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Thursday, January 31, 2008

काव्य पल्लवन जनवरी 2008







काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन




विषय - बिजली

विषय-चयन - विवेक रंजन श्रीवास्तव

अंक - ग्यारह

माह - जनवरी 2008





जनवरी माह के काव्य पल्लवन का शीर्षक "बिजली" श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव द्वारा सुझाया गया था जिन्होंने इस विषय पर कविता के साथ साथ दो सुन्दर छायाचित्र भी भेजे हैं। छायाचित्रों समेत इस बार कुल 18 रचनायें प्राप्त हुईं। बिजली के तो कई प्रयाय हैं जैसे तड़ित, चपला, विद्युत, वज्राग्नि, गाज, सौदामिनी, दामिनी, हीर, शम्पा, अणुभा, आशनि, समनगा और चंचला इत्यादि, परन्तु इस काव्य पल्लवन के संदर्भ विशेष में बिजली (विद्युत) को ही कवियों ने लक्ष्य बनाया है.. और क्यों न हो ज्यादातर लोग उसी के सताये हुये हैं... तो कीजिये रसास्वादन इस बार के काव्य पल्लवन अंक का -



*** प्रतिभागी ***
| पंकज रामेन्दू मानव | विपिन चौधरी | गीता पंडित (शमा) | गिरीश बिल्लोरे "मुकुल" | ममता गुप्ता |
| डॉ. नंदन | विनय के जोशी | संतोष शर्मा | सौमित्र बैनर्जी | दिवाकर मिश्र | विवेक रंजन श्रीवास्तव |
| प्रो सी बी श्रीवास्तव | शैलेश जमलोकी | सीमा गुप्ता | महक | शोभा महेन्द्रू |
| विश्व दीपक 'तन्हा' | छायाकार - श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव |


~~~अपने विचार, अपनी टिप्पणी दीजिए~~~




बिजली से हमारे नाता काफी पुराना है,
हमारे पूर्वज आसमानी गरज से डरते थे
और बिजली की पूजा करते थे।

बिजली के कई कलात्मक रूप हैं
कही नकारात्मक तो कहीं सकारात्मक स्वरूप है
बचपन में आसमानी बिजली हमे बहुत लुभाती है
जवानी में षोडशी कन्या हमारे दिल पर बिजली गिराती हैं
बुढ़ापा आते-आते हमारी शारीरिक बिजली खत्म हो जाती है।
यानि बचपन से लेकर बुढ़ापे तक बिजली हमें कई रंग दिखाती है।

कहीं नाम का करंट, कहीं दाम का झटका है
कहीं वादे के एसी से जलता एक लट्टू लटका है
विकास के बांध से क्या बिजली बन पाएगी ?
कई अंधेरी बस्तियों में यही खटका है ।

सुबह से रिक्शा खींचती, बोझ ढोती भूख को
एक अदद रोटी से,बेरोज़गारी के अंधेर में भटकती पीढ़ी को
एक सुखद नौकरी से,
प्यासे को पानी से, मौज को रवानी से
बचपन को नादानी से, जोश को जवानी से
बिजली मिलती है,
इन छोटी-छोटी बातों से
ज़िंदगी की बत्ती जलती है ।

- पंकज रामेन्दू मानव




हम अँधेरे में रहने के आदी कभी नहीं थे
अखिरकार हमने रोशनी को खोजा
फिर उसका आधुनिकरण कर
उसे अपनें अनुकूल ढाल लिया

अब हाल यह है की
अक्सर बिजली को हमसे
और हमें बिजली से शिकायत रहती है

सच है, अब हम
बिजली के सताये हुये
पूरी तरह से बेबस इंसान हैं

पर यह भी उतना ही सच है
इस दुनियादारी में हर कदम पर
बिजली ने हमारा साथ दिया है

दुनियादारी के ये सारे
चमकिले साजो सामान
बिजली के ही सहारे हमें मिले हैं

एक सच यह भी है
सब पर इसका साझाँ हक नहीं है
बिजली ने गरीबो का नहीं,
हमेशा अमीरों का ही साथ दिया है

यकायक बिजली गुल होती है
तब हम बेबस हो जाते हैं
अंधेरा हमें कचोटता है हम
बिजली के दामन की ओर लपकते हैं

पर इतना आसान नहीं है
बिजली का सहज साथ
यह अब आसमान की तरह
बिलकुल साफ है

इस बिजली के पीछे हम
अपने जुगनूओं लाऊँ
की भीनी रोशनी को
भूल बैठे हैं

और क्या बतलाऊँ
इस बिजली की कहानी
डर है कहीं मैं
अपने समेटे हुये अँधेरे इस बिजली गाथा के
चक्कर में गवाँ न बैठूँ

वो अँधेरे जो बिजली के स्वाभिमान को
टक्कर देने के लिये मैनें बडी कोशिशो से बचा कर रखे हैं।

- विपिन चौधरी




उमड़-घुमड़ घनघोर - घटाएँ,
जब भी नील-गगन में छायें
बिजली की ले दीप्त ध्वजाएं,
दिग - दिगांतर में फहराएँ,
मन मेरा आली ! डर जाये,
मेरे पिया, अभी ना आये |
मेरे पिया, अभी ना आये, |

यूँ सारा सुनसान - सदन ये,
पर घन की आवाज सघन ये,
नित बादल घिर मुझे डराएं,
पी का संदेसा नहीं लाएं
मन मेरा आली ! डर जाये,
मेरे पिया अभी ना आये |
मेरे पिया, अभी ना आये |

प्रथम दामिनी बाहर चमके,
दूसरी अंतर्मन में दमके,
जलती बुझतीं अभिलाषाएं,
दिप-दिपा उडगन सी जायें,
मन मेरा आली ! डर जाये,
मेरे पिया अभी ना आये |
मेरे पिया, अभी ना आये |

- गीता पंडित (शमा)




हर तरफ उल्हास सा है गुमशुदा है तीरगी ...!!

तुम इसे कह दो सवेरा
स्वर्ग का आलोक कह दो
जो भी चाहो मुक्त हो तुम
एक पल मुझ में तो रह लो
तुम्हारी यादों की बिजली कौंध जाए जब कभी भी

हर तरफ़ उत्साह सा है.गुमशुदा है तीरगी !

मन तपस्वी सा सहज हो
धुंध में भी देखता है
एक कण भी ज्योतिका का
सहज ही सहेजता है .
बिहंसी बिजुरी सी तुम्हारी मिलेगी जब भी कभी

हर तरफ़ संन्यास होगा दूर होगी तीरगी !!


- गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"




हाय, ये बिजली फिर बिजली गिरा कर चली गई,
सुख चैन मेरा लूट कर घंटो न आने को चली गई !
नाश्ता, प्रेस, कपड़े,बर्तन, कितना सारा काम था ?
पर यह तो हाथ पर हाथ धर मुझे बिठा कर चली गई!
उद्योग, फैक्ट्री, बैंक, बाज़ार, टी.वी, कंप्यूटर और व्यापार
सबका कर चक्का जाम, ब्रेक लगा कर चली गई!
धारा से गगन तक प्रभुत्व है जिसका,उस मानव को अशक्त बना कर चली गई!
प्रिय, तू है तो जीवन मे गति है, नही तो सब स्थिर है, जंगल है !
आजा, राजदुलारी आजा .....क्यों तरसा कर चली गई?

