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Tuesday, January 15, 2008

पंकज बसलियाल खुश हैं


यूनिकवि प्रतियोगिता के दिसम्बर अंक के ८वीं पायदान पर कविता है पंकज बसलियाल की 'मैं खुश हूँ'। इन्होंने पहली बार प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और खुद को टॉप १० में रखने में सफल रहे। यह हिन्द-युग्म के लिए बहुत खुशी की बात है कि हर माह नए-नए नगीनों तक पहुँच रहा है और उन्हें प्रोत्साहित कर उनको और बेहतर साहित्य रचने के लिए प्रेरित कर पा रहा है।

इनका जन्म उत्तरांचल के सीमावर्ती क्षेत्र में सन् १९८३ में हुआ। स्कूल से घर ४-५ किलोमीटर था और ये अकेले जाया करते थे, रास्ते भर कुछ न कुछ गुनगुनाने की कोशिश में तुकबंदी प्रारंभ की, ८वीं कक्षा में पहली कविता प्रकाशित हुई। उसी वर्ष "गुनाहों का देवता" पढ़ा तो विधिवत साहित्य से परिचय हो गया। कालांतर में कंप्यूटर इंजीनियरिंग करने के उपरांत TCS में काम करते हुए देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहे हैं... पिछले कुछ समय से अमेरिका में हैं।

संपर्क-पंकज बसलियाल
१२५ , शांतिनगर , ढालवाला,
पो.ओ. - मुनी की रेती ,
ऋषिकेश , उत्तरांचल , २४९२०१.

पुरस्कृत कविता- मैं खुश हूँ

जी , मैं खुश हूँ .
आपने सही सुना , कि मैं खुश हूँ .

शायद आज किसी को रोते नहीं देखा ,
नंगे बदन फ़ुटपॉथ पर सोते नहीं देखा ,
शायद रिश्तों की कालिख छुपी रही आज,
तो किसी को टूटी माला पिरोते नहीं देखा.

आज भी भगवान को किसी की सुनते नहीं देखा,
पर हाँ, आज किसी के सपनों को लुटते नहीं देखा,
तन्हा नहीं देखा , किसी को परेशान नहीं देखा,
पाई-पाई को मोहताज, सपनों को घुटते नहीं देखा.

बेचैनी नहीं दिखी, कहीं मायूसी नज़र न आयी ,
कहीं कुछ गलत होने की भी कोई खबर न आयी,
सब कुछ आज वाकई इतना सही क्यों था आखिर,
कि दर्द ढूंढती मेरी निगाहें कहीं पे ठहर न पायी .

मैं खुश हूं वाकई, पर कुछ हो जाने से नहीं
कुछ ना हो पाने से खुश हूँ कुछ पाने से नहीं
किसी के जाने से खुश हूँ, किसी के आने से नहीं
किसी के रूठ जाने से, किसी के मनाने से नहीं

पर ये खुशी की खनक मेरे आस पास ही थी,
कई अनदेखी आँखें आज भी उदास ही थी,
मैनें कुछ नहीं देखा, का मतलब खुशहाली तो नहीं
मेरे अकेले की खुशी, एक अधूरा अहसास ही थी..

वो दिन आयेगा शायद, जब हर कोई खुशी देख सकेगा,
बिन आँसू और गमो के जब हर कोई रह सकेगा.
खुशी सही मायनों में वो होगी तब,
"मैं खुश हूँ" ... जिस दिन हर इन्सान ये कह सकेगा..


निर्णायकों की नज़र में-


प्रथम चरण के जजमैंट में मिले अंक- ८॰५, ६, ५॰५
औसत अंक- ६॰६६६७
स्थान- दसवाँ


द्वितीय चरण के जजमैंट में मिले अंक-६, ६॰६६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰३३३३
स्थान- छठवाँ


तृतीय चरण के जज की टिप्पणी-क़विता में एक दो जगह विरोधाभास है उसे अगर नज़र अन्दाज़ किया जाए तो अच्छा प्रयास है.
मौलिकता: ४/३ कथ्य: ३/१॰५ शिल्प: ३/२॰५
कुल- ७
स्थान- दूसरा


अंतिम जज की टिप्पणी-
कविता का आरंभ बहुत अच्छा हुआ है किंतु खुश होने का कारण तलाशता पाठक कवि की बुनी भूलभुलैया में उलझ जाता है। कविता का सकारात्मक अंत रचना को बिखरने से बचाता है।
कला पक्ष: ५/१०
भाव पक्ष: ५॰१/१०
कुल योग: १०॰१/२०


पुरस्कार- ऋषिकेश खोडके 'रूह' की काव्य-पुस्तक 'शब्दयज्ञ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

Alpana Verma का कहना है कि -

कवि अपने खुश होने के कई कारणों का बखान कविता में कर रहा है.
लेकिन जैसे ही उसे यह अहसास होता है -
'पर ये खुशी की खनक मेरे आस पास ही थी,
कई अनदेखी आँखें आज भी उदास ही थी,
मैनें कुछ नहीं देखा, का मतलब खुशहाली तो नहीं
मेरे अकेले की खुशी, एक अधूरा अहसास ही थी..-''
कविता को तभी अपना मकसद मिल जाता है और एक उम्मीद के साथ अपनी बात पूरी करती है.
अच्छे भाव हैं.
अच्छी कविता है.

seema gupta का कहना है कि -

वो दिन आयेगा शायद, जब हर कोई खुशी देख सकेगा,
बिन आँसू और गमो के जब हर कोई रह सकेगा.
खुशी सही मायनों में वो होगी तब,
"मैं खुश हूँ" ... जिस दिन हर इन्सान ये कह सकेगा..
" बहुत अच्छी रचना है आपकी की आप हर इन्सान को खुश देखना चाहते हैं, "
congrates for inspiring thoughts and presenting yourself in top ten"
Regards

Anonymous का कहना है कि -

veyr very nice poem,yes one day that day wil come when everybody wil say am hapy.congrates.

