मेरे घर में बहुत जरूरी चीजें हैं
जो बहुत कीमती हैं
ये बाज़ार में नही मिलती हैं
पुरखों से मिले संस्कार
और माता-पिता के आशीष से भरा है
यह मेरा छोटा सा घर
जहाँ बहुत सारी खुशियाँ हैं
बच्चों के लिए ढेर सारा प्यार
आपसी समझ और विश्वास के साथ
पत्नी के लिए थोडा सा वक्त
थोडी-थोडी भूख और नींद है
जो हम सबके लिए जरूरी है
इन सबके साथ अपने घर में
मैं बचाकर रखता हूँ
थोडी-सी चेतना,थोडी जिज्ञासा
थोडी-सी चिंता, थोडी आशा
थोडी-थोडी भावुकता, नैतिकता
प्रेम, घृणा, सादगी, सम्मान
संवाद और ज़रूरी गुस्सा
आगत भविष्य के लिए
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डॉ.नंदन , बचेली ,बस्तर (छ.ग.)
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
डॉक्टर साहब! रचना के भाव यद्यपि बहुत सुंदर हैं परंतु इसमें काव्यात्मकता का अभाव परिलक्षित होता है. आपसे अपेक्षायें बहुत ज़्यादा हैं, शायद इसीलिये रचना निराश करती है.
घर दुनिया में सबसे प्यारी जगह है .बहुत मिठास घोलती कविता,सुंदर .
कवि जी, आपकी रचना ने कितनी आसानी से सन्तोष और सादगी को खुशी का स्रोत बता दिया है । कितनी सहजता से आप कितनी महत्त्वपूर्ण बात कह गए हैं जो उपदेश द्वारा किसी को समझाने में आसान नहीं होती ।
सरल, सहज सुंदर रचना |
बधाई
अवनीश तिवारी
सुंदर रचना |
बधाई
आप का घर बहुत सुंदर है...सलामत रहे ये ही दुआ है..
नीरज
नंदन जी,
भावप्रधान होते हुये भी कवितात्मक नहीं हो पाई आपकी यह रचना..मैं अजय जी की टिप्पणी से सहमत हूं
अच्छी कविता! बधाई!
थोडी-सी चेतना,थोडी जिज्ञासा
थोडी-सी चिंता, थोडी आशा
थोडी-थोडी भावुकता, नैतिकता
प्रेम, घृणा, सादगी, सम्मान
संवाद और ज़रूरी गुस्सा
आगत भविष्य के लिए
सादगी भरी कविता है और नयी कविता की तमाम शर्तों को पूरा भी करती है। बधाई..
*** राजीव रंजन प्रसाद
थोडी-सी चेतना,थोडी जिज्ञासा
थोडी-सी चिंता, थोडी आशा
थोडी-थोडी भावुकता, नैतिकता
प्रेम, घृणा, सादगी, सम्मान
संवाद और ज़रूरी गुस्सा
आगत भविष्य के लिए
अति सुन्दर एवं मार्मिक कविता
कहाँ रह गए थे इतने दिनों तक सर जी?खैर,बिल्कुल खांटी आपके अपने अंदाज की एक सहज और शानदार कविता,मजा आया
आलोक सिंह "साहिल"
बहुत सुन्दर कविता।हालांकि मैं सारी बतों से सहमत नही हुँ।
घर सबसे प्यारी जगह है ......
बहुत सुंदर .
थोडी-सी चेतना,थोडी जिज्ञासा
थोडी-सी चिंता, थोडी आशा
थोडी-थोडी भावुकता, नैतिकता
प्रेम, घृणा, सादगी, सम्मान
संवाद और ज़रूरी गुस्सा
आगत भविष्य के लिए
सुंदर नयी कविता....
बधाई |
लगभग इसी आशय की एक नेपाली कविता (मनु मंज़िल की) मैंने पढ़ी थी। वो तो अत्यधिक पसंद आई थी, यह भी बढ़िया लगी।
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