- ममता गुप्ता




मैं कुदरत की बेटी थी
अलसाई सी लेटी थी
आसमान के सीने में
धरती के गर्भ में
अतल नील सागर में
हवाओं के कण-कण में
अपने उद्यम से
तुमने मुझे जगाया
चंचला बनाया
मेरी शक्ति को साधने के लिए
तुमने अनंत का सीना झाँका
हवाओं को बाँधा
सागर की गहराई नापी
धरती के उमस अंधेरे से
मुझे बाहर निकाला
माना मैं शक्ति विनाशी हूँ
मैं नहीं किसी की दासी हूँ
मैं चपला हूँ,मैं दामिनी हूँ
सारे जग की मैं स्वामिनी हूँ
पर मानव मैं तुमसे हारी हूँ
मानवता पर खुद को वारी हूँ
तुम मेरा उपयोग करो
सुरक्षा के साथ भोग करो

(नियंत्रित उपयोग का वरदान है)

- डॉ. नंदन




बिजली पर कुछ क्षणिकाएँ :-

(१)

शतप्रतिशत
विद्युतीकरण
की प्राप्ति में
छोटी सी कमी
सरकार को
खली न थी
तार था
खम्भा था
बल्ब था
बिजली न थी

(२)

महाभारत
की कथा में अचानक
सभी भक्तों की
खुशियाँ चली गई
चीर हरण के
दृश्य से पहले
बिजली चली गई

(३)

बिजली के जलते
बल्ब को देखो
कही खुशियाँ
एक स्विच की
मोहताज तो नही ?

(४)

केवल बिजली ही
काफी नही
रोशनी के लिए
अभय भी चाहिए
गुलेल और कंकर से

(५)

एकाकार
राजनीति
और
बाहुबली
मानों
करंट
और
बिजली

- विनय के जोशी




बिजली चोरी का अपराध राष्ट्र द्रोह कहलाय !!

बिजली चोरी ना करो राखो अपना मान
क्षुद्र स्वार्थ में राष्ट्र का क्यों करते नुकसान !!

पकड़ गये तो जुर्माना और सजा हो सकती है
गये ना पकड़े तो भी दुर्घटना घट सकती है !!

जागो जागो माता बहनो जागो सब इंसान
भारत की चहुँमुखी प्रगती में बिजली है वरदान !!

खुद भी चोरी ना करो और करे ना कोय
बिजली चोरी का अपराध राष्ट्र द्रोह कहलाय !!

- संतोष शर्मा




बिजली एक कल्पना ऐसी
तड़ित रूप में नभ में रहती
जब उत्पादित हो कृत्रिम यह
तारों की लहरों पर बहती

इन तारों के कठिन जाल में
बिजली रानी यूँ इठलाती
मानो सारा मानव जीवन
है इसका आधार बताती

बिजली ऐसी आवश्यकता है
जिससे नहीं चुरा सकते मुख
यदि कभी खो जाये यह तो
बढ़ जाते है धरती पर दुख

- सौमित्र बैनर्जी




स्कूटर से दोनों आ रहे थे पाँच किलोमीटर दूर दूसरे गाँव से
एक खासमखास की बेटी के जन्मदिन की दावत थी ।
कोई चारा नहीं बचा बरगद की शरण लेने के सिवा,
क्योंकि पहिए रपट रहे थे,
सड़क भी पतली थी,
अँधियारी रात सी घटा और मूसलाधार बारिश ।
साथ में पत्नी,
घनी घटाएँ,
बरसात,
चमकती बिजली,
वह गुनगुना उठा वह गाना
जो अभी सुनकर आया था समारोह में,
डेक पर बज रहा था- दिल पे बिजली ऐसी गिराई...

हाय क्या विधाता को इसी क्षण जुबान को सच करना था ?
वह पूर्वी आकाश में चमका आलोक पुञ्ज
समा गया पत्नी के सीने में,
आस-पास की ज़मीन को भी थर्राता हुआ,
हाय तक न कहने देता हुआ,
गाने की अगली लाइन सच करता हुआ-
जाँ मेरी ले उड़ी...

कैसे लोग उन बातों को भी मजाक बना लेते हैं
जिनका सामना करने की भी हिम्मत नहीं होती ?
क्या होता है बिजली गिरना ?
क्या होता है जाँ ले उड़ना ?

अब वह पत्नी को बाँहों में भरे जड़वत्
ठिठका बैठा था
न रो रहा था
न हिल रहा था
कौन कह सकता है कि बिजली उसके दिल पर गिरी या इसके दिल पर गिरी ?
कौन कह सकता है कि जान उसकी गई या इसकी गई ?

- दिवाकर मिश्र




शक्ति स्वरूपा ,चपल चंचला ,दीप्ति स्वामिनी है बिजली ,
निराकार पर सर्व व्याप्त है , आभास दायिनी है बिजली !

मेघ प्रिया की गगन गर्जना , क्षितिज छोर से नभ तक है,
वर्षा ॠतु में प्रबल प्रकाशित , तड़ित प्रवाहिनी है बिजली !

क्षण भर में ही कर उजियारा , अंधकार को विगलित करती ,
हर पल बनती , तिल तिल जलती , तीव्र गामिनी है बिजली !

कभी उजाला, कभी ताप तो, कभी मशीनों का ईंधन बन जाती है,
रूप बदल , सेवा में तत्पर , हर पल हाजिर है बिजली !

सावधान ! चोरी से इसकी , छूने से भी , दुर्घटना घट सकती है ,
मितव्ययिता से सदुपयोग हो , माँग अधिक , कम है बिजली !

गिरे अगर दिल पर दामिनि तो , सचमुच , बचना मुश्किल है,
प्रिये हमारी ! हम घायल हैं, कातिल हो तुम, अदा तुम्हारी है बिजली !

सर्वधर्म समभाव सिखाये , छुआछूत से परे तार से , घर घर जोड़े ,
एक देश है ज्यों शरीर और, तार नसों से , रक्त वाहिनी है बिजली !!

- विवेक रंजन श्रीवास्तव




अग्नि , वायु , जल गगन, पवन ये जीवन का आधान है
इनके किसी एक के बिन भी , सृष्टि सकल निष्प्राण है !

अग्नि , ताप , ऊर्जा प्रकाश का एक अनुपम समवाय है
बिजली उसी अग्नि तत्व का , आविष्कृत पर्याय है !

बिजली है तो ही इस जग की, हर गतिविधि आसान है
जीना खाना , हँसना गाना , वैभव , सुख , सम्मान है !

बिजली बिन है बड़ी उदासी , अँधियारा संसार है ,
खो जाता हरेक क्रिया का , सहज सुगम आधार है !

हाथ पैर ठंडे हो जाते , मन होता निष्चेष्ट है ,
यह समझाता विद्युत का उपयोग महान यथेष्ट है !

यह देती प्रकाश , गति , बल , विस्तार हरेक निर्माण को
घर , कृषि , कार्यालय, बाजारों को भी ,तथा शमशान को !

बिजली ने ही किया , समूची दुनियाँ का श्रंगार है ,
सुविधा संवर्धक यह , इससे बनी गले का हार है !

मानव जीवन को दुनियाँ में , बिजली एक वरदान है
वर्तमान युग में बिजली ही, इस जग का भगवान है !

कण कण में परिव्याप्त , जगत में विद्युत का आवेश है
विद्युत ही जग में , ईश्वर का , लगता रूप विशेष है !!


- प्रो सी बी श्रीवास्तव




बिजली,
एक शब्द-हिंदी का
जिसका ख्याल मन मै आते ही
एक कम्प्कपाहट का होता है
आभास

बिजली,
एक रूप-उस ऊर्जा का
जो न पैदा होती है न नष्ट
बस बदल देती है अपना
आचरण

बिजली
एक ध्योतक -उजाले का
जो रोशन कर दे जिंदगी
बिना जिसके लगती है जो
अधूरी

बिजली
एक वरदान- भगवान का
जिसके ज्ञान से इंसान ने
कर दी है हर बाधा
आसान

- शैलेश जमलोकी




खो ना दूँ तुझको इस डर से तुझे कभी मैं पा न सका ,
चाहता रहा शीद्त्त से मगर तुझे कभी जता ना सका.

वीरान आँखों के समुंदर मे अपने आंसुओं को पीता रहा ,
दिल के दर्द की एक झलक भी मगर तुझे दिखा ना सका .

