छुडा के हाथ अगर चल दिया है कोई अपना
किसी गैर को तुम अपना बना क्यूं नहीं लेते
दिल में न पालो तुम सैलाब घुटती तमन्ना का
भरी हैं आंखें तो कुछ आंसू बहा क्यूं नहीं लेते
हंसी सपने किसी खास की जागीर नहीं होते
नया ख्वाब इक आंखों में सजा क्यूं नही लेते
बन कर चांद सा गर तुम्हें रहना नहीं आता
दहकता सूरज खुद को तुम बना क्यूं नहीं लेते
कुछ कश्तियों को तूंफ़ा ले जाते हैं किनारे तक
किनारा भूल लहरो को गले लगा क्यूं नहीं लेते
हरी होंगी फ़िर से ये सूखी बेलें बहारों के आने पर
वक्ती तौर पर कांटो को दिल मे सजा क्यूं नहीं लेते
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
छुडा के हाथ अगर चल दिया है कोई अपना
किसी गैर को तुम अपना बना क्यूं नहीं लेते
दिल में न पालो तुम सैलाब घुटती तमन्ना का
भरी हैं आंखें तो कुछ आंसू बहा क्यूं नहीं लेते
" बहुत खूब , बेमिसाल , दिल को सकूं मिला पड कर"
"चांदनी कहाँ मिलती है, वो भी अंधेरों मे समाई है, इन अंधेरों से अपनी महफिल सजा क्यों नही लेते "
Regards
मोहिन्दर जी,
सुन्दर गज़ल..
छुडा के हाथ अगर चल दिया है कोई अपना
किसी गैर को तुम अपना बना क्यूं नहीं लेते
दिल में न पालो तुम सैलाब घुटती तमन्ना का
भरी हैं आंखें तो कुछ आंसू बहा क्यूं नहीं लेते
बहुत खूब..
हंसी सपने किसी खास की जागीर नहीं होते
नया ख्वाब इक आंखों में सजा क्यूं नही लेते
बहुत खूब ..सुंदर भाव और सुंदर जज्बातों से सजी है आपकी यह गजल बहुत पसंद आई !
मोहिंदर जी !
ये बहुत पसंद आयी
कुछ कश्तियों को तूंफ़ा ले जाते हैं किनारे तक
किनारा भूल लहरो को गले लगा क्यूं नहीं लेते
बहुत खूब
बहुत अच्छे ख्याल--
'हंसी सपने किसी खास की जागीर नहीं होते
नया ख्वाब इक आंखों में सजा क्यूं नही लेते '
सकारात्मक सोच जगाती हुई-अंधेरों से निकल ujaalon को अपनाने का संदेश देती हुई
बहुत सुंदर ग़ज़ल है--
वाह वाह मोहिंदर जी
बहुत खूब लिखा है
बन कर चांद सा गर तुम्हें रहना नहीं आता
दहकता सूरज खुद को तुम बना क्यूं नहीं लेते
कुछ कश्तियों को तूंफ़ा ले जाते हैं किनारे तक
किनारा भूल लहरो को गले लगा क्यूं नहीं लेते
हरी होंगी फ़िर से ये सूखी बेलें बहारों के आने पर
वक्ती तौर पर कांटो को दिल मे सजा क्यूं नहीं लेते
साधुवाद
bahud aasha vadi gazal hai,sundar har sher sundar,badhai
mohinder ji kavita men nayapan nahi hai, kuch maza nahi aaya , vyaktigat taur par....
छुडा के हाथ अगर चल दिया है कोई अपना
किसी गैर को तुम अपना बना क्यूं नहीं लेते
दिल में न पालो तुम सैलाब घुटती तमन्ना का
भरी हैं आंखें तो कुछ आंसू बहा क्यूं नहीं लेते
बहुत ही अच्छी गजल है
सुमित
सर जी क्या बात है, मजा आ गया.
माफ़ी चाहूंगा पर मैं सारथी जी की सोच से इत्तफाक नहीं रखता
आलोक सिंह "साहिल"
मोहिन्दर जी, गज़ल बढिया है, लेकिन मैं कुछ हद तक सजीव जी से भी सहमत हूँ।
साथ हीं साथ आपने बहर को सही से नहीं संभाला है। गज़ल की यह जान होती है। कृप्या आगे से इसपर ध्यान देंगे।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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