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Thursday, December 13, 2007

अन्तहीन सफर



कितना हसीन होता है न
वह ख्वाब ,
जो कभी-कभी
यूं ही आंखो में
उतर के आता है

बिछा के कागज़ पर
सितारों के हर्फ़
और चाँद के किरणों की
रोशन स्याही को
नाम ख़त का दिया जाता है ,
पता लिखा होता है
इस में उस हद का
जहाँ सब गुनाह माफ़ होते हैं ,......
जुड़ता है रिश्ता सिर्फ़ रूह से रूह का
और सूरज से चमकते आखर
सिर्फ़ मोहब्बत की जुबान होते हैं ,

बहती सी यह हवाएँ ले जाती है
ख्यालों को वहाँ तक ,
जहाँ लफ्जों का ........
एक गुलिस्तां सा नज़र आता है
झर जाती है राख याद की
और एक घुलता हुआ धुआँ
सब तरफ़ फैल जाता है
और तब अटकी हुई साँसों के साथ
एक अन्तहीन सफर,
जहाँ खत्म हुआ था .....
फ़िर वही से शुरू हो जाता है !!

रंजू

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25 कविताप्रेमियों का कहना है :

36solutions का कहना है कि -

वाह, खतों में मैनें भी जिया है । लाजवाब सोंच प्रस्‍तुत किया है आपने रंजू जी, धन्‍यवाद ।

मॉं : एक कविता श्रद्वांजली

Harihar का कहना है कि -

बिछा के कागज़ पर
सितारों के हर्फ़
और चाँद के किरणों की
रोशन स्याही को
नाम ख़त का दिया जाता है ,
पता लिखा होता है
इस में उस हद का

बहुत खूब रंजू जी

डाॅ रामजी गिरि का कहना है कि -

"बिछा के कागज़ पर
सितारों के हर्फ़
और चाँद के किरणों की
रोशन स्याही को
नाम ख़त का दिया जाता है ",


बहुर ही दिलकश और सुन्दर शब्द-विन्यास है आपकी कविता में ...संवाद को उकेरने वाले शिल्पी के कलम का कमाल है .

Unknown का कहना है कि -

रंजू जी

जहाँ सब गुनाह माफ़ होते हैं ,......
जुड़ता है रिश्ता सिर्फ़ रूह से रूह का

बहती सी यह हवाएँ ले जाती है
ख्यालों को वहाँ तक ,
जहाँ लफ्जों का ........
एक गुलिस्तां सा नज़र आता है
झर जाती है याद राख की
और एक घुलता हुआ धुआँ
सब तरफ़ फैल जाता है


बहुत ही सुंदर है... यह अंतहीन सफर, दैहिक जीवन यात्रा से प्रारम्भ होकर, दर्शन की गहराइयों में पता नहीं कितनी दूर तक ले जाता है. लगता है रंजना जी ने गजलों से चलते हुए शब्दों के साथ खेलना .... वो भी बहुत शिद्दत के साथ ..... शब्द कम हैं आपके इस नए रूप के लिए

हाँ एक सुधार भी
"झर जाती है याद राख की" नहीं...
"झर जाती है राख याद की" होना चाहिए था.
शुभकामनाएं ... अंतहीन सफर के लिए

मनीष वंदेमातरम् का कहना है कि -

रंजना जी!
बहुत ही सुंदर कविता-
शुरू की लाईनें लाजवाब

बिछा के कागज़ पर
सितारों के हर्फ़
और चाँद के किरणों की
रोशन स्याही को
नाम ख़त का दिया जाता है ,
पता लिखा होता है
इस में उस हद का
जहाँ सब गुनाह माफ़ होते हैं

पर इन लाईनों में अंतर्विरोध है-
एक अन्तहीन सफर,
जहाँ खत्म हुआ था
पर कुल मिला के बहुत ही सुंदर।।।।।

Asha Joglekar का कहना है कि -

बहुत खूबसूरत खयाल और उसे भी खूबसूरत शब्द
बिछा के कागज़ पर
सितारों के हर्फ़
अद्भुत !

Alpana Verma का कहना है कि -

''बिछा के कागज़ पर
'सितारों के हर्फ़
और चाँद के किरणों की
रोशन स्याही को
नाम ख़त का दिया जाता है ''
बड़ी सुंदर कल्पना है-
रंजू जी हिंद युग्म पर मेरा आना कभी कभी था पर अब नियमित है,
और नियमित ही आप को पढ़ रही हूँ - हर बार आप की लेखनी में नया रूप पाती हूँ-

'बहती सी यह हवाएँ ले जाती है
ख्यालों को वहाँ तक ,
जहाँ लफ्जों का ........
एक गुलिस्तां सा नज़र आता है''

बड़ी भीनी भीनी सी महकती कल्पना है .
आप की कविता पसंद आयी.
बधाई---

loke का कहना है कि -

बिछा के कागज़ पर
सितारों के हर्फ़
और चाँद के किरणों की
रोशन स्याही को
नाम ख़त का दिया जाता है ,

in lines ki jitni bhi tareef ki jaye utna hi kam hai

abi aap bhi chand or taaro ko ki treh apna naam lagatar roshan karte ja rahi hai mine blowing ranju ji
keep it up mein aapke book chapne ka wait kar raha hu
or apne mostly dosto ko aapke baare mein jaroor bata ta hun taki vo sab bhi app ki in kavitao ka maja le sake
or haan aapke Autograph lene mein aaunga sab se pahle
kyo ki mujhe pata hai ki aap ek din un chand taaro se bhi jayda chamkoge

Sanjeet Tripathi का कहना है कि -

मोहब्बत, रोमांस, प्रेम इन अलग-अलग शब्द लेकिन एक ही भाव के लिए किसी की कल्पना के इतने अलग-अलग रंग मैनें किसी के शब्दों में नही देखे जितना कि आपके शब्दों में देखा!!