तेरा ख्याल बन कर बिजली और एक तूफान मुझे सताता रहा ,
इश्क मे जलने का सबब मगर तुझे कभी समझा ना सका .
तू बदनाम न हो जाए , मैं जमाने मे गुमनाम सा जीता रहा
लबों पे नाम तो था पर आवाज देकर तुझे बुला ना सका .

तु कभी गैर की न हो जाए ये ख्याल हर पल मुझे डराता रहा
शिकवा आज भी है इस डर से तुझे कभी अपना भी ना सका

उपर वाला बस बेदर्द हो गम की "बिजली" मुझपे ही गीराता रहा,
तुझसे जुदा होके भी अपना आशियाँ झुलसने से मैं बचा ना सका ……

- सीमा गुप्ता




नीले नभ की छुपी नीलाई
शामल घटाए उस पर छाई
बदरा उमड़ घूमड़ कर आई
अपनी संगिनी को रहे पुकार
इठलाती,बलखाती थिरकत ताल
सुनाती बिजलियाँ अपनी झंकार |

अपनी आने की आहट बताए
प्रकाश चमकती लकीरे बिखराए
खुश होती वो जब ये देखती
इंसानो में अब भी बसता प्यार
बदरा से करती इश्क़ इज़हार
सुनाती बिजलियाँ अपनी झंकार |

कोई सृजन पीड़ित नज़र आए
त्रिनेत्र को गहरी नींद से जगाए
करती उनके संग तांडव नृत्य
जब तक असत्य को ना जलाए
ख़त्म करना चाहे धरासे अत्याचार
सुनाती बिजलियाँ अपनी झंकार |

सत्य,अहिंसा विजयी हो जाए
सब के संग तब वो जश्न मनाए
हरित क्रांति का संदेसा पहुँचाती
बदरा से कहती अब बरसाए
शीतल बूँदो की मधुरस फुहार
सुनाती बिजलियाँ अपनी झंकार |

चाहे जितना हो उन में अंगार
बिजली नभ का गहना शृंगार
बिजली बिन बदरा लगे अधूरे
मिलकर दोनो करे सपने साकार
जीवन को दिलाए नया आकार
सुनाती बिजलियाँ अपनी झंकार |


- महक




प्रतिपल आती -जाती
बिजली से दुःखी हो
हमने बिजली दफ्तर में
गुहार लगाई
विद्युत अधिकारी ने
लाल-लाल आँखें दिखाई
अजीब हैं आप--
हम पर आरोप लगा रहे हैं
अरे हम तो आपका ही
खर्च बचा रहे हैं
इस मँहगाई में
बिजली हर समय आएगी
तो बिजली का बिल देखकर
आप पर------
बिजली नहीं गिर जाएगी ?

बिजली की किल्लत से वो
जरा नहीं घबराते हैं
परिवार को अपने
आस-पास ही पाते हैं
टी वी और कम्प्यूटर को
हँसकर मुँह चिढ़ाते हैं
क्योकिं –
जब भी श्रीमान जी
दफ्तर से आते हैं
बिजली को हरदम
गुल ही पाते हैं

- शोभा महेन्द्रू




देखो! हुजूम बेईमानों के कितने हैं घनघोर हुए,
बड़े-बड़े उद्योगपति भी जब बिजली के चोर हुए ।

बिजली-
जिसके आने से रात चमक-सी जाती है,
फुटपाथ से बिजली-
धूप-दीप गरीब-गुनबे को दिखलाती है,
जीना सिखलाती है,
बिजली-
जिसके जोर-शोर से गाँव-गाँव रौशन हुए,
जगमग बिजली-
हर मौसम ही लोगों का दर्द घटाती है।

क्या मिलता है उनको, जो इसके कमर-तोड़ हुए,
बड़े-बड़े उद्योगपति भी जब बिजली के चोर हुए ।

बिजली-
जिसकी चहल-कदमी जीवन का पर्याय बनी,
बिजली गली-मुहल्ले में-
माँ-बहन की हया की धाय बनी,
जीने का उपाय बनी,
बिजली-
सुख-समृद्धि बटोर हेल-मेल बढ़वाती है,
हर पल बिजली-
घर-घर बँटकर खुशियों का एक निकाय बनी।

ऐसी बिजली से जाने क्यों,अपने हीं यूँ कठोर हुए,
बड़े-बड़े उद्योगपति भी जब बिजली के चोर हुए ।

बिजली-
तकनीकी दुनिया में एक सबल उदाहरण है,
पवन-चक्की ऒ' पनबिजली-
और भी कई हज़ार ही रूप-धन हैं,
कई सारे ही अवतरण हैं,
बिजली-
बेचारी! हरेक जन्म दूजे-खातिर जल जाती है,
सचमुच बिजली-
इस दुनिया में सूरज के ही दोउ नयन हैं।

बोलो कब-तक सहना होगा, इसको यूँ ही अघोर हुए,
बड़े-बड़े उद्योगपति भी जब बिजली के चोर हुए ।

*अघोर=भगवान शंकर

- विश्व दीपक 'तन्हा'








छायाकार - श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव



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70 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

" बिजली मानो तो एक शब्द, जियो तो एक जरूरत, सुनो तो एक कड़क आवाज, देखो तो एक चमक, सोचो तो एक अजूबा, और महसूस करो तो शायद एक गम भी....." ये तो वही वाली बात हुई न एक नाम और इतने अर्थ. यहाँ आज बिजली के इतने रूप प्रस्तुत हुये हैं की यकीन ही नही हो रहा की बिजली को इस तरह से बखान किया जा सकता है.
ये भी अपने आप मे एक अजूबा ही है, आप सब कवी मित्रों को बहुत बधाई जो एक से बढ़ कर इस विषय पर कवीता प्रस्तुत की और एक इतिहास बना डाला.
"With Regards"

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

रचनाएँ अच्छे है |
छाया चित्र भी |
सभी को बधाई |

आओ बिजली बचाई

अवनीश तिवारी

Alok Shankar का कहना है कि -

gita ji,
Your poem is great.

pankaj ramendu का कहना है कि -

बिजली के जलते
बल्ब को देखो
कही खुशियाँ
एक स्विच की
मोहताज तो नही ?

विनय जी आपकी यह क्षणिका बहुत ही उम्दा है.. मज़ा आ गया .. आपको मेरी ओर से बधाई...

Anonymous का कहना है कि -

bijli ke itne alag alag roop ko padhkar behad kushi hui.sari rachanaye bahut sundar hai,khas kar skhanikayen behad khubsurat.sab ko badhai.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बिजली के इतने रंग दिखे हर रचना में यहाँ .बहुत अच्छा लगा इस विषय पर यूं अलग अलग ढंग से पढ़ना ,सबका लिख अहि बहुत अच्छा लगा .विनय जी की यह विशेष रूप से पसंद आई
बिजली के जलते
बल्ब को देखो
कही खुशियाँ
एक स्विच की
मोहताज तो नही ?

गीता जी की लिखी यह पंक्तियाँ अच्छी लगी

प्रथम दामिनी बाहर चमके,
दूसरी अंतर्मन में दमके,
जलती बुझतीं अभिलाषाएं,
दिप-दिपा उडगन सी जायें,

शैलेश जी की यह अच्छी लगी पंक्तियाँ

बिजली
एक ध्योतक -उजाले का
जो रोशन कर दे जिंदगी
बिना जिसके लगती है जो
अधुरी

शोभा जी ममता जी ,की व्यंग करती हुई रचना अलग सी है ..बाकी सब भी अपने अपने अंदाज़ में लिखी गई बहुत अच्छी है ..बधाई एक और सफल अंक के लिए !!

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

कौन कहता है बिजली आकाश में होती है..
हिन्द-युग्म पर आकर देखो
बिजली एकदम पास में होती है..
हर आम में होती है हर खास में होती है..
हर शब्द में लय में एहसास में होती है..
