मित्रो,
तीन साल पहले आज की तारीख सुनामी के कहर की वजह से इतिहास की सबसे बदनसीब तारीखों में शुमार हो गयी थी....लाखों लोग तबाह हुए थे...अवसरवादी लोग इस त्रासदी को भी भुनाने से नहीं चूके....तब की लिखी एक त्वरित प्रतिक्रिया आज पोस्ट कर रहा हूँ....
बाज़ार में एक नया प्रोडक्ट आया है -''सुनामी"...
बिल्कुल नया,
बिक्री अप्रत्याशित..(दक्षिण की बजाय उत्तर में ज्यादा)
दस में से नौ भाषणों में सुनामी,
दस में से आठ लेखों में सुनामी,
दस में से सात कहानियों-कविताओं में सुनामी,
दस में से दस अखबारों में सुनामी!!
प्रोडक्ट की खासियत-
एक दम नया,
खास विधि से रिफाइनड...
अफ़सोस!!
सुनामी बेचने वालों ने घोटाला कर दिया,
समंदर की लहरों में तैरती चीखें,
नहीं पहुंच पायीं दक्षिण से उत्तर तक,
और उत्तर से दक्षिण तक भी,
पहुंची सिर्फ मुआवजे की मोटी रकम,
संवेदनाएं आनन-फानन में लादी न जा सकीं,
दक्षिण के लिए....
निखिल आनंद गिरि
+919868062333
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
निखिल भाई, आप भी खूब हैं,आप मीडिया के विद्द्यार्थी हैं परन्तु सेल्स का आपका अंदाज बताता है कि आपके लिए मीडिया के बाहर भी संभावनाएं हैं.ये भी खूब है कि एक कवि से कुछ भी कराया जा सकता है विशेषकर जब कवि की हास्य पर पकड़ इतनी मजबूत हो.
अच्छी प्रतिक्रिया.यद्यपि की यह विलम्ब से है पर कुछ चीज़ें हमेशा प्रासंगिक होती हैं.
शुभकामनाओं सहित
आलोक सिंह "साहिल"
''बिक्री अप्रत्याशित..(दक्षिण की बजाय उत्तर में ज्यादा)''
शत प्रतिशत सही कहा.
'सुनामी ' नाम को खूब भुनाया मतलबपरस्तों ने .
अच्छा व्यंग्य है आप की कविता मे.
अनूठी प्रस्तुति..
समंदर की लहरों में तैरती चीखें,
नहीं पहुंच पायीं दक्षिण से उत्तर तक,
गर इतना भर हो जाता तो
मानवता का स्वरूप कुछ और ही होता
समंदर की लहरों में तैरती चीखें,
नहीं पहुंच पायीं दक्षिण से उत्तर तक,
और उत्तर से दक्षिण तक भी,
पहुंची सिर्फ मुआवजे की मोटी रकम,
संवेदनाएं आनन-फानन में लादी न जा सकीं,
दक्षिण के लिए....
it is really very pain ful and terrific.
Regards
बहुत दर्द-भरा मजर था वो..
बहुत सटीक लिखा है निखिल जी..
बडी सारी चीख-पुकारें , दर्द, वेदना, लाचारी, संताप को लोगो ने बेचा
-शुभकामनायें
निखिल, ऑंखें भिगो दी तुमने, और क्या कहूँ ?
निखिल जी,
सुन्दर प्रयास कहूंगा... और अधिक दर्द व कसक भर सकते थे आप..जिसमें आप माहिर हैं मगर शायद आपने तुरन्त लिख कर पोस्ट कर दिया.
गुजरी है जिन पर वही दर्द जानते हैं
देखने वालों के लिये तो तमाशा भर था
भाई निखिल ,
सचमुच दिल मे भावनाओं की सुनामी जगाने मे आप पुरी तरह सफल रहे !कविता मे संवेदना है ,टीस है,एक कसक है जो मन की अंतरात्मा को जकहझोर देती है !ऐसा लगता है की कवि की सरल ह्रदय की व्यथा ,उसकी मन की बेचैनी ,व्याकुलता छात्पताहत शब्द रूप मे ढल गई है !और कविता पढ़ते समय पाठक स्यमं वह व्य्कुलता महसूस करता है ............और यही कवि की सफलता है ..............कविता मे प्रभादोपकता इतनी ज्यादा है की संप्रेस्नियता मौन हो जाती है लेकिन साथ ही कहा जाता है की मौन भाषा की प्रेस्नियता,वाचालता से अधिक होती है ......................
राकेश जी,
टिपण्णी के लिए शुक्रिया.....अपना परिचय भी दें....हिंद युग्म पर कम देखा है आपको शायद....स्वागत....
निखिल आनंद गिरि
निखिल जी,
जब मैंने यह पंक्तियाँ पढ़ी
समंदर की लहरों में तैरती चीखें,
नहीं पहुंच पायीं दक्षिण से उत्तर तक,
और उत्तर से दक्षिण तक भी,
पहुंची सिर्फ मुआवजे की मोटी रकम,
संवेदनाएं आनन-फानन में लादी न जा सकीं,
दक्षिण के लिए....॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰तो मुझे लगा कि एक महान कविता को आगे बढ़ने से आपने रोक दिया। थोड़ा सा और लिख लिया होता। खैर इतना भी गहरा कटाक्ष था। मतलब आपकी लेखनी शुरू से ही तेवरों वाली रही है। बहुत खूब!
समंदर की लहरों में तैरती चीखें,
नहीं पहुंच पायीं दक्षिण से उत्तर तक,
और उत्तर से दक्षिण तक भी,
पहुंची सिर्फ मुआवजे की मोटी रकम,
संवेदनाएं आनन-फानन में लादी न जा सकीं,
दक्षिण के लिए....
निखिल भाई,
एक संवेदनशील मुद्दे पर संवेदनशील रचना लिखने में आपकी लेखनी सफल सिद्ध हुई है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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