यादों की डगर पर जब हो कोई आशियाना
लिख के कोरे कागज पर ख़त उनका दे जाना
शब के सन्नाटों में जब कोई दर्द छेड़े तराना
भीगी पलकों के वह आंसू मुझे दे जाना
चुपके से लिख लेना लकीरों में नाम मेरा
शबे तन्हाई में फ़िर आवाज़ दे के बुलाना
लिखा है जिस गजल को इंतज़ार में मेरी
बस वही गजल आ के मुझे सुना जाना
मचल रही हैं कई आरजू कई ख्वाशिएँ दिल में
दिल की बढती तड़प को एक सकून दे जाना
कभी यूं ही कर देना हैरान मुझे अपने आने से
कभी बहती हवा की खुशुबू में तुम भी आ जाना !!
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23 कविताप्रेमियों का कहना है :
शब के सन्नाटों में जब कोई दर्द छेड़े तराना
भीगी पलकों के वह आंसू मुझे दे जाना
कभी यूं ही कर देना हैरान मुझे अपने आने से
कभी बहती हवा की खुशुबू में तुम भी आ जाना !!
गुदगुदाने गुनगुनाने वाली रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
ye kabita lagta hai shaam ho lika hoga jab godhuli ka samay hoga gahrai hai kabita main aur kuch aasaayain bhi .
ye hi likte rahiyega .......
entjaaar nai kavita ka .........
ur subh chintak
रंजना जी,
रचना के भाव पक्ष तो गहरे हैं परन्तु शिल्प की कमी है..ईंट के उपर ईंट वाली बात नहीं बनी... साथ ही इस को और विस्तार दिया जा सकता था...
आखिरी दो लाईनें सटीक लगीं
कभी यूं ही कर देना हैरान मुझे अपने आने से
कभी बहती हवा की खुशुबू में तुम भी आ जाना !!
शब के सन्नाटों में जब कोई दर्द छेड़े तराना
भीगी पलकों के वह आंसू मुझे दे जाना
रंजू जी
वाह...बहुत दर्द है आप की इन पंक्तियों में. बधाई.
यूँ ही लिखती रहें.
नीरज
"तुम भी आना" कह के ...
"तुमने पुकारा और हम चले आए...
जान हथेली पे ले आए रे"......
जान हथेली पे रखने जैसी कोई सिचुएशन तो नहीं है यहाँ...बस ऐसे ही लिख दी
कविता पसन्द आई आपकी...
यूँ ही लिखती रहे और बाकि सभी से कुछ ना कुछ सीखती रहें..अपने को तो इतनी समझ नहीं है
ए लो कल्लो बात, किधर आना है कुछ अता-पता तो लिक्खा होता जी। ;)
सुंदर लिखा है।
जब कोई ऐसे बुलाए तो कौन ना आए :)
शुभकामनाएँ
चुपके से लिख लेना लकीरों में नाम मेरा
शबे तन्हाई में फ़िर आवाज़ दे के बुलाना
लिखा है जिस गजल को इंतज़ार में मेरी
बस वही गजल आ के मुझे सुना जाना
"bhut acchee dard or umeed bhree kavita hai, muje bhut pasand aae. all the best"
Regards
रंजना जी !
चुपके से लिख लेना लकीरों में नाम मेरा
शबे तन्हाई में फ़िर आवाज़ दे के बुलाना
लिखा है जिस गजल को इंतज़ार में मेरी
बस वही गजल आ के मुझे सुना जाना
कभी यूं ही कर देना हैरान मुझे अपने आने से
कभी बहती हवा की खुशुबू में तुम भी आ जाना
बड़ी गहराई से लिखते हैं आप काव्य और शिल्प की बात मैं यहाँ नहीं करूंगा पर भाव पक्ष .... अनुपम रहता है आपकी गजलों में
शब के सन्नाटों में जब कोई दर्द छेड़े तराना
भीगी पलकों के वह आंसू मुझे दे जाना
कभी यूं ही कर देना हैरान मुझे अपने आने से
कभी बहती हवा की खुशुबू में तुम भी आ जाना !!