हर रंग में होती है हर लिबास में होती है..
पाठकों की आलोचना में, शाबाश में होती है..
हमने सुनते है तो हम भी फूल कर कुप्पा हो जाते हैं
कि...
कभी कभी बिजली अपनी भी बकवास में होती है..
कहते है इंसान में माइट्रोकोंड्रिया बिजली घर है..
और बिजली ही चालक है ऊर्जा है..
बिन बिजली मानव जंग लगा सा पुर्जा है..
मेरे गाँव का एक किस्सा है..
लालच में बिजली के तार चुराने खम्बे पर चढ़ा
देखते ही देखते जमीन पर कबूतर सा आ पड़ा
ट्रांसफॉरमर फुका और गाँव की बिजली हो गयी गुल
पता चला जो बिजली चुराने चला था
उसी की भैंस अंधेरे में गयी खुल..
पैरों से खुदाई की तब होश आया..
फिर अपनी करनी पर शरमाया..
सो भैया इस जनम की करनी का फल
यही मिल जाता है..
भगवान जी के पास भी काम बहुत है..
अगले जन्म के लिये कैरी फॉरवर्ड नही करते हैं
ब्रह्म विधेयक पास हो गया है..
सो यहाँ का हिसाब यहीं करते हैं..

- सभी की कवितायें लाजवाब..
बहुत बहुत बधाई हो साब..

Anonymous का कहना है कि -

१.रामेंदु जी, बिजली के कुछ अनछुए पहलुओं को आपने अपनी कविता मी उकेरा है,अच्छा लगा.
सुबह से रिक्शा खींचती, बोझ ढोती भूख कों
एक अदद रोटी से,बेरोज़गारी के अंधेर में भटकती पीढ़ी को
एक सुखद नौकरी से,
प्यासे को पानी से, मौज को रवानी से
बचपन को नादानी से, जोश को जवानी से
बिजली मिलती है,
इन छोटी-छोटी बातों से
ज़िंदगी की बत्ती जलती है ।
हालांकि शुरू मी थोड़ा कमजोर दिखे पर अन्तिम पंक्तियों से कविता मी जान फूंक दी.बधाई हो.
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

२.अब हाल यह है की
अक्सर बिजली को हमसे
और हमें बिजली से शिकायत रहती है
विपिन जी इन पंक्तियों से आपने बिजली के यथार्थ कों प्रस्तुत करने का प्रयास किया. शैली तो दुरुस्त रही पर विचारों में कसाव का अभाव खला.
आलोक सिंह 'साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

३. गीता जी, बहुत ही अच्छे अंदाज में आपने बिजली कों बयां किया.कविता की शुरुआत में लगा कि "पन्त" जी की "ग्राम्या" पढ़ रहा हूँ.अच्छी प्रस्तुति.
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

हर तरफ़ उत्साह सा है.गुमशुदा है तीरगी !
गिरीश जी बहुत ही शानदार पंक्ति है.
अंत मे
हर तरफ़ संन्यास होगा दूर होगी तीरगी !!
का होना कविता की मरकता कों बढ़ा देता है.
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

ममता जी,आपकी कविता पढ़कर बरबस हँसी आ गई.आपने तो बिजली की महिमामंडन कर डाला अच्छा है.घर गृहस्थी से लेकर सामाजिक जीवन तक सब जगह बिजली की अनिवार्यता कों सही अंदाज मे उकेरा है.
प्रिय, तू है तो जीवन मे गति है, नही तो सब स्थिर है, जंगल है !
आजा, राजदुलारी आजा .....क्यों तरसा कर चली गई?
बहुत खूब
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

नंदन जी बहुत ही जोरदार प्रस्तुति है,मजा आ गया.सच कहूँ तो आपकी कविता मे मीन-मेख निकालने का साहस नहीं जुटा पाया.क्या खूब कहा-
माना मैं शक्ति विनाशी हूँ
मैं नहीं किसी की दासी हूँ
मैं चपला हूँ,मैं दामिनी हूँ
सारे जग की मैं स्वामिनी हूँ
पर मानव मैं तुमसे हारी हूँ
मानवता पर खुद को वारी हूँ
तुम मेरा उपयोग करो
सुरक्षा के साथ भोग करो
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

विनय जी आपकी सारी क्षणिकाएँ पढीं पर ऐसी कोई एक क्षणिका नहीं रही जिसका अलग से उल्लेख किया जा सके क्योंकि सभी की सभी अपने आप में सशक्त रहीं पर चौथे क्षणिका ने अलग ही रूप धारण कर रखा था
केवल बिजली ही
काफी नही
रोशनी के लिए
अभय भी चाहिए
गुलेल और कंकर से
बेहतरीन...........
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

संतोष जी, आपने दोहे के माध्यम से बिजली चोरी के विषय कों उठाने का अच्छा प्रयास किया है, परन्तु आपने बिजली विषय कों बहुत ही संकरे दायरे मे समेट दिया .
खैर,बहुत दिनों बाद दोहे पढने कों मिले,धन्यवाद
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

सौमित्र जी ठीक ठाक रचना पर दिल मे नहीं उतर पाई,गहराई का घोर अभाव.शायद बाल उद्यान के वास्ते लिखी गई कविता.खैर आपने बिजली के उस रूप कों छुआ जो मेरे माफिक थी, इसलिए बधाई हो.
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

दिवाकर जी हिला देने वाली कविता विशेषकर ऐ पंक्तियाँ-
कौन कह सकता है कि बिजली उसके दिल पर गिरी या इसके दिल पर गिरी ?
कौन कह सकता है कि जान उसकी गई या इसकी गई ?
बहुत ही अच्छे अंदाज मे लिखी गई कविता,मजा आ गया.
बहुत बहुत शुभकामना
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

विवेक जी,इसबार चूँकि विषय आपके द्वारा सुझाया गया था तो मुझे आपसे बहुत ही ज्यादा उम्मीदें थी,खुशी हुई आप मेरे उम्मीदों पर काफी हद तक खरे उतरे.बिजली के तकरीबन हर रूप कों छूने का अच्छा प्रयास.बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

विवेक जी,इसबार चूँकि विषय आपके द्वारा सुझाया गया था तो मुझे आपसे बहुत ही ज्यादा उम्मीदें थी,खुशी हुई आप मेरे उम्मीदों पर काफी हद तक खरे उतरे.बिजली के तकरीबन हर रूप कों छूने का अच्छा प्रयास.बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

जमलोकी भाई,बहुत ही नपा तुला और संतुलित काव्य.
बिजली
एक ध्योतक -उजाले का
जो रोशन कर दे जिंदगी
बिना जिसके लगती है जो
अधूरी
सच कहूँ तो मैं ख़ुद के लिए इसे एक नजीर की तरह ही मानूँगा.बधाई हो भाई जी
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

सीमा जी मैं आपके गजल कहने के अंदाज का शुरू से ही कायल रहा हूँ और ये भी सत्य है की आप मेरी प्रिय कवियित्रिओं मे से एक हैं पर इसबार आपने विषय कों संकुचित कर दिया.
यद्दपि की गजल पढने मे मस्त लगती है परन्तु दायरे की संकीर्णता खली.मैं आपसे और ज्यादा की उम्मीद कर रहा था.आप कों बुरा लगे तो माफ़ कीजिएगा परन्तु एकबार अच्छा प्रदर्शन करने के बाद आप पीछे नहीं भाग सकते.आपको उत्तरोत्तर आगे ही बढ़ना होता है,खैर्म, कुछ ज्यादा ही हो गया.
शुभकामनाओं सहित
आपका प्रशंसक
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

महक जी दिल खुश कर दिया आपने,आपके कविता से मिटटी की सोंधी महक निरंतर आती रही टैब भी जब मैं कविता ख़त्म कर चुका था.बधाई हों
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

शोभा जी मजाहिया अंदाज मे अच्छी कविता.बधाई हों
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

तन्हा भाई इसबार तो आपने डंका ही बजा दिया अपनी श्रेष्ठता का.अगर समीक्षा की बात की जाए तो मैं यही कह पाउँगा की-मस्त कवि द्वारा मस्त अंदाज मे मस्त कर देने वास्ते लिखी गई एक मस्त कविता.
