प्रणमामि शारदे्! प्रणमामि
प्रणमामि शारदे्! प्रणमामि
प्रणमामि शारदे्! प्रणमामि
हे! आर्यावृत हे! भरत् पुत्र
हे! बाल्मिक हे! कालिदास
प्रणमामि मनीषं प्रणमामि
प्रणमामि ताण्डव सिंहनाद
प्रणमामि महाकाली निनाद
प्रणमामि शारदे् सप्तनाद
प्रणमामि काव्यरस सिन्धुनाद
प्रणमामि भरत् भू परम्परा
ॠषियों की पावन महाधरा
षट्ॠतुओं ने पाँखें खोलीं
मेघों ने अद्भुत रूप धरा
प्रणमामि प्रेरणे! प्रकृतिदेव
तंत्री के तार छेडते हो
'सम्मोहित' सिन्धु मनीषा से
हे! शारदेय शत् शत् प्रणाम
प्रणमामि मनीषं प्रणमामि
श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'
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"जयती जय-जय माँ सरस्वती"
जयती जय-जय माँ सरस्वती
जयती वीणा वादिनी
आए तेरे द्वार पर हम
कर कृपा सुर दायिनी---
भोग का पर्दा पड़ा है
ज्ञान-योग की दृष्टि पर
भटकते हम सब हैं माता
लोभ की अति वृष्टि पर
ज्ञान की किरणें बहा दे
ज्ञान दीप प्रकाशिनी--
जयती जय- जय माँ सरस्वती
जयती वीणा-वादिनी--
दीखती ना राह हमको
उन्नति और ज्ञान की
दिख रही हैं राहें सबको
हिंसा की अभिमान की
प्रेम का अब पथ दिखा दे
प्रेम- पुंज की स्वामिनी
जयति-जय-जय माँ सरस्वती
जयती वीणा-वादिनी--
कर कृपा हम पर हे माता
ज्ञान की गंगा बहा
बैर भारत से भगा दे
हिंसा को जड़ से मिटा
राष्ट्रीयता की रक्षा कर
संकीर्णताएँ विनाशिनी
जयती-जय-जय माँ सरस्वती
जयती वीणा वादिनी—
शोभा महेन्द्रू
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सरस्वती तुम रक्षा करना अचेत इस मन मन्दिर की,
ज्ञान से भर दे अज्ञानी इस देही को बाहर अंदर से ,
बुद्धि की माता, अक्षर्दायिनी, वीनापाणी तू माता,
वेद की माता, विद्यामाता, श्वेतधारी तू माता;
वेद ना चाहे, चाहे बुद्धि कि भेद करे ना किसी से हम
राजा रंक हो, पंडित मूर्ख हो, एक समान लगे हम
सरस्वती तुम रक्षा करना अचेत इस मन मन्दिर की,
ज्ञान से भर दे अज्ञानी इस देही को बाहर अन्दर से ,
जीभ पर रहकर राजति है जो वाग्दायिनी वो तू माता,
परमार्थ को समझाती है जो ज्ञान प्रदयानी तू माता,
ज्ञान ना चाहे, चाहे वाणी जो मीठी हो तन- मन-धन से ,
सुख मे दुःख मे शब्द जो बोले चोट ना पहुँचाये किसी को,
सरस्वती तुम रक्षा करना अचेत इस मन मन्दिर की,
ज्ञान से भर दे अज्ञानी इस देही को बाहर अंदर से |
डॉ सुरेखा भट्ट
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माँ शारदा की वंदना
वर दे... वर दे. .. वर दे ।
शतदल अंक शोभित वर दे ।
.
मधुर मनोहर वीणा लहरी,
राग स्रोत की छँटा है छहरी,
कण कण आभा अरुण सुनहरी,
तान हृदय में परिमित गहरी ।
उर में मेरे करुण भाव भर दे ।
वर दे ... वर दे .. वर दे ।
शतदल अंक शोभित वर दे ।
.