रंजना जी बहुत खूबसूरती से लिखा है।
"मचल रही हैं कई आरजू कई ख्वाशिएँ दिल में
दिल की बढती तड़प को एक सकून दे जाना"
वाह! इन दो लाइनों ने तो सारी रातों की नींद उडा दी। बहुत अच्छी रचना है। मगर रंजू जी, "सुकून" देने वाली/वाला क्या वाकई इस धरती पर मिलते हैं,जरा बताईयेगा…?
रंजना जी
काफी भाव भरी रचना है.
मचल रही हैं कई आरजू कई ख्वाशिएँ दिल में
दिल की बढती तड़प को एक सकून दे जाना
कभी यूं ही कर देना हैरान मुझे अपने आने से
कभी बहती हवा की खुशुबू में तुम भी आ जाना !!
andaaz wahi hai par khushboo nayi hai , har baar aisa kaise kar paati hain aap ?
रंजना जी बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है
कभी यूं ही कर देना हैरान मुझे अपने आने से
कभी बहती हवा की खुशुबू में तुम भी आ जाना !!
बहुत ही सुन्दर ख्याल है
बहुत खूब|
विचार बहुत अच्छे है |
सुंदर
अवनीश तिवारी
मचल रही हैं कई आरजू कई ख्वाशिएँ दिल में
दिल की बढती तड़प को एक सकून दे जाना
कभी यूं ही कर देना हैरान मुझे अपने आने से
कभी बहती हवा की खुशुबू में तुम भी आ जाना !!
वाह रंजना जी ,बहुत खूब बात की है आप ने आनंद आ गया पढ़ कर
वाह
भाव बहुत ही गहरे हैं
अन्दर दिल तक ठहरे हैं
और तुम्हें क्या लाइन लिखूँ
भावों का टर्बाइन लिखूँ
- जय हिन्द जय हिन्दी
चुपके से लिख लेना लकीरों में नाम मेरा
शबे तन्हाई में फ़िर आवाज़ दे के बुलाना
लिखा है जिस गजल को इंतज़ार में मेरी
बस वही गजल आ के मुझे सुना जाना
रंजू जी आनंद आ गया
बहुत बहुत बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
रंजू जी,
भाव बहुत हैं आप की इस रचना में-
''लिखा है जिस गजल को इंतज़ार में मेरी
बस वही गजल आ के मुझे सुना जाना''
क्या बात है! : ) बहुत अच्छे!
सीधी सादी सी लेकिन भावों से लदी हुई --अच्छी रचना है-चित्र रचना के मिजाज से एकदम मेल खाता है.
कभी यूं ही कर देना हैरान मुझे अपने आने से
कभी बहती हवा की खुशुबू में तुम भी आ जाना
रंजना जी, सशक्त प्रस्तुति!पढ़कर आनंदित हो उठता है मन।
यादों की डगर पर जब हो कोई आशियाना
लिख के कोरे कागज पर ख़त उनका दे जाना
शब के सन्नाटों में जब कोई दर्द छेड़े तराना
भीगी पलकों के वह आंसू मुझे दे जानामचल रही हैं कई आरजू कई ख्वाशिएँ दिल में
दिल की बढती तड़प को एक सकून दे जाना
कभी यूं ही कर देना हैरान मुझे अपने आने से
कभी बहती हवा की खुशुबू में तुम भी आ जाना !!
बहुत सुंदर रचना रंजू जी ! बधाई !
इस बार की रूमानी कविता बहुत ही तपा-तपाकर लिखी है। बधाई।
आप समकालीन प्रेम कवियों को भी पढ़ें, क्योंकि वो काफी आगे निकल गये हैं। सभी ने विलियम वर्सवर्थ को ज़रूर पढ़ा होगा। उनकी प्रेम कविताएँ भी अप्रत्यक्ष रूप से समाज, देश की बात करती थीं। हमें तो अब तक बहुत आगे निकल जाना चाहिए था।
अच्छी रूमानी कविता पर .....................कुछ अधूरी सी लगी .....................कुछ अन्तरा और होनी चाहिए
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