Sambhav का कहना है कि -

बहती सी यह हवाएँ ले जाती है
ख्यालों को वहाँ तक ,
जहाँ लफ्जों का ........
एक गुलिस्तां सा नज़र आता है

Bhaut Sunder... Hamesha Likhte Rahe

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बजी जब शब्दों की पायल
हुये घायल
तेरे कायल
उठा जाये न अब हम से
सितारों के
हर्फ बनते चाँद की
रोशनी स्याही...वाह..
क्या !! लिखा है कसम से

ये बतओ कलम का जादू है या जादू की कलम है..

Avanish Gautam का कहना है कि -

अच्छी कविता. बधाई!

मीनाक्षी का कहना है कि -

रंजू जी , आपका लेखन हमेशा मुझे प्रभावित करता है. सपनों की दुनिया सबसे हसीन होती है... जहाँ सिर्फ रूह से रूह का रिश्ता होता है... और सिर्फ मुहब्बत की ज़ुबान होती है.... अंतहीन सफर...
एक अन्तहीन सफर,
जहाँ खत्म हुआ था .....(खत्म न हुआ कभी..)
फ़िर वही से शुरू हो जाता है !!

Anonymous का कहना है कि -

बहती सी यह हवाएँ ले जाती है
ख्यालों को वहाँ तक ,
जहाँ लफ्जों का ........
एक गुलिस्तां सा नज़र आता है
झर जाती है राख याद की
और एक घुलता हुआ धुआँ
सब तरफ़ फैल जाता है
और तब अटकी हुई साँसों के साथ
एक अन्तहीन सफर,
जहाँ खत्म हुआ था .....
फ़िर वही से शुरू हो जाता है !!
--

बहुत अर्थ है इन पंक्तियों मे
सुंदर
बधाई
अवनीश तिवारी

शोभा का कहना है कि -

एक गुलिस्तां सा नज़र आता है
झर जाती है राख याद की
और एक घुलता हुआ धुआँ
सब तरफ़ फैल जाता है
और तब अटकी हुई साँसों के साथ
एक अन्तहीन सफर,
जहाँ खत्म हुआ था .....
फ़िर वही से शुरू हो जाता है !!
बहुत अच्छा लिखा है रंजना जी . बधाई

Anupama का कहना है कि -

Kaash ki wo hamen khat likhte
aur khat me dil-e-betaab likhte
roz subah uthkar,geeta se pehele
unke khat padte aur maathe se lagate


waaah kya baat kahi hai......khoobsurat soch...khoobsoorat kavita....kyun na ho khoobsurat shayraa ne jo likhi hai

Sajeev का कहना है कि -

सूफी अंदाज़ आपका हमेशा ही भाता है.... सुंदर

Anonymous का कहना है कि -

रंजू जी मुझे रश्क होने लगा है आपसे आप इतने जटिल भावों को भी इतने सहज और सरल रूप में कैसे निरुपित कर देती हैं. कृपा कर के हमें भी कुछ गुरुमंत्र प्रदान करें ताकि हम भी कम से कम आप सब के टिप्पणियों का पत्र तो बन ही सकूं
एकबार फ़िर झकझोर दिया आपने
शुभकामनाओं समेत
आलोक सिंह "साहिल"

दिवाकर प्रताप सिंह का कहना है कि -

अच्छा लिखा है आपने ....
पर यह बताइये कि क्या अब भी लोग पत्र लिख पाते है ? फिलहाल आप की कविता पसंद आयी.
बधाई--- और
शुभकामनाएं ... अंतहीन सफर के लिए

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

रंजू जी
आपका ये हसीं ख्वाब मै अभी रात के एक बजे पढ़ रहा हू.... और सोच रहा हू,.मुझे भी ऐसा ही कोई ख्वाब आये .. बस भगवान सचमुच इस अंतहीन ख्वाब का ये सफर हमेशा जारी रहे... आपने इस ख्वाब के हर पल को आन्दित हो कर जिया है.. और पाठक को भी अपने इस ख्वाब के सफर मै शामिल कर दिया है... ..
आपकी इस कृति को पढ़ कर लगा... चलो कम से कम ख्वाब तो अपने है.. इनको तो अपनी इच्छा से अच्छे देख लो
सादर
शैलेश

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

इस कविता में आपके बिम्बों का कायल हुआ जा सकता है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Mohinder56 का कहना है कि -

रंजना जी,
आपकी रचना पढ कर रफ़ी जी का गाया एक गाना याद आ गया.. सपने जैसा ही..

’तुम्हारी जुल्फ़ के साये में शाम कर लूंगा
सफ़र इस उमर का पल में तमाम कर लूंगा
नजर मिलाई तो पूछूंगा ईश्क का अन्जामा
नजर झुकाई तो खाली सलाम कर लूंगा.

नीरज गोस्वामी का कहना है कि -

आप इतनी सुन्दरता से शब्द और भावों का समन्वय करती हैं की पढने वाले की मुह से बरबस वाह निकल पढ़ती है.इतनी खूबसूरत कविता के लिए मेरी और से हार्दिक बधाई. इश्वर से प्रार्थना है की आप सदा यूँ ही लिखती रहें और हमेशा खुश रहें .
नीरज

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अभी तक की आपकी सबसे सुंदर रचना। एक जगह अपनी सलाह दूँगा
"जो कभी-कभी
यूं ही आंखो में
उतर के आता है"

की जगह

"जो कभी-कभी
यूं ही आंखो में
उतर आता है" कर सकती हैं।

Mukesh Garg का कहना है कि -

bahut khoub ranju ji,

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