था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा
उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा
यूँ तो भरोसा है उसे अब भी खुदा के न्याय पर
सोचता है किसलिये हर फैसला टलता रहा
गाँधी भगत सिंह नाम ले वो देश को लूटा किये
विवश आज़ादी का सपना हाथ ही मलता रहा
’अजय’ न था शैतान हरगिज़ जबकि वो पैदा हुआ
ज़िंदगी की ठोकरों से खुद-ब-खुद ढलता रहा
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा
उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा
यूँ तो भरोसा है उसे अब भी खुदा के न्याय पर
सोचता है किसलिये हर फैसला टलता रहा
"कमाल की कविता है , मुझे बहुत अच्छी लगी, ये कुछ प्न्क्तीयाँ बहुत अच्छी बन पडी हैं."
Regards
अजय जी,
आपकी लेखनी से उद्भूत ये पंक्तियाँ पढ़कर बस "वाह" कहने को जी चाहता है.
क्या बात कही है !!!
था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा
लगे रहिए......
था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा
--- बिल्कुल मन को बहने वाली रचना है |
सुंदर
- अवनीश तिवारी
उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा
बहुत अच्छी है यह पंक्तियाँ बाकी भी अच्छी लगी !!
behad sundar panktiyan hai,tha andhera raat bhar,bhor ke umed mein deepak jalta raha,badhai ho.
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
निराशा के तारों में उलझी है आप की यह ग़ज़ल.
'उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा'
में ख्याल प्रस्तुति अच्छी है.
लिखते रहिये.शुभकामनाएं.
था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा
उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा
वाह.....
अच्छी ग़ज़ल |
लिखते रहिये
अजय जी,
बढ़िया प्रस्तुति है।
था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा
अजय भाई बहुत pyari प्रस्तुति
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
अजय जी,
सुन्दर रचना.. सभी शेर दमदार हैं
उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा
’अजय’ न था शैतान हरगिज़ जबकि वो पैदा हुआ
ज़िंदगी की ठोकरों से खुद-ब-खुद ढलता रहा
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