यादे हैं ...
कोहरे में लिपटी सुबह
कुछ आवारा बादल के टुकडे
और कुछ सूखे बिखरे फूल ,
बीती बातें हैं ..
धूमिल सी होती पगडंडियाँ
बिस्तर पर पड़ी सलवटें
दीवार पर सजा कोलाज़
वादे हैं ...
कोने में रखी झूलती कुर्सी
किसी किताब के मुड़े हुए पन्ने
दहलीज पर बिखरे अधबुने सपने
और खाली मन ..
अकेला पर अपने में डूबा
हवा में यूं ही उड़ता पंछी
ख़ुद से कहता ख़ुद की भाषा
रीते हुए वक्त से
फ़िर भर भर आता है......
ज़िंदगी को नया अर्थ
अभिनव अनुभूति देने के लिए
यूं ख़ुद को शब्दों का भुलावा देना
बहुत जरुरी है !!
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32 कविताप्रेमियों का कहना है :
रंजू जी कविता अच्छी है. बधाई!
ज़िंदगी को नया अर्थ
अभिनव अनुभूति देने के लिए
यूं ख़ुद को शब्दों का भुलावा देना
बहुत जरुरी है !!
-- अच्छे बनी है |
अवनीश तिवारी
और खाली मन ..
अकेला पर अपने में डूबा
हवा में यूं ही उड़ता पंछी
ख़ुद से कहता ख़ुद की भाषा
रीते हुए वक्त से
फ़िर भर भर आता है......
" बहुत अच्छी पंक्तियाँ ,"
ngos1950रंजू जी
"बीती बातें हैं ..
धूमिल सी होती पगडंडियाँ
बिस्तर पर पड़ी सलवटें"
अद्भुत शब्द प्रयोग...वाह...
नीरज
रंजू जी कविता बहुत खुबसुरत हे,बधाई!
रंजना जी,
यादों, बातों, वादों, मन और जिन्दगी को एक नया आयाम देती हुई सुन्दर रचना के लिये बधाई
बीती बातें हैं ..
धूमिल सी होती पगडंडियाँ---
वादे हैं ...
कोने में रखी झूलती कुर्सी---
ज़िंदगी को नया अर्थ
अभिनव अनुभूति देने के लिए---
यादों और वादों के स्याह मंज़र से गुजरते हुए ज़िन्दगी को बेपर्दा करती है ये बातें .
बहुत ही अनूठी रचना है आपकी ,रंजना जी.
शव्द-शव्द भावों एवं अर्थों से परिपूर्ण । शुक्रिया ।
सही कहा आपने ज़िन्दगी में कईं बार यूं ख़ुद को शब्दों का भुलावा देना बहुत जरुरी है !!
पूरी कविता अच्छी है।
aapki kavita bahoot achhi lagi......usme jindagi ke baare mei kafi aachha likha hai........
ज़िंदगी को नया अर्थ
अभिनव अनुभूति देने के लिए
यूं ख़ुद को शब्दों का भुलावा देना
बहुत जरुरी है !!
सही ....
यादों, कुछ बीती बातों, कुछ भूले बीसरे वादों, और कुछ एकाकी मन को लेकर जिन्दगी को कुछ नए अर्थों में समझानें का सार्थक प्रयास है. ... उत्तम
ज़िंदगी को नया अर्थ
अभिनव अनुभूति देने के लिए
यूं ख़ुद को शब्दों का भुलावा देना
बहुत जरुरी है !!
गहरा दर्शन।
*** राजीव रंजन प्रसाद
वाह !..
गजब.. नमन है आपकी लेखनी को..
बहुत सुंदर
खाली मन ..
अकेला पर अपने में डूबा
-बहुत खूब ! खाली भी है और डूबा भी है...
रंजना जी
बेहतरीन रचना समझ नहीं आ रहा कौन सी पंक्तियों को सबसे अच्छी कहूं
खाली मन....
बीती बातें हैं ....
वादे हैं ...
