काव्य-प्रेमियो,
विगत ९ दिसम्बर २००७ को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा के प्रमुख हस्ताक्षर त्रिचोलन शास्त्री का निधन हो गया। हिन्द-युग्म को आभास हुआ कि ऐसे हिन्दीवीरों का श्रद्धाँजलि देना सही अर्थों में तभी होगा जब इनके द्वारा लिखित साहित्य की कम से कम कुछ झलकियाँ पाठकों के समक्ष रखी जायँ।
त्रिलोचन शास्त्री हिन्दी काव्य में सॉनेट के स्थापक माने जाते हैं (सॉनेट यूरोपिय काव्य की बहुत प्रसिद्ध शैली है। १४ या १६ पंक्तियों की लघु कविता को सॉनेट कहा जाता है। मशहूर इटालवी कवि पित्रचाँ (Petrarchan) तथा अंग्रेज़ी कवि शेक्सपियर के सॉनेट बहुत प्रचलित हैं। इसलिए इन्हें सॉनेटर भी कहा जाता है। त्रिलोचन ने लगभग ५५० सॉनेटों की रचना की है।
आज हम त्रिलोचन के काव्य संग्रह 'ताप के ताए हुए दिन' (प्रकाशन वर्ष १९८०) से आपके लिए एक सॉनेट लेकर आये हैं 'विरोधाभास'।
'विरोधाभास'
एक विरोधाभास त्रिलोचन है. मै उसका
रंग-ढंग देखता रहा हूँ. बात कुछ नई
नहीं मिली है.घोर निराशा में भी मुसका
कर बोला, कुछ बात नहीं है अभी तो कई
और तमाशे मैं देखुँगा. मेरी छाती
वज्र की बनी है, प्रहार हो, फिर प्रहार हो,
बस न कहूँगा. अधीरता है मुझे न' भाती
दुख की चढी नदी का स्वाभाविक उतार हो.
संवत पर सवत बीते, वह कहीं न टिहटा,
पाँवों में चक्कर था. द्रवित देखने वाले
थे. परास्त हो यहाँ से हटा, वहाँ से हटा,
खुश थे जलते घर से हाथ सेंकने वाले.
औरों का दुख दर्द वह नहीं सह पाता है.
यथाशक्ति जितना बनता है कर जाता है.
फ़्लैश-ब्लैक
जन्म- 20 अगस्त 1917 को चिरानीपट्टी, कटघरापट्टी, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश
तुलसीदास से प्रभावित, अवधी शब्दों के सुंदर प्रयोक्ता, गाँव की धरती का उखड़ापन, कला की दृष्टि से अद्भुत कसाव, मानव-संघर्ष के कवि। प्रकृति इनकी कविताओं में खूबसूरत तरीके से रची-बसी है। निराला की तरह बादलों के संगीत को कविता में पढ़ने की कोशिश की है। जीवन के प्रति किसान सुलभ दृष्टि । सहज कविताओं में अनुभव की परतें खुलती हैं। आत्मपरक कविता लिखने के विशेषज्ञ ('भीख माँगते उसी त्रिलोचन को देखा कल’)।
दर्जनों कृतियाँ प्रकाशित हैं जिनमें धरती(1945), गुलाब और बुलबुल(1956), दिगंत(1957), ताप के ताए हुए दिन(1980), शव्द(1980), उस जनपद का कवि हूँ (1981), अरधान (1984), तुम्हें सौंपता हूँ( 1985) महत्वपूर्ण हैं।
पुरस्कार- त्रिलोचन शास्त्री को 1989-90 में हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान से सम्मानित किया था। हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हे 'शास्त्री' और 'साहित्य रत्न' जैसे उपाधियों से सम्मानित किया जा चुका है। 1982 में ताप के ताए हुए दिन के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था।
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
aap ko shat shat naman,aapka hamare beech sasharir na hona nishchit taur par ek aisa tathy hai jisko hum vismrit karna hi chahenge,parantu apni pyari kavitaon ke madhyam se jo hastakshar aapne hamare ruh me ki hai,wo amit hai.
aap jahan bhi hoge,aapke chahne wale wahan pahunch hi jayenge,na sharir se to kam se kam duaon se,
apka baccha
alok singh "Sahil"
और तमाशे मैं देखुँगा. मेरी छाती
वज्र की बनी है, प्रहार हो, फिर प्रहार हो,
बस न कहूँगा. अधीरता है मुझे न' भाती
दुख की चढी नदी का स्वाभाविक उतार हो.
अगर कहूँ की ये रचना लाजवाब है टू आपकी तौहीन होगी,बस हम कोशिस करेंगे की आपकी इस अमित विचारधारा को आगे ले चलें, गुरूजी आपका आशीर्वाद अपेक्षित है.
अलोक सिंह "साहिल"
ये सही किया आपने। महान साहित्यकारों के बारे में पता चलता रहे और उनके कार्यों के बारे में भी, तो सीखने को बहुत कुछ मिले। आपसे निवेदन है कि इसी तरह बाकि साहित्यकारों की रचनायें भी प्रकाशित हों जिससे मुझ जैसे लोग जिन्होंने उनकी कवितायें नहीं पढ़ी हैं उन्हें भी जानकारी मिल सके।
त्रिलोचन जी की कविता के बारे में मैं कहने वाला कोई नहीं हूँ।
"औरों का दुख दर्द वह नहीं सह पाता है.
यथाशक्ति जितना बनता है कर जाता है."
धन्यवाद,
तपन शर्मा
साधुवाद!
हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील उज्जवल काव्यधारा के प्रमुख हस्ताक्षर त्रिचोलन शास्त्री का निधन हो गया है वे हिन्दी साहित्य जगत के प्रकाश पुंज थे. उन्हें शत शत नमन | इसी प्रकार अन्य साहित्यकारों की रचनाये प्रकाशित करते रहे .धन्यवाद |
त्रिलोचन जी की कविता से परिचय कराया इस के लिए हिंद युग्म को धन्यवाद.
शीर्ष रचनाकारों की रचनाओं से हम बहुत कुछ सिख सकते हैं. इसी प्रकार अन्य साहित्यकारों की रचनाये भी कभी कभी /स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित हों, ऐसा निवेदन है.
औरों का दुख दर्द वह नहीं सह पाता है.
यथाशक्ति जितना बनता है कर जाता है.
त्रिलोचन जी की साहित्य साधना और उनको नमन है...!!
त्रिलोचन जी को कोटि कोटि नमन..
त्रिलोचन जी के अथाह संग्रह से चुनी गई यह कविता एक उत्कृष्ट कृति है, त्रिलोचन जी को भावभीनी श्रीधांजलि, ऐसे आयोजन युग्म पर आगे भी होते रहें तो अच्छा है
आपकी कविता की उपस्थिति हम सब लोगों को
१) आपकी विशाल छवि की याद दिलाएगी
२) आपका आशीर्वाद बन कर हमारे साथ रहेगी
३) हमारा पथ प्रशस्त करेगी..
आप को हार्दिक नमन
सादर
शैलेश
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