नमन है आपको बड़े भाई,हिला दिया आपने तो....
सादर
आलोक सिंह "साहिल"

seema gupta का कहना है कि -

" साहिल जी निष्पक्ष होकर अपनी प्रतिक्रिया देने का दिल से शुक्रिया, कोशिश जारी है की मैं किसी को भी अपने लेखन से निराश ना करू, और इसमे बुरा लगने जैसी कोई बात नही है , तारीफ तो सभी कर सकतें है, लेकिन खामियों को बता कर अच्छा लिखने को प्रेरित करना एक अलग बात है , आपका दिल से शुक्रिया.
Regards

Sajeev का कहना है कि -

कमल है भाई इतने अलग और हट कर चुने विषय पर भी कवियों ने जबरदस्त प्रस्तुति दी है, सभी को हार्दिक बधाई ये पंक्तियाँ बेहद यादगार रहेंगी
बिजली के जलते
बल्ब को देखो
कही खुशियाँ
एक स्विच की
मोहताज तो नही ?

Anonymous का कहना है कि -

विवेक जी अच्छे छायांकन के लिए बधाई.
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

राघव जी,आप भी खूब हैं,जिस कदर कविता से मन मोहते हैं उतनी ही अच्छी प्रतिक्रिया भी,आपकी तिप्पदी मे भी उतना ही खुमार है जितना की आपकी कविताओं मे होता है,बहुत अच्छे.
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

सीमा जी मुझे अत्यन्त खुशी है कि मेरी प्रतिक्रिया को आपने सकारात्मक तरीके से लिया.एक अच्छे साहित्यकार से ऐसी ही उम्मीद कि जा सकती है,बहुत बहुत साधुवाद.
आलोक सिंह "साहिल"

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

- पंकज रामेन्दू मानव जी,
१)आपकी कविता पढ़ कर कभी ऐसा लगा जैसे आपने बिजली को हमारे जीवन से जोड़ने की कोशिश की और कभी ऐसा भी महसूस हुआ की जैसे.. शीर्षक से किसी तरह जोड़कर कविता लिखने की कोशिश. (ये मेरे व्यक्तिगत विचार है..मुझे जैसे पढ़ कर लगा.. वैसे कहना चाहा )
२)रूपक अलंकार का बहुत सुन्दर प्रयोग है..
जैसे "कहीं नाम का करंट, कहीं दाम का झटका है
कहीं वादे के एसी से जलता एक लट्टू लटका है
विकास के बांध से क्या बिजली बन पाएगी ?"
३) प्रस्तुतीकरण सुन्दर हो सकता था...
४) विराम चिह्न प्रयोग ठीक है.. शब्द चयन भी सुन्दर है
५) कुछ अलग सोच से लगी आपकी कविता..
बधाई हो...
सादर
शैलेश

Anonymous का कहना है कि -

अगर बात करें अपने पसंद कि कविताओं कि तो निश्चित तौर पर तो मैं आपका नाम लेना चाहूँगा-
गीता जी,तन्हा भाई,नंदन जी और अंत में सीमा जी,आप सबों ने बहुत ही बेहतरीन कविता करी.आप सबों को अलग से और दिल से बधाई.
उम्मीद है अगली बार इससे भी जोरदार पढने को मिलेगा.
आपका
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

बात करें सबसे कमजोर प्रस्तुति कि तो ये इन्तजार शायद इस माह पूर्ण होने से रहा.मुझे लगा कोई न कोई तो मेरे द्वारा रिक्त किए गए स्थान कि भरपाई करेगा ही,परन्तु मैं ग़लत था.
पुस्तक मेला में निमंत्रण सहित
आलोक सिंह "साहिल"

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

विपिन चौधरी जी
-आपकी कविता हमारे और बिजली के रिश्ते को जीती है..
- अछे मुक्तक का उदाहरण है
- भाव पक्ष-लक्षणा का अच्छा काव्य है...
- कविता और अच्छी हो सकती है.... प्रयास जारी रखे
-प्रस्तुतीकरण ठीक है पर विराम चिहन कम है..

सादर
शैलेश

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

गीता पंडित (शमा) ji
- बहुत अच्छा बन पडा है ..
- गाया जा सकता है
-शब्द चयन और प्रस्तुति कारन इतना सुन्दर है की.. जिज्ञासा बनी रहती है.. नयी पंक्ति पड़ने की.
- प्रसंग भी बहुत सुन्दर चुना है.. लगता है.. शीर्षक पर बहुत सुन्दर बैठती है कविता..
-प्रथम दामिनी बाहर चमके,
दूसरी अंतर्मन में दमके,
जलती बुझतीं अभिलाषाएं,
दिप-दिपा उडगन सी जायें,
मन मेरा आली ! डर जाये,
मेरे पिया अभी ना आये |
मेरे पिया, अभी ना आये |
ये पंक्तिया बहुत अछ्ची लगी...
आपकी कविता इस गुलदस्ते के सबसे अच्छी कविताओ मै से एक है..
बधाई
सादर
शैलेश

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

- गिरीश बिल्लोरे "मुकुल" जी.
- पहले आप मुझे तीरगी की मतलब बताएं
- आपकी कविता मुझे शीर्षक तो हट कर लगी...पर अच्छी थी,,,
-अच्छी संकल्पना और भावो को ले कर आई है आपकी कविता..
बधाई.
सादर
शैलेश

Amit Verma का कहना है कि -

yet another sitter Seema, great going .. all the best :)

- Amit Verma

दिवाकर मिश्र का कहना है कि -

राघव जी ! आपने टिप्पणी क्या लिखी कि जिनपर टिप्पणी लिखी है उन्हें ही मात देते से लग रहे हैं । क्या सुन्दर कविता है और शीर्षक को कितनी अच्छी तरह से जी रही है । अच्छी रचना के लिए बधाई ।

दिवाकर मिश्र का कहना है कि -

पंकज जी, आपने अपनी कविता में अच्छी तरह से बिजली के कई रूप प्रस्तुत किए हैं । बिजली की समस्या को भी ठीक से रेखांकित किया है । अन्त की पंक्तियों में ऊर्जामात्र का प्रतीक बिजली को बनाया है । बधाई ।

विपिन जी, आपकी कविता में भी प्रवाह निरन्तर बना रहता है । अन्त की पंक्तियाँ, तिल तिल कर अपने स्वाभिमान की रक्षा करने का दृश्य जो खींचती हैं, विशेष अच्छी लगीं । बधाई ।

गीता जी, आपकी कविता ने विरहिणी की दशा का चित्र अच्छा खींचा है, पर उसकी व्यथा को (मुझे जैसा लगता है) कम व्यक्त कर सकीं हैं जबकि जो चित्र खींचे हैं वे उसी उद्देश्य से खींचे जान पड़ते हैं । कविता चित्र और लय दोनों ही दृष्टियों से सुन्दर है । बधाई ।

दिवाकर मिश्र का कहना है कि -

मुकुल की, आपकी कविता को चार पाँच बार पढ़ा, फुटकर में तो समझ में आती है पर तीरगी शब्द के कारण समग्र रूप में समझने में कठिनाई होती है । कविता सुन्दर है । बधाई ।

ममता जी, आपकी भी कविता अच्छी है । नाश्ता, प्रेस, कपड़े,बर्तन, उद्योग, फैक्ट्री, बैंक, बाज़ार, टी.वी, कंप्यूटर और व्यापार- आदि बिजली पर अनेक प्रकार की मानवीय निर्भरता शायद उसके सर्वशक्तिमत्ता के अभिमान को नीचा रखने के लिए है । जब भी वह अहंकार में भरने लगे, आपकी यह बिजली उसकी शक्ति का अहसास कराकर नीचे ले आती है । बधाई ।