एक से बडकर एक
ज़िंदगी को नया अर्थ
अभिनव अनुभूति देने के लिए
यूं ख़ुद को शब्दों का भुलावा देना
बहुत जरुरी है !!
सही कहा आपने रंजू जी शब्दों का भुलावा या यूं कहें शब्दों की ये मरीचिका इंसानी मन को काफी सुकून देती है,अपने गफ्लातों को जिंदा रखने का इससे बेहतर साधन और कुछ नहीं हो सकता.क्योंकि हकीकत पे हमारा अख्तियार नहीं होता पर अपने गढे शब्दों के दुनिया के अकेले बादशाह हम ही होते हैं,
बहुत अच्छी कविता,बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
ज़िंदगी को नया अर्थ
अभिनव अनुभूति देने के लिए
यूं ख़ुद को शब्दों का भुलावा देना
बहुत जरुरी है !!
रंजना जी, बहुत प्यारी रचना है।
ज़िंदगी को नया अर्थ
अभिनव अनुभूति देने के लिए
यूं ख़ुद को शब्दों का भुलावा देना
बहुत जरुरी है !!
कितना सच कहा है ! भाव पूर्ण कविता ।
रंजना जी! इस बार आपने अपनी क्षमता के अनुरूप लिखा है. बधाई स्वीकारें!
रंजना जी,
अब आप पूरे रंग में आ चुकी हैं\ अब कोई भी आपकी रचना में खामियाँ नहीं निकाल सकता।
बधाई स्वीकारें!
-विश्व दीपक ’तन्हा’
यादें हैं ....
कोहरे में लिपटी सुबह
कुछ आवारा बादल के टुकड़े
और कुछ सूखे बिखरे फूल
रंजना जी ,आपकी ये यादें दिल को छू गयीं !बहुत कम शब्दों में बहुत कुछ कह गई आप !सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें !
रंजना जी!
ये बिम्ब ताज़ा है।
वादे हैं ...
कोने में रखी झूलती कुर्सी
किसी किताब के मुड़े हुए पन्ने
दहलीज पर बिखरे अधबुने सपने
कविता सुंदर है.............
कहीं दूर ले जा कर छोड़ देती है
अकेला......
कुछ भूला-भूला सा सोचने के लिए।।
Ranju di... Meri kahaani likhi lagti hai.. bilcul sahi kaha aapne..
Bahut achha likha hai, aur bahut badi soch ke saath likha hai aapne..
Bahut alag sa andaaz hai, lekin phir bhi apna sa lagta hai... [:)]
bahut badia badhai
बहुत ज़रूरी है भुलावा,यूँ ताउम्र भुलावे में चलता है वह आदमी,जिसके पास मन है
रंजना जी
बहुत सुन्दर लिखा है आपने । भावों में डूबी कविता पढ़कर आनन्द आ गया
ज़िंदगी को नया अर्थ
अभिनव अनुभूति देने के लिए
यूं ख़ुद को शब्दों का भुलावा देना
बहुत जरुरी है !!
बधाई
रंजू जी की लोकप्रियता देखकर तो लगने लगता है कि अपनी राय देने लायक हूँ भी कि नहीं. अजी, यूँ ही मज़ाक कर रहा था.अच्छी रचना है. बधाई स्वीकारें!
www.kri80vt4u.blogspot.com
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और खाली मन ..
अकेला पर अपने में डूबा
हवा में यूं ही उड़ता पंछी
ख़ुद से कहता ख़ुद की भाषा
रीते हुए वक्त से
ज़िंदगी को नया अर्थ
अभिनव अनुभूति देने के लिए
यूं ख़ुद को शब्दों का भुलावा देना
बहुत जरुरी है !!
बहुत अच्छी कविता....
रंजू जी !
बधाई
स-स्नेह
गीता पंडित
सारे बिम्ब बहुत बढ़िया हैं। बहुत ही अच्छी कविता।
ranjana ji,
apki poems main mujhe ek tazagi najar aati hai.apne se judi hue.bhulaba bhi apki acchi poem hai.
s.m.sahil
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