तुम्हारे पास अवसर है
खींच लो पकड़ कर पैर मेरे
मुँह के बल गिरूंगा, हद से हद और क्या होगा?
तुम मत चूको इस अवसर को
कि तुम्हें समझने का
यह अवसर नहीं जाने देना चाहता
कि तुम्हारी अप्रत्यक्ष मुस्कुराहट
और सारी शुभचिंताओं के अर्थ निकाल लेना चाहता हूँ
लेकिन धीरे-धीरे नीला समंदर सोख कर
जब आसमान काला हो जायेगा
तब क्या रोक सकोगे विप्लव को?
अवसर मत चूको
मुझे अवसर ही मत दो
या कि सावधान हो जाओ...
मैं कंकड़-कंकड़ कर
मटके से पानी पी कर दिखला दूँगा
मैं दिखला दूँगा कदम चाँद पर अपने रख कर
लाख निशाने पर होगी मेरी नन्ही सी दुनिया
आसमान की फुनगी पर
मैं भी टांगूँगा अपना घर..
*** राजीव रंजन प्रसाद
२४.०२.१९९८
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
राजीव जी ,
एक अच्छी कविता .
किसी भी परिस्थिति में असंभव को सम्भव कर लेने की आतुरता को सफल चित्रित किया है.
मगर मैं कविता के साथ दिए गए चित्र का कविता के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रही हूँ.
राजीव जी,
अवसर वादियों पर गहरा कुठाराघात किया है आपने अपनी इस कविता के माध्यम से.
लेकिन धीरे-धीरे नीला समंदर सोख कर
जब आसमान काला हो जायेगा
तब क्या रोक सकोगे विप्लव को?
गहरा भाव लिये हुये हैं यह पक्तियां
और अन्तिम दो पंक्तियां भी सटीक हैं
अल्पना जी,
नीड के चित्र को मैने कविता के अपनी अंतिम पंक्तोयों से जोडा है:-
लाख निशाने पर होगी मेरी नन्ही सी दुनिया
आसमान की फुनगी पर
मैं भी टांगूँगा अपना घर..
*** राजीव रंजन प्रसाद
आपकी कविता आज कई बार पढी पर इसके अर्थ को समझने में कही कही उलझ गई ..आपके बताये अर्थ से भी कुछ उलझन नही
सुलझी मेरी .:)..तो मैंने मोहिंदर जी से इसका अर्थ समझने की कोशिश की उन्होंने जो अर्थ बताया वह बहुत ही खूबसूरत लगा
""राजीव जी की कविता का अर्थ है कि.... वह सहानुभूति जताने वालों का असली रूप देखने को आतुर हैं... उन्हे लगता है कि लोग जैसा व्यवहार करते है... असल में वो वैसे होते नहीं
जब आसमान पर पूरे समुन्दर के वादल होंगे तो इस धरा का क्या होगा...
और आपकी यह कविता पूरी तरह से समझ पायी !!!
अब लगता है राजीव जी की इस कविता के भाव पक्ष पर कोई विवाद न हो ... फ़िर भी मैं इस उत्कृष्ट रचना के भाव पक्ष पर टिपण्णी अवश्य करना चाहता हूँ .
इस रचना के मध्यम से कवि ने अपनी जीवटता और जुझारूपन को सन्मुख रखते हुए, प्रस्तुत किया है कि वह शोषण व्यवस्था की कितनी भी विपरीत स्थितियों और कुटिल चालों के वावजूद अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सक्षम है. मानवीय जीवटता का यही भाव मुझे सबसे अधिक प्रिय लगता है बहुत बहुत शुभकामना
धन्यवाद राजीव जी,
अब चित्र भी समझ आ गया..एक घने खूंखार जंगल रूपी संसार में कवि निडर रह कर अपना लक्ष्य पाना चाह रहा है :)
लाख निशाने पर होगी मेरी नन्ही सी दुनिया
आसमान की फुनगी पर
मैं भी टांगूँगा अपना घर..
कविता कहना कोई आपसे सीखे
तुम्हारे पास अवसर है
खींच लो पकड़ कर पैर मेरे
मुँह के बल गिरूंगा, हद से हद और क्या होगा?
तुम मत चूको इस अवसर को
कि तुम्हें समझने का
यह अवसर नहीं जाने देना चाहता
अवसर वादी दुनिया का सही चित्र खिंचा है . बधाई
राजीव जी,बहुत ही अच्छी कविता,एक पंक्ति यद् आ रही है आपके विषय से मेल खाती हुई-
हिम्मते मर्दम, मददे खुदा
बहुत ही उत्साहवर्द्धक कविता.
बधाई हो
अलोक सिंह "साहिल"
राजीव जी बहुत ही उत्कृष्ट भाव, आशा और विश्वास का संचार जागाती रचना
अंतिम पंक्तियों नें दिल में बसेरा कर लिया, वाह राजीव जी ।
राजीव जी
मैंने आपकी कविता बहुत बार पढी, लगभग १५ बार
उसके बाद मुझे कुछ कुछ समझ आया
१) आपकी किवता बेशक बहुत अछ्चे भाव लिए हो,.. पर जब तक आम पाठक के समझ मै ना आये तब तक
उस कविता का कोई मोल नहीं है..
क्यों की हम कविता इस लिए लिखते है की हम सीधे शब्दों मै अपने बात पाठको तक कह सकी और उसी रूप मै कह सकी जिस रूप मै हमने लिखा है...
२) आपकी कविता बहुत अछे विषय पर बनी है .. और अच्छा सन्देश देती है..
३) क्या अवसर शब्द का मतलब हर जगह पर अलग अलग है क्या?
जैसे
कविता लगता है कोई कह रहा है,,, पर कौन मुझे समझ नहीं आया :(
इस मै "मै " प्रयुक्त हुआ है.. पर किसके लिए पता नहीं
शायद मेरे स्तर से उपर की बात कही गयी है...
सादर
शैलेश
शैलेश जमलोकी जी,
बहुत आभार कि आपने यह कविता बहुत ध्यान से और अनेकों बार पढी। मैं संप्रेषणीयता में अपनी कमी को मानता हूँ। इसके बिम्ब जटिल हो गये हैं और यह भी सच है कि भ्रामक भी हैं।
मैं से यदि पाठक स्वयं को न जोडे तो यह रचना व्यर्थ हो जायेगी। जिस आशावादिता की मैने बात की है उसमें मेरा सामाजिक सरोकार भी है और व्यक्तिगत कारणों से आहत हो कर फिर स्वयं को समेटने जैसे मनोभाव भी हैं किंतु कविता का सही अर्थ वही होता है जो पाठक के भीतर पहुँचे...पुन: आभार के साथ।
*** राजीव रंजन प्रसाद
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
मैं कंकड़-कंकड़ कर
मटके से पानी पी कर दिखला दूँगा
मैं दिखला दूँगा कदम चाँद पर अपने रख कर
लाख निशाने पर होगी मेरी नन्ही सी दुनिया
आसमान की फुनगी पर
मैं भी टांगूँगा अपना घर..
Rajeevji aap to yugm ke betaaj baadshaah hain...aapke baare me kuch bhi likhna suraj ko diya dikhane jaisa hai :)
राजीव जी!
ये लाईनें बहुत ही प्रभावशाली हैं,
जोश भरनेवाली....
सुंदर रचना
राजीव जी,
आपकी ये पंक्तियाँ मुझमें उत्साह व विश्वास भर सकी हैं, इसलिए आप सफल हुए। बधाई।
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