा जी!
युग्म पर बहुद दिनों के पश्चात आपके कदम पड़े हैं। इसलिए आपका स्वागत है :)
इस कविता की बात करूँ तो शब्दों का सुंदर मायाजाल बुना है आपने। सुंदर भाव हैं।शिल्प भी खूबसूरत है। हाँ , अगर आप तुकबंदी का मोह न दीखाती तो और भी मज़ा आ सकता था।
वैसे आपकी शैली सबसे अलग है और यही आपकी खासियत भी है।
लगे रहिये!!!!!

-विश्व दीपक ’तन्हा’

mehek का कहना है कि -

शब्द हूँ मैं तुम्हारे लबों का क्या तुमसे व्यक्त हो सकता हूँ...
बहुत खूबसूरत रचना बधाई

SahityaShilpi का कहना है कि -

’व्यक्त होने की अनुमति माँगते शब्द’ अपने आप में एक अनूठा प्रयोग है. शिल्प के बारे में मैं तन्हा जी से सहमत हूँ.

नीरज गोस्वामी का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर रचना...बधाई.
नीरज

Sajeev का कहना है कि -

शब्द हूँ मैं तुम्हारे लबों का...
waah

Anonymous का कहना है कि -

बहुत दिनों से एक अनुपम कृति की तलाश थी.........लो अज पुरी हुई
क्या खूब लिखा है,
भुलाया हुआ चैतन्य परमार्थी हूँ
तुम्हारी पहचान का सच्चा सार्थी हूँ
क्या तुममें बस प्रेम का आवाहन कर
तुम्हें पिरो जीवन के धागे में गा सकता हूं
एक एक शब्द को बिल्कुल करीने से संजो कर,मजा आ गया,
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

शब्द हूँ मैं तुम्हारे लबों का...
waah

RAVI KANT का कहना है कि -

अनुपमा जी, बहुत अच्छी लगी आपकी कविता।

अपनी मर्यादा में कसकर बंधा हुआ हूँ
ऊँच नीच जाति भेद में तुला हुआ हूँ
क्या मैं तुम्हारे पंखों का आत्मसात कर
खुले गगन में उङने का आभास कर सकता हूँ

बधाई।

गीता पंडित का कहना है कि -

वाह...

शब्द हूँ मैं तुम्हारे लबों का
क्या तुमसे व्यक्त हो सकता हूँ...


सुंदर....

अनुपमा जी...
बधाई

स-स्नेह
गीता पंडित

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

भावनाओं को उड़ाने का अभ्यास तो किया है आपने लेकिन शिल्प का अभ्यास नहीं किया।

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