पत्र पेटिका सुबह सुबह झाँकी हमने आज
हमको दर्शन दे गये श्री गणपति महाराज
श्री गणपति महाराज लग्न की मिली पत्रिका
जिस पर अपना नाम संग सपरिवार भी लिखा
प्रेषक जिसके कोई मेरे मित्र के मित्र थे
गणेश जी के दांये-बांये डी.ज़े. के चित्र थे
अतिथि बन हम तिथि पर जा पहुँचे जनमासे
जहाँ कोल्डड्रिंक खींच रहे जन्मों के प्यासे
हमने कहकर पानी, ज्यूँ ही हाथ बढ़ाया
पानी नहीं है ताऊ..एक बैरा चिल्लाया..
लिम्का कोक पेप्सी मिरिंडा या स्प्राइट
बोला ताऊ हार्ड बनाऊँ या कुछ लाइट
सरस्वती ने दिया साथ और हम वापस आये
बिन पीये ही कदम हमारे लड़खडाये
एक चबूतरा देख साफ सा आकर टिक गये
डोंगा सिस्टम देख देख बिन खाये झिक गये
मन ही मन में सोच रहे क्या सिस्टम आया
इतने में बिजली सी चमकी, घन गरजाया
कान के पर्दे फाड़ घुसा स्वर यूँ आकर कै
'हट जा ताऊ पाछे नै नाँचन दै जी भरकै'
अपनी लांग़ सम्भाल पकड ली आ चारपाई
चादर में मुहुँ ढका कान में रुई लगाई
सफर के मादे थे जल्दी ही बिक गये घोड़े
कानों में पर गूँज रहे सुर थोडे-थोडे
मुर्गे की सुन बाँग सुबह जब चादर खींची
दाँती के संग कसकर हमने मुट्ठी भींची
हक्का बक्का हुए अभी बारह ही बजे हैं
उल्लू चमगादड यारो तुम्हारे तो मज़े हैं
ये कम्बख्त मुर्गा कब से डी.जे.पर आया
कू कू कू.. कू कू कू.. कू कू चिल्लाया
करवट बदल बदल कर हमने रात गुजारी
सुबह-सुबह ही सात बजे की पकडी लारी
शादी से मैं खूब अघाया घर में आया..
श्री गणपति महाराज को आ शीश नवाया
अपरम्पार तेरी माया
अपरम्पार तेरी माया
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
शादी का यह किस्सा आपने खूब हमे सुनाया
पढ़ के इसको हमे खूब मज़ा आया
हिंद युग्म पर लगता है अब आई हास्य की बारी
राघव जी अब आप करे अगली पोस्ट की तैयारी !
माफ़ कीजियेगा आपके ही अंदाज़ में जवाब देने की कोशिश की है :)अच्छा लगा यह बदलाव भी
विषय भी मजेदार है :) शुभकामनाओं के साथ
सस्नेह
रंजू
भूपेन्द्र जी,
हिन्द-युग्म पर इस विविधता भरे प्रस्तुतिकरण का आभार। खूब खिचाई की है.....बधाई एक अच्छी रचना के लिये।
*** राजीव रंजन प्रसाद
कहने का ये नया प्रयोग अच्छा है.
बहुत खूब.
अवनीश तिवारी
'हट जा ताऊ पाछे नै नाँचन दै जी भरकै'
वाह राघव जी तनिक नाच लेते तो क्या बुरा था
achhi kundliyan hain aapke lekhan ke liye aap ko badhai,
pankaj ramendu
अरे राघव जी! आप नाचने की जगह ये कविता लिख कर क्यों लोगों के रंग में भंग डाल रहे हैं??
अच्छी लगी आपकी रचना!
भुपेंदर जी माफ़ कीजिएगा,पहले सोंचा एक-एक line को लिख-लिख कर एक प्यारा सा समीक्षात्मक बधाई पत्र भेजूं,परन्तु पढ़ते वक्त मैं पूरे समय अपनी हँसी रोकने की चेष्टा ही करता रह गया.और इस तरह आप एक टूटी फूटी समीक्षा पाने से बच गए.
खैर, माफ़ कीजिएगा,कुछ ज्यादा ही हो गया.
हिंद युग्म पर हास्य के इस शुभ आगाज के लिए ढेरों बधाईयाँ और साधुवाद.
अलोक सिंह "साहिल"
भुपेंदर जी माफ़ कीजिएगा,पहले सोंचा एक-एक line को लिख-लिख कर एक प्यारा सा समीक्षात्मक बधाई पत्र भेजूं,परन्तु पढ़ते वक्त मैं पूरे समय अपनी हँसी रोकने की चेष्टा ही करता रह गया.और इस तरह आप एक टूटी फूटी समीक्षा पाने से बच गए.
खैर, माफ़ कीजिएगा,कुछ ज्यादा ही हो गया.
हिंद युग्म पर हास्य के इस शुभ आगाज के लिए ढेरों बधाईयाँ और साधुवाद.
अलोक सिंह "साहिल"
भूपेन्द्र जी
आज की शादियों का बढ़िया चित्र खींचा है आपने ।
बहुत majedar है यह प्रसंग! मैं अभी तक muskra रही hun---आप की स्थिति पर taras भी आ रहा है----khuub अच्छा varnan किया है-waah!
ek alag tarah ki kavita padhne ko mili.....yugm per wakaai kaafi variety aa gai hai....aap apni field me nisandeh zabardast hain
आपकी कविता पसन्द आयी। आपके आने से युग्म की फिज़ा मुस्कुराने लगी है।
राघव जी!
बहुत खुब!
इस मंच पर यही एक कमी थी।
आपने वो पुरी कर दी।
आशा है,आगे भी आप हमें हँसाते रहेंगे।
किन शब्दों में व्यक्त करूँ मित्रो मैं आभार
ऐसे ही दिखलाते रहना दाँतों की चमकार
तभी सार्थक कलम अपुन की मिले जो ये उपहार
भले हँसी ना आये फिर भी हँसना बरम्बार
आपकी हँसी - अपनी खुशी..
साभार
-राघव्
आपकी कविता मुझे बहुत अच्छी लगी .. इसके कारन मै ये बता सकता हू
- कविता शुरू गणेश भगवान जी के नाम से की है..
- संकल्पना काफी प्रचलित है ,,पर आपके कहने का कुछ अंदाज़ से कविता का रूप ही बदल गया है
- और बहुत सच्चाई सी छिपी नज़र आती है..
- अनकहे ही आप एक अच्छा सन्देश दे जाते है.. ये पाठक प्र निर्भर है वो क्या सीख लेता है
-ढेर सारी बधाई
सादर
शैलेश चन्द्र जम्लोकी (मुनि )
हँसी आई है राघव जी,बहुत हीं हँसी आई है। हिन्द-युग्म पर हास्य का आगाज़ बड़ा हीं सुंदर है। आगे भी ऎसी रचनाएँ आएँगी ऎसी उम्मीद करता हूँ।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
आप तो काका-हाथरसी की परम्परा को जीवित किये हुए हैं। 'हट जा ताऊ पाछे नैं, नाचन दै जीभरके नै' का प्रयोग सटीक हुआ है।
Maza aagaya. Bahut Khoob.
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