डॉ. नन्दन जी, आपने तो बिजली की आत्मकथा या आत्मपरिचय ही लिख दिया और साथ ही सन्देश भी दिया है इसका ठीक से उपयोग करने का । बधाई ।

विनय जी, आपकी हर क्षणिका दमदार और ठोस है । अगर हर क्षणिका के बारे में कहने लगूँ तो स्वयं क्षणिका से भी बड़ी बड़ाई हो जाएगी । इसलिए कहने को रहने ही देते हैं पाठकों को महसूस ही करने दें । बधाई ।

दिवाकर मिश्र का कहना है कि -

सन्तोष जी, आपके दोहों में बात अच्छी कही गई है परन्तु एक बात कुछ लगने लगती है । ये न तो मुक्त छन्द में हैं और न ही किसी छन्द की लय में । दोहा पढ़ते हुए जब लय बिगड़ती है तो थोड़ा खलता है । इसलिए दोहा लिखने में यदि लक्षण को भी ध्यान में रखा जाए तो यह काम कठिन नहीं होगा और रचना में निखार आ जाएगा । दोहा भी किसी बात को कहने का सशक्त माध्यम है । बिहारी तो महज सात सो दोहों से ही अमर हो गए । दोहे का आसान सा लक्षण है- चार चरणों में क्रमशः, १३, ११, १३, ११ मात्राएँ होती हैं । पहले और तीसरे चरण के अन्त के दो अक्षर क्रमशः गुरु और लघु होने चाहिए, दूसरे और चौथे चरण का अन्त गुरु से नहीं होना चाहिए । बस, बाकी कोई बन्धन नहीं है ।

सन्तोष जी, आपकी रचना पर इतनी बड़ी टिप्पणी देने से आपको यह न लगे कि मैं आपको कम जानकार मान रहा हूँ । मैने प्रसंगवश यह चर्चा इसलिए कर दी कि अन्य कवि भी यदि दोहे में रचना करना चाहें तो लक्षण पर ध्यान दिला दिया जाए । वैसे पहले ही कह दिया गया है कि यह बड़ा आसान छन्द है और प्रसिद्ध भी । पर रचना केवल छन्द से नहीं भाव से सुन्दर बनती है ।

वैसे तो मैं शायद यहाँ इतना कहने में प्रवृत्त नहीं होता ग़ज़ल की चौथी कक्षा में मात्रा गिनने के सम्बन्ध में मेरी टिप्पणी पर विश्व दीपक ‘तन्हा’ जी की सकारात्मक प्रतिक्रिया से मैं प्रोत्साहित हुआ ।

दिवाकर मिश्र का कहना है कि -

सौमित्र जी, आपने भी बिजली के कई रूपों को एक पास प्रस्तुत किया है । कविता अच्छी है । बधाई ।

इसके बाद मेरी, दिवाकर मिश्र की कविता आती है । इस पर मैं कुछ नहीं कहना चाहता हूँ । अन्य पाठक ही इसपर कुछ कहें ।

विवेक जी आपकी कविता भी भाव, लय और शब्दों की दृष्टि से तीनों ही तरह अच्छी है । लय का चयन तो अच्छा है परन्तु कहीं कहीं कुछ शब्द अधिक आ जाते हैं हो लय में बाधा डालते हैं । बिजली के कई पक्षों को भी लिया है । बधाई ।

प्रो. श्रीवास्तव जी, आपकी कविता सचमुच वह है जिसमें मैं केवल प्रशंसा कर सकता हूँ । शब्द चयन, छन्द और उसका निर्वाह, भाव, सभी अच्छे हैं । बधाई ।

शैलेष जी, आपने बड़ी ही सरलता से बिजली के बारे में जो कहना था अच्छे प्रकार से कह दिया । आपकी कविता में ‘ध्योतक’ शब्द का प्रयोग ठीक नहीं है । वैसे यह गलती बोलने और लिखने में दोनों ही तरह लोग करते हैं । वास्तव में शब्द द्योतक या द्‍योतक होता है, ध्योतक नहीं ।

सीमा जी, आपकी कविता बड़े अच्छे ढंग से कही गई है और मुझे लगता है कि इसमें कहने से ज्यादा महसूस करने की चीज है । बधाई ।

महक जी, आपने कविता आलंकारिक रूप से शुरू की और बीच में सत्य, अहिंसा, अत्याचार का विनाश आदि भी समेट लिया, कहीं भी विषयान्तर नहीं लगा । बातों को कुशलतापूर्वक जोड़ने का काम आपने बखूबी किया है । बधाई ।

शोभा जी, आपने बिजली से बेहाल का दर्द और नौकरशाही (सरकारी नौकर जिसमें अपने को शाह समझते हैं) दोनों को अच्छी तरह व्यक्त किया है । बधाई ।

विश्वदीपक जी, आपकी कविता बिजली के कई पक्षों को समेटते हुए बड़ी बातें कह जाती है । बिजली की चोरी और उसकी कमी की समस्या के सही कारण को आपने निशाना बनाया है । यद्यपि कई दूसरे भी कारण हैं पर सबसे बड़ा कारण और समस्या यही है । बिजली के माध्यम से दूसरों के लिए मर मिटने वालों के त्याग को भी आपने महत्त दिया है । इसके लिए बधाई और आपके चित्रों के लिए । चित्रों में जो खास है वह उनके नीचे लिखी पंक्तियाँ हैं । वैसे दृश्य का चयन भी अच्छा है । पुनः बधाई ।

दिवाकर मिश्र का कहना है कि -

विवेक जी क्षमा कीजिए । याद न रहने के कारण आपके भेजे हुए चित्रों को तन्हाँ कवि जी का समझ लिया । आपको इन चित्रों के लिए पुनः बधाई ।

Anonymous का कहना है कि -

'बिजली' विषय पर इतने सारे भिन्न विचार और सुंदर कविता तथा चित्र !

सभी कविमित्रोंको ह्रदय से बधाई देते हुए मेरी निम्न रचना को आप सभी गुणी जनोंके नजर करता हूँ, कृपया स्वीकार करें , धन्यवाद !
******
एक दिन सुबह तडके गया अपनी प्रतिभासे मिलने
कहा उसे,'बिजली' पर मुझे कुछ शब्द हैं लिखने

प्रतिभाने कहा, " साथ कुछ भाव-विचारभी लाये हो,
या कविता लिखने मेरे पास खाली हाथही आये हो? "
आगे उसने स्पष्ट किया ,"हूं तुम्हारी चेतनाका निर्माण ,
जानती हूं केवल चलन,है काव्य-परंपरा इसका प्रमाण
मेरी दिशा-गती भाव और विचारही देते हैं
जो भीतर हृदय व मस्तिष्कमें पनपते हैं

मैंने कहा " लेकिन इस निर्जीव वस्तुके विषयमें
भला कौनसे प्रबल भाव हो सकते हैं मेरे हृदयमें !"

सुझाया फिर उसने के अपने दिमागसे जरा सोचूं,
जहां मेरी बुद्धीका वास है,तनिक वहां जा कर पूंछूं

परंतु बुद्धीने कहा, " मै रखती हूं लेखा-जोखा
निरंतर अनुभूती और विचारसे इस जीवनका ,
पंच इंद्रियोंको मिली अनुभूतियां और
उनपर तुम्हारी सोचका व्यापार,
इनसेही चलता मेरा कारोबार !

जिस विषयका तुमने अपने आपमें
ना अनुभव किया ना किया कुछ विचार,
मैं विवश हूं, पर तुम्हेंही तलाशना होगा
और तराशना होगा उससे अपना सरोकार!"

फिर दिलो-दिमागसे हुआ बेजार,प्रतिभासेभी जब गया हार,
लौटा मैं हताश,अनलिखी निराधार कविताकी थामे पतवार
कागज-कलमके सिवा मेरे पास कुछ ना था,
प्रतिभाका सुनाया कडवा सही,पर सचही था

अब सोचा है सीधे जा बिजलीसेही मिलूंगा,
और उसको गर थोडा-बहुतभी समझ पाऊंगा,
तो क्या पता,शायद कुछ लिखभी जाऊंगा !
*****************************

Nikhil का कहना है कि -

'महाभारत
की कथा में अचानक
सभी भक्तों की
खुशियाँ चली गई
चीर हरण के
दृश्य से पहले
बिजली चली गई"

विनय जोशी जी की यह क्षणिका काव्य-पल्लवन के इस अंक की अनमोल पंक्तियाँ हैं....आपको बधाई...

"हर तरफ उल्हास सा है गुमशुदा है तीरगी ...!!"

गिरीश बिल्लोरे "मुकुल जी की कविता भी अच्छी है, लय बहुत ही बढ़िया है...

विश्व दीपक तनहा जी की शुरूआती पंक्तियाँ अच्छी लगीं, सीमा गुप्ता जी का भी प्रयास अच्छा है, बस थोड़े कसाव की और ज़रूरत है....
काव्य-पल्लवन का यह अंक अच्छा है..विषय ऐसा है कि लिखने के लिए सोचना पड़ता है... इसीलिए, सभी प्रतिभागियों को विशेष धन्यवाद...
निखिल आनंद गिरि

Vivek Ranjan Shrivastava का कहना है कि -

एक पत्र बिना लिफाफे का सब के नाम

आत्मीय अक्षर मित्रों,
जय हिन्दी , जय नागरी .

काव्य पल्लवन हेतु बिजली विषय कुछ अटपटा था, पर था सामयिक.अंक प्रकाशित हो चुका है. जोरचनायें आई हैं विचारोत्तेजक हैं . आयोजकों , प्रायोजकों , सहभागियों , समीक्षकों, पाठकों सभी को बधाई.
आज जब कविता यथार्थवाद की ओर बढ़ रही है , मेरी आशा से कम ही प्रविष्टियाँ आईं . अस्तु.
एक क्षेत्रीय अखबार में भी किसी विषय पर रचना आमंत्रण होने पर भी १० , २० प्रविष्टियाँ तो आ ही जाती हैं , फिर वैश्विक पहुँच के साधन में यह अपेक्षाकृत न्यून भागीदारी हिन्दी रचनाकारों की कम्प्यूटर साक्षरता में कमी ही इंगित करती है .हम सभी ब्लागर मित्रों को अपने अपने स्तर अपने अपने क्षेत्रों में प्रिंट मीडिया सहित सभी संभव साधनो से ब्लागिंग का एवं काव्य पल्लवन जैसी प्रतियोगिताओं का व्यापक प्रचार व नये लोगों को जोड़ने हेतु सहयोग करना जरूरी दिखता है .
यथा संभव जल्दी ही विद्युत ब्रम्हेति पत्रिका में ये रचनायें प्रिंट स्वरूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न है .
पुनः सबके प्रति आभार
one more thing ,
i liked the comments too.
vivekranjan.vinamra@gmail.com

Anonymous का कहना है कि -

सम्मानित पंकजजी, महकजी, रंजुजी, आलोकजी, सारथिजी, दिवाकरजी और निखिल आनंदजी
उत्साहवर्धन हेतु आभार,| हिंद युग्म ने एक साथ इतने विद्वानों का सत्संग प्रदान किया इस हेतु मंच को नमन |

विनय के जोशी

बाल भवन जबलपुर का कहना है कि -

Shailesh Jamloki jee
abhivaadan

तीरगी अँधेरे को कहा जाता है

Alpana Verma का कहना है कि -

बिजली विषय पर सभी रचनाएँ अच्छी लगीं.
इस बार काफी विविधता देखी.
व्यंग्य,आक्रोश ,सोम्य तो रोचक सभी तरह की रचनाएँ पढने को मिलीं.
सभी कवियों को बधाई.
क्या बात है राघव जी आप की कविता रूपी प्रतिक्रिया बेहद सुंदर और अनूठी लगी .

mehek का कहना है कि -

sahilji,devakarji,aur baki sare mitron ko sarahana ke liye shukran.

Shailesh का कहना है कि -

-ममता जी
आपकी कविता बहुत बिजली से जुडे नए पक्ष को उजागर कर रही हो.. आप.. पूरी तरह से अपने कथ्य को कहने मै सफल हुई हो.. और कविता शीर्षक पर बहुत सही लगती है
-बस ये पंक्तिया थोडी लम्बी हो गयी है "धारा से गगन तक प्रभुत्व है जिसका,उस मानव को अशक्त बना कर चली गई!
प्रिय, तू है तो जीवन मे गति है, नही तो सब स्थिर है, जंगल है !"
जिन से कविता का सौन्दर्य बिगड़ रहा है
-शब्द चयन अच्छा है जैसे "अशक्त,प्रभुत्व"
सुन्दर कविता के लिए ..बधाई
सादर
शैलेश

Shailesh का कहना है कि -

डॉ. नंदन जी,
- आपकी कविता माधुर्य से भरपूर है..श्रिंगार रस से ओतप्रोत..
- प्रस्तुतीकरण और लम्बी के हिसाब से भी बहुत अच्छी लगी कविता.
-शब्द चयन अति सुन्दर..
-शीर्षक के अनुरूप कविता..
-विराम चिह्न प्रयोग कम
-भाव पक्ष लक्षणा से भरपूर
बधाई सुन्दर कविता के लिए
सादर
शैलेश

Shailesh का कहना है कि -

विनय के जोशी जी,
-आपने बिजली पर जो सबसे अच्छी पंक्तिया बन सकती थी .. वो लिखी है..
- छोटी और सटीक क्षणिकाएँ ..
मुझे ज्यादा शब्द तो नहीं मिल रहे ..पर .. दिल खुश कर दिया..
"केवल बिजली ही
काफी नही
रोशनी के लिए
अभय भी चाहिए
गुलेल और कंकर से"
और
"एकाकार
राजनीति
और
बाहुबली
मानों
करंट
और
बिजली"
का मतलब सही से नहीं समझा ...

बधाई
सादर
शैलेश

Shailesh का कहना है कि -

संतोष शर्मा जी,
-आप कविता से अच्छा सन्देश रहे है..कथ्य प्रभावशाली है
-बिहारी,कबीर के से दोहो की याद आ गयी पढ़ कर..
-कविता की शुरुवात कुछ अधूरी सी लगी.. "बिजली चोरी का अपराध राष्ट्र द्रोह कहलाय !!पता नहीं क्यों?
बधाई
सादर
शैलेश

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

टिप्पणी पर टिप्पणियाँ मिलने लगें तो क्या कहूँ
मन हुआ गद-गद, खुशी की अश्रुधार बन बहूँ
जोड़े रखना तार ताकि अब न हम तरसा करें
संचित करूँ,स्नेह-जल,बस आप यूँ बरसा करें

- बहुत बहुत आभार दोस्तो
आप लोग कन्धे पर बिठा लेते हो.. मैं भी मना नहीं करुगा जी.. आखिर आप जैसा आधार मिलेगा.. तो मेरी तो बल्ले बल्ले ...

गीता पंडित का कहना है कि -

आलोक शंकर जी,
रंजू जी,

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।

गीता पंडित का कहना है कि -

साहिल जी,

मैने पंत जी की "ग्राम्या" नही पढी है दुर्भाग्य-वश..अब अवश्य पढुंगी....|
आपको मेरा गीत अच्छा लगा...आभारी हूं और चाहुंगी.... आगे भी मार्ग - दर्शन करें....|

स-स्नेह
गीता पंडित

गीता पंडित का कहना है कि -

दिवाकर जी !

ये विषय मुझे अजीब सा लगा था......,
मैने कविता लिखने का विचार भी नहीं किया था...लेकिन.... अचानक कुछ लिखना चाहती थी इसलियें इस विषय को लिया...लिखना शुरू किया.... और जो भी लिखा गया...दस पंद्रह मिनिट में..... मैने "पल्लवन" को भेज दिया..

गीत आपको पसन्द आया..

