अंकुरित हो रही आशा
गोधुली में टिमटिमाते नक्षत्र सम
सर उठाए देख तो सही
तम ही नहीं है अति उत्तम ...........
तम की कम्पित सांसों में
दिखलाती सुबह अपनी सुंदरता
पसारती दिगदिगंत में
उज्ज्वलता व कर्मठता ....................
देख बसेरे से दूर सिमटा एक कबूतर
बुनता आसमान में चंचलता का तार
पत्थरों की गहन ओट से
खिलता फूल की चाह अपार ..................
गिरते टूटे पंख नभ से
मिटता जैसे भय मानस से
अटका राही सुध खो बैठा
देख बीज में सूरज को जैसे ..............
घायल अंतस में अश्रूस्राव हो
तो पोछ न देना
अग्निपथ चुन लिया है तो
विश्राम न लेना ..............
स्पंदित आत्मा की बिन्दु को
मुट्ठी में जकड़ लेना
बुलबुले की क्षणिक नृत्य में
अमर जलघट को पकड़ लेना .......................
मिल जायेगा अस्मिता को
अनोखा -सा अभिमान
हर पीढी करने लगेगी
तब तेरा सम्मान .....
तेरा सम्मान .......
सुनीता यादव
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
नमस्कार सुनीता जी ,
आपके द्वारा लिखी गई कविता में शब्दों का जो मेल है और इसकी अस्मिता कही न कही से आत्नमा को छूती है .....
इस अस्मिता को दिखाने का जो व्यापक प्रयास किया गया है वो काबिले तारीफ है ...
नव वर्ष की सुबह कामनाओं के साथ अश्वनी ........
सुनीता जी बहुत अच्छी प्रस्तुति रही.विशेषकर ये पंक्तियाँ दिल के ज्यादा करीब लगी-
गिरते टूटे पंख नभ से
मिटता जैसे भय मानस से
अटका राही सुध खो बैठा
देख बीज में सूरज को जैसे ..............
घायल अंतस में अश्रूस्राव हो
तो पोछ न देना
अग्निपथ चुन लिया है तो
विश्राम न लेना ..............
स्पंदित आत्मा की बिन्दु को
मुट्ठी में जकड़ लेना
बुलबुले की क्षणिक नृत्य में
अमर जलघट को पकड़ लेना .......................
बहुत बहुत बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
शुरुआत बहुत अच्छी है....लेकिन बाद में???
"घायल अंतस में अश्रूस्राव हो
तो पोछ न देना
अग्निपथ चुन लिया है तो
विश्राम न लेना "
यही जीवन की अस्मिता है.,...आपकी कविता सफल है..
निखिल
स्पंदित आत्मा की बिन्दु को
मुट्ठी में जकड़ लेना
बुलबुले की क्षणिक नृत्य में
अमर जलघट को पकड़ लेना
सुनीता जी,
आपकी कविता प्रभावी बन पड़ी है। शब्द सुनियोजित हैं, इसलिए अच्छे लगते हैं। बस दो जगह मैं पढते-पढते अटक गया--
दिखलाती सुबह अपनी नग्नता ... यहाँ नग्नता का प्रयोग क्या सही है। यह तो नकारात्मक अर्थ देती है।
खिलता फूल की चