तुम मुझे भूल ही चुके हो तो फिर
क्युँ मेरी श्वास श्वास अविरल है ,
क्युँ तेरी बाट जोहता सा हुआ
मेरे जीवन का सार व्याकुल है !
किस लिये आज़ तक निरन्तर है
मेरे सीने में धडकनों का क्रम
किस लिये पीर से नहायी हुई
मेरे नयनों की नींद बोझिल है !
किस लिये विरह के हर इक पल को
गूँथ कर गीत मैं बनाता हूँ
तुम नहीं आओगी तो किस भ्रम में
मैं तुम्हे आज़ तक बुलाता हूँ !!
तुम थे तब मैने पाये थे
कुछ दिवस हास परिहासों के
तुम थे तब "मन" ने देखे थे
मंजर कुसुमित मधुमासों के
तुम गये , साथ ले गये मेरे
मधुमय स्वप्नों का मूर्तिरूप ,
तुम बिन मेरे उद्धगार हुये
संक्षिप्त प्रश्ठ इतिहासों के
मैं खुद ही उन अवशेषों को
संचित करता हूँ , मिटाता हूँ ,
तुम नहीं आओगी तो किस भ्रम में
मैं तुम्हे आज़ तक बुलाता हूँ !!
तुम रखो जहाँ निज कुसुम पाँव ,
स्थल वह खुशहाली गाये ,
जिस ओर द्रष्टि का कोण फिरे
वह वस्तु तुम्हारी हो जाये ,
मैं गीत,गज़ल, के रूपों में
बस नेह तुम्हारा गाता रहूँ ,
हर पँक्ति प्रणय की श्रद्धा से
बस तुम्हे समर्पित हो जाये ,
भक्त,भगवान,की प्रथा की तरह
अपने सम्बन्ध मैं निभाता हूँ
तुम नहीं आओगी , पता है मुझे
फिर भी मैं बस तुम्हे बुलाता हूँ !
फिर भी मैं बस तुम्हे बुलाता हूँ !!
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
विपिन जी,
मिलिन के दिनों की यादों, स्वप्नों और विछोड व पुन: मिलन की कामना का सुन्दर चित्रण किया है आपने... बधाई
बाप रे बाप! क्या शब्द हैं! लगता है शब्दकोश पढ रहा हूँ आपको नहीं लगता कि अविरल की जगह विरल होना चाहिये था कुछ बातें बडी अजीब लगीं जैसे
1 "बाट जोहता सा हुआ" में "सा"
2 "मेरे नयनों की नींद बोझिल है" में "नयनों की"
3 "जिस ओर द्रष्टि का कोण फिरे" में "कोण" और यदि कोण ही हो तो
"वह वस्तु तुम्हारी हो जाये " में वस्तु की जगह क्या "दिशा" बेहतर शब्द नहीं होता.
वैसे यह सिर्फ मेरे विचार है आप इनसे सहमत भी हो सकते हैं असहमत भी.
आपके द्वारा भविष्य में लिखी जाने वाली कविताओं के लिये शुभकामनाएँ.
विपिन जी,
आपकी शैली प्रशंसनीय है, विषेशकर आपकी रचना पढते हुए उसका प्रवाह...भावों में वेदना और गहरायी दोनों ही उभर कर आयी है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
मैं गीत,गज़ल, के रूपों में
बस नेह तुम्हारा गाता रहूँ ,
हर पँक्ति प्रणय की श्रद्धा से
बस तुम्हे समर्पित हो जाये ,
भक्त,भगवान,की प्रथा की तरह
अपने सम्बन्ध मैं निभाता हूँ
तुम नहीं आओगी , पता है मुझे
फिर भी मैं बस तुम्हे बुलाता हूँ !
"क्या कहू मन तुमने एक रिश्ते को इतनी खूबसूरती से बयान किया है उसका एक एक शब्द दिलको छु गया है"
all the best for future
with Regards
विपिन जी !
पढ़ा ...... अवनीश जी की टिपण्णी पर ध्यान दीजियेगा सस्नेह शुभकामना
तुम मुझे भूल ही चुके हो तो फिर
क्युँ मेरी श्वास श्वास अविरल है ,
क्युँ तेरी बाट जोहता सा हुआ
मेरे जीवन का सार व्याकुल है !
किस लिये आज़ तक निरन्तर है
मेरे सीने में धडकनों का क्रम
किस लिये पीर से नहायी हुई
मेरे नयनों की नींद बोझिल है !
किस लिये विरह के हर इक पल को
गूँथ कर गीत मैं बनाता हूँ
तुम नहीं आओगी तो किस भ्रम में
मैं तुम्हे आज़ तक बुलाता हूँ !!
विपिन जी आपकी रचना बहुत पसन्द आयी। भावों में विछोह और व्याकुलता है साथ ही प्रवाह भी है। कुल मिला कर दिनोंदिन प्रभावी हो रहा है आपका लेखन।
विपिन जी
दिल के भावों को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है।
किस लिये आज़ तक निरन्तर है
मेरे सीने में धडकनों का क्रम
किस लिये पीर से नहायी हुई
मेरे नयनों की नींद बोझिल है !
किस लिये विरह के हर इक पल को
अति सुन्दर
बहुत सुंदर .... विपिन जी
Presentation कुछ कम बना है |
शब्दों का चयन कुछ सुधार के लिए प्रेरित करते है |
वैसे बहुत सही कविता है | भाव अच्छी है |
सुंदर
अवनीश तिवारी
अपने सम्बन्ध मैं निभाता हूँ
तुम नहीं आओगी , पता है मुझे
फिर भी मैं बस तुम्हे बुलाता हूँ !
फिर भी मैं बस तुम्हे बुलाता हूँ !!
भाव अच्छे हैं ..अच्छी लगी यह पंक्तियाँ
विपिन जी,
बहुत ही सुन्दर कविता मेरे दृष्टिकोण में
भावपूर्ण शब्द-योजन बस कहीं कही शिल्प लीक से हट गया है...
तुम रखो जहाँ निज कुसुम पाँव ,
स्थल वह खुशहाली गाये ,
जिस ओर द्रष्टि का कोण फिरे
वह वस्तु तुम्हारी हो जाये ,
मैं गीत,गज़ल, के रूपों में
बस नेह तुम्हारा गाता रहूँ ,
हर पँक्ति प्रणय की श्रद्धा से
बस तुम्हे समर्पित हो जाये ,
भक्त,भगवान,की प्रथा की तरह
अपने सम्बन्ध मैं निभाता हूँ
उत्कृष्ट पंक्तियां है..
बधाई
विपिन जी श्रिंगार की प्रचुरता ने आपकी कविता को गरिष्ठ बना दिया.
एक बेहद प्यारी कविता.
बधाइयों समेत
आलोक सिंह "साहिल"
किस लिये आज़ तक निरन्तर है
मेरे सीने में धडकनों का क्रम
किस लिये पीर से नहायी हुई
मेरे नयनों की नींद बोझिल है !
vipin ji...apne apna naam man bilkul sahi rakaha hai.aap sach me man se likhte hain....khushi hai mujhe ki main aise shaks kojanti hu...jo itna behtreen likhta hai....yun hilikhte rahiye...aapko padna bahut acha lagta hai
विपिन जी,
बहुत सुन्दर!! आपको पढ़ते-पढ़ते मन किसी और लोक में खो जाता है। भूली-बिसरी यादें सर उठाने लगती हैं। बधाई।
बहुत ही सुंदर कविता है.
मन के भावों को बड़ी ही शालीनता और खूबसूरती से कविता में पेश किया गया है.
कितनी शिद्दत से कवि अपनी प्रिया को चाहता है यह इन पंक्तियों में साफ झलक रहा है :-
''भक्त,भगवान,की प्रथा की तरह
अपने सम्बन्ध मैं निभाता हूँ
तुम नहीं आओगी , पता है मुझे
फिर भी मैं बस तुम्हे बुलाता हूँ !''
शुभकामनाएँ.
तुम गये , साथ ले गये मेरे
मधुमय स्वप्नों का मूर्तिरूप ,
तुम बिन मेरे उद्धगार हुये
संक्षिप्त प्रश्ठ इतिहासों के
मैं खुद ही उन अवशेषों को
संचित करता हूँ , मिटाता हूँ ,
तुम नहीं आओगी तो किस भ्रम में
मैं तुम्हे आज़ तक बुलाता हूँ !!
संयोग -वियोग का सुंदर चित्रण ...
सुनीता
कवि का यह भी धर्म होता है कि वो शब्दों के सही अर्थ ही प्रयोग करे नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। साथ ही साथ वर्तनी का भी ख्याल रखे।
क्युँ- क्यूँ
अविरल- न बिखरी हुई, मतलब ठीक हालत में, मतलब हुआ कि जबकि नायिका नायक को भूल चुकी है फिर भी नायक की साँसे कैसे ठीक-ठाक हैं, जबकि यहाँ भाव उल्टा है।
बाट जोहना होता है- बाट जोहना कोई संज्ञा या विशेषण नहीं है कि उसके साथ सा लगाया जाय।
आज़- आज
धडकनों का क्रम (धड़कनों का क्रम) चूँकि पुल्लिंग है इसलिए 'पीर से नहाया हुआ' होगा
प्रश्ठ- प्रश्न
द्रष्टि- दृष्टि
दृष्टि का कोण हो सकता है ज़्यादा सुंदरता दे जाता हो लेकिन प्रयोग उचित नहीं है।
तुम्हे- तुम्हें
अभी भी आप सुधार कर सकते हैं। आप किसी भाषाविद् से मिलें क्योंकि मेरी तरह का साधारण पाठक जब अशुद्धियाँ देख रहा है तो भाषाविज्ञानी पता नहीं क्या-क्या निकाले।
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