आभार ।

भविष्य में भी मार्ग-दर्शन कीजियेगा ।
" व्यथा - वेदना, विरह " मेरे प्रिय विषय हैं...

स-स्नेह
गीता पंडित

गीता पंडित का कहना है कि -

शैलेष जमलोकी जी !

विषय बहुत अलग था..काव्यात्मक तो
बिल्कुल नहीं था...फिर भी..........
जो भी लिखा गया...आपके सामने है....

गीत आपको पसन्द आया..

आभारी हूं ।

भविष्य में भी मार्ग-दर्शन की अभिलाषी हूं ।

स-स्नेह
गीता पंडित

गीता पंडित का कहना है कि -

शैलेष जमलोकी जी !

विषय बहुत अलग था..काव्यात्मक तो
बिल्कुल नहीं था...फिर भी..........
जो भी लिखा गया...आपके सामने है....

गीत आपको पसन्द आया..

आभारी हूं ।

भविष्य में भी मार्ग-दर्शन की अभिलाषी हूं ।

स-स्नेह
गीता पंडित

गीता पंडित का कहना है कि -

सभी कवि-मित्रों को बधाई...
सभी ने बहुत अच्छा लिखा है...

सारी पल्लवन टीम को भी हार्दिक बधाई ।

सभी अन्य पाठकों का भी अभिनंदन ।

एक बात जो मैं कहे बिना नहीं रह पा रही हूं...क्या... " हिंद युग्म " के कवि-मित्र.. "पल्लवन" नहीं पढते हैं...?????

स-स्नेह
गीता पंडित

विश्व दीपक का कहना है कि -

गीता जी,
मैं बाकी कवि-मित्रों के बारे में तो कुछ नहीं कह सकता, लेकिन मैं जरूर पढता हूँ। रही बात टिप्पणी कि तो मैं डर जाता हूँ कि किनकी प्रशंसा करूँ किनकी नहीं। इसलिए लिख नहीं पाता।

इस बार के काव्य-पल्लवन की खासियत यह है कि सबकी रचनाएँ एक से बढकर एक है और सबने अलग-अलग विषयों पर लिखा है। किसी एक का नाम लेकर मैं मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता ;)

जिन मित्रों ने मेरी रचना पसंद की है, उनका बहुत-बहुत धन्यवाद। पहली मर्त्तबा ऎसे किसी विषय पर लिखने का मौका मिला था, जो सीधे तौर पर हमारी जिंदगी से जुड़ा है, नहीं तो अपन कवि लोग तो प्यार,मोहब्बत, जोश-औ-खरोश पर हीं लिखते रहते हैं।उस पर से विवेक रंजन जी ने विषय देते समय लिखा था कि अगर बिजली की चोरी पर लिखा जाए तो क्या बात हो! इस तरह विषय बहुत हीं पेचीदा हो गया था। इसलिए इस पर लिखने से मैं बहुत हीं डर रहा था। चलिए,डरकर लिखी गई मेरी रचना लोगों को पसंद तो आई।

काव्य-पल्लवन में भाग लेने वाले सभी कवि एवं कवयित्री मित्रों को बहुत-बहुत बधाई।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

ग़ीता जी,

मैं भी काव्य-पल्लवन पढ़ता हूँ..
वैसे सच बात तो ये है की हिन्द-युग्म का लगभग हर सदस्य काव्य पल्लवन पढ़ता है और इस का पूरे माह बेसबरी से इंतजार भी करता है..

Mohinder56 का कहना है कि -

गीता जी,

मुझे तो दो तीन बार पढना पडता है.. कभी कभी रोमन को हिन्दी में टाईप भी करना पडता है और कोई गलती सुधार की आवशयकता हो तो वो भी करनी पडती है :)

Unknown का कहना है कि -

पंकज जी आप की कविता बहुत achi है बचपन से लेकर बुढापे तक बिजली हमारे
जीवन
का हिस्सा बन जाती है साथ ही उसके अनेक रूप बताएं हैं जो बहुत ही रोचक हैं
धन्यवाद ,
भारती.

Unknown का कहना है कि -

पंकज जी आप की कविता बहुत achi है बचपन से लेकर बुढापे तक बिजली हमारे
जीवन
का हिस्सा बन जाती है साथ ही उसके अनेक रूप बताएं हैं जो बहुत ही रोचक हैं
धन्यवाद ,
भारती.

praveen pandit का कहना है कि -

साहसिक कविमित्रों !
बिजली को छेड़ दिया और चैन से बैठे रहे।
विषय इतना व्यापक हो सकता है-कमाल है! मिनिमम क्रोस-सेक्शन से गुज़र जाने वाली बिजली का व्यापक रूप दिखाई दिया।
अच्छा और अनोखा लगा।
बिजली के अन्यान्य रूपों ने भी मोहित किया।
गीता पंडित की अंतर्मन की दामिनी अंतरंग , मोहक लगी ।निश्चय ही अत्यंत भावपूर्ण।लिखती रहिये।
तुम्हारी यादों की बिजली कौंध जाए जब कभी भी
हर तरफ़ उत्साह सा है.गुमशुदा है तीरगी !
गिरीश जी का उत्साह अच्छा लगा।
डा. नंदन की बिजली विचारपूर्ण थी।
महक की रचना बेहद सराहनीय।
विश्व दीपक जी को पढ़ना हमेशा की तरह सुखद।यथार्थ को बिजली के बाने मे देखना और अच्छा लगा।
वस्तुतः, बिजली जैसे विषय पर क़लम चलाने के लिये सभी कविमित्रों का प्रयास बहुत सराहनीय।
बधाई।
प्रवीण पंडितक्रोस् अ-सेक्शन से गुज़र जाने वाली बिजली का व्यापक रूप दिखाई दिया।
अच्छा और अनोखा लगा।
बिजली के अन्यान्य रूपों ने भी मोहित किया।
गीता पंडित की अंतर्मन की दामिनी अंतरंग , मोहक लगी ।निश्चय ही अत्यंत भावपूर्ण।लिखती रहिये।
तुम्हारी यादों की बिजली कौंध जाए जब कभी भी
हर तरफ़ उत्साह सा है.गुमशुदा है तीरगी !
गिरीश जी का उत्साह अच्छा लगा।
डा. नंदन की बिजली विचारपूर्ण थी।
महक की रचना बेहद सराहनीय।
विश्व दीपक जी को पढ़ना हमेशा की तरह सुखद।यथार्थ को बिजली के बाने मे देखना और अच्छा लगा।
वस्तुतः, बिजली जैसे विषय पर क़लम चलाने के लिये सभी कविमित्रों का प्रयास बहुत सराहनीय।
बधाई।
प्रवीण पंडित

vinodbissa का कहना है कि -

आदरणीय गीता जी,
''उमड़-घुमड़ घनघोर - घटाएँ,
जब भी नील-गगन में छायें॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰''
बहुत ही शानदार गीत लिखा है आपने ॰॰॰॰॰॰॰॰॰मनमोहक, पढ़ते ही राग स्वयं ही उत्पन्न होने लगती है॰॰॰॰॰॰ पूरा गीत मीटर में है॰॰॰॰॰॰॰॰
पिया के इंतजार को बखूबी प्रस्तुत किया है आपने ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ शुभकामनायें॰॰॰॰॰॰

vinodbissa का कहना है कि -

आदरणीय गीता जी,
''उमड़-घुमड़ घनघोर - घटाएँ,
जब भी नील-गगन में छायें॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰''
बहुत ही शानदार गीत लिखा है आपने ॰॰॰॰॰॰॰॰॰मनमोहक, पढ़ते ही राग स्वयं ही उत्पन्न होने लगती है॰॰॰॰॰॰ पूरा गीत मीटर में है॰॰॰॰॰॰॰॰
पिया के इंतजार को बखूबी प्रस्तुत किया है आपने ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ शुभकामनायें॰॰॰॰॰॰

Unknown का कहना है कि -

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Robert Howard का कहना है कि -

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