तरू दल पर किसलय डोले,
पीहूं पीहूं पपीहा बोले,
मलय तरंगित ले हिंडोले,
आशीष शारदा मन पट खोले ।
काव्य किलोल कर मधुरिम कर दे ।
वर दे ... वर दे .. वर दे ।
शतदल अंक शोभित वर दे ।
.
द्विज विस्मित कलरव विस्मृत,
सुरभि मंजरी दिगंत विस्तृत,
नाचे मयूर झूमे प्रकृति,
अंब वागेश्वरी संगीत निनादित ।
गीतों में मेरे रस छंद ताल भर दे ।
वर दे ... वर दे .. वर दे ।
शतदल अंक शोभित वर दे ।
.
.
कवि कुलवंत सिंह
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नमो - नमो शारदे
निर्मल- शांत स्वभाव ,
मन - मोहक भाव ,
स्वच्छ - श्वेत परिधान,
कर मे ज्ञान,
शोभते रत्न मणी ,
गूँजती वीणा - ध्वनी,
बहे ज्ञान - बयार,
माँ हंस - सवार,
देती कला - प्रसाद ,
तू जगत - विख्यात ,
अज्ञान-तम हरती,
ज्ञान - ज्योति भरती,
पायें सदा सम्मान,
दे हमें वरदान,
जीवन सार्थक करदे,
नमो - नमो शारदे |
मुक्तक
कविता कब बनाती है ?
जब मन पवित्र बनता है,
विवेक शुद्ध होता है,
हाथों मे हलचल होती है,
चिंतन की धड़कन बढ़ती है,
आशीर्वाद देती है सरस्वती,
तब कविता कोई है बनती |
अवनीश तिवारी
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
बसंत पंचमी की सभी को बधाई
बसब्त पंचमी की आप सबको बधाई - सुरिंदर रत्ती, मुम्बई
कविता कब बनाती है ?
जब मन पवित्र बनता है,
विवेक शुद्ध होता है,
हाथों मे हलचल होती है,
चिंतन की धड़कन बढ़ती है,
आशीर्वाद देती है सरस्वती,
तब कविता कोई है बनती |
"अवनीश जी कमल कर दिया आपने, सही मे कवीता लिखने का जो राज आज आपने खोला है हमेशा याद रहेगा. कुछ पंक्तियों मे शब्द रुपी मोती पिरोकर आपने जो कवीता की माला तेयार की और इतना गूढ़ रहस्य उजागर किया उसके लिए दिल से बधाई"
Regards
बसंत पंचमी की बधाईसभी को...बहुत सुंदर हैं कविताएं सब ..
कविता कब बनाती है ?
जब मन पवित्र बनता है,
विवेक शुद्ध होता है,
हाथों मे हलचल होती है,
चिंतन की धड़कन बढ़ती है,
आशीर्वाद देती है सरस्वती,
तब कविता कोई है बनती |
सही कहा अवनीश जी ..बधाई!!
बसंत पंचमी पर इतनी अच्छी कवीतायं पढ़ कर बहुत अच्छा लगा , एक से बढ़ बढ़ एक. बसंत पंचमी की सभी को बधाई
बसंत पंचमी के कविताओं के साथ जो चित्र प्रकाशित हुआ है बहुत मनभावन है और काबिले तारीफ है. चित्रकार जी आपको भी दिल से बधाई.
Regards
बसंत पंचमी की अनेकानेक शुभ-कामनायें
सभी वन्दनायें बहुत खूबसूरत बनीं हैं..
bsant panchmi ki aai sb ko bdhai
बसंत पंचमी पर इतनी सारी नयी कवितायें एक साथ पढ़ना मन को भाया है.
सभी कवितायें संग्रह करने योग्य हैं..धन्यवाद.
मुझे किसी भी कविता ने प्रभावित नहीं किया। फिर भी संकलनकर्ता अवनीश तिवारी को बधाई देना चाहूँगा
बसंत पंचमी पर इतनी कवीतायं ......बहुत अच्छा लगा
बधाई |
बसंत पंचमी की शुभकामनायें।
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