Anonymous का कहना है कि -

हिंद युग्म पे आज आया है ये सितारा ,मैं तो सालों से पंकज को सुनता राहा हूँ ,जितना अच्छा इंसान ,उतना ही अच्छा इंजिनियर और इन सब से कहीं बेहतर कवि , पंकज को कभी भावों की कमी नही होती ,कभी शब्द साथ नही छोड़ते ,मुझे खुशी है तुम हिन्दी युग्म पे आए ,इस से मैं "बहुत खुश" हूँ ,तुम्हारे कॉलेज का साथी ,दिव्य प्रकाश दुबे

Sajeev का कहना है कि -

'पर ये खुशी की खनक मेरे आस पास ही थी,
कई अनदेखी आँखें आज भी उदास ही थी,
मैनें कुछ नहीं देखा, का मतलब खुशहाली तो नहीं
मेरे अकेले की खुशी, एक अधूरा अहसास ही थी..-''
bahut sunder pankaj ji, aapki aur rachnaaon ka bho intezaar rahega

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

भई वाह.. पंकज बसलियाल
लिखा है एक दम बेमिसाल
प्रारम्भ में प्रवाह कविता में
और अंत मे तो कर दिया कमाल

बहुत बढ़िया ...

दर्शन का कहना है कि -

लेखक की भावनायें एक ऐसी व्यवस्था की आशा करती है ,जहाँ पर प्रत्येक जनमानुष खुश है ! शायद एक कल्पना है परंतु लेखक की भावनायें कितनी पाक और नेक हैं ,काश ऐसा हो सके !!!! व्यक्तिगत तौर पर मैं लेखक (पंकज बसलियाल) को काफी निकट से जानता हूँ ,और इनकी लेखनी से भी भिज्ञ हूँ ,यह उनका सर्वश्रेष्ठ नही है ,और जब सर्वश्रेष्ठ आयेगा तो आप सब मंत्रमुग्ध हो जाओगे ! एक बात खास है इस कविता में,वो यह कि कवि ने इश्क ,प्रेमिका,श्रंगार से आगे बढ्कर कोई बहुत ही प्रभावशाली विषय चुना और एक सुन्दर रचना का निर्माण कर अपने हुनर से सब को वाकिफ कराया ! बहुत-2 बधाई !!
सदैव आप के साथ !!
दर्शन मेहरा

Anonymous का कहना है कि -

मैं खुश हूं वाकई, पर कुछ हो जाने से नहीं
कुछ ना हो पाने से खुश हूँ कुछ पाने से नहीं
किसी के जाने से खुश हूँ, किसी के आने से नहीं
किसी के रूठ जाने से, किसी के मनाने से नहीं
पंकज जी, बहुत खूब.
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

पंकज का कहना है कि -

मित्रों, सर्वप्रथम मैं किसी भी प्रकार की देरी के लिए क्षमा चाहूंगा. दरअसल कार्य में काफ़ी व्यस्त था इसीलिए ना तो टिप्पणियां पढ़ पाया और ना ही जबाब दे पाया.
अभी सभी कुछ पढ़ा , आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद , कि आपने मेरे इस छोटे से प्रयास को पूरे मन से स्वीकार किया तथा सराहना की.
मैं आगे भी कोशिश करूँगा कि हिन्दी युग्म का नियमित सदस्य बन सकूं तथा आपकी उमीदे बनाये रख सकूं.

Anonymous का कहना है कि -

"आज भी भगवान को किसी की सुनते नहीं देखा,
पर हाँ, आज किसी के सपनों को लुटते नहीं देखा,
तन्हा नहीं देखा , किसी को परेशान नहीं देखा,
पाई-पाई को मोहताज, सपनों को घुटते नहीं देखा."
....ये पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी हें..
निसंदेह उत्कृष्ट रचना है पंकज . ..बहुत बहुत बधाईयाँ ..लग रहा है की हिन्दी कविता का युग आज भी जिंदा है :-)

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

दर्शन मेहरा जी से मैं भी सहमत हूँ कि कवि इश्क, दर्द से आगे बढ़कर बात करता है। कवि जिम्मेदार है, इस तरह के कवियों की बहुत आवश्यकता है।

पंकज जी,

हिन्द-युग्म को इसी तरह अपनी रचनाएँ देते रहें।

Anonymous का कहना है कि -

bhai. dont u think tht confusion is a part of ur creative side... actually if u read carefully then u will find tht u knew something is going wrong...n u knew that u dont want to accept tht...judge ne kaha bhi hai ki virodhabhas bhi hai...mujhe lagta hai ki comment likhne wale saare tumhare bahut achche dost hai...waise mujhe bahut pasand aayi...i love contradictions...by the way main is position mein nahi hoon ki tumhe criticise kar sakun...par mujhe jo laga maine keh diya...tumhari aur poem bhi padhi hain maine jo shaayad comment likhne walon ne na padhi ho...isliye jaanta hoon ki virodhabhas tumhare liye nayi cheez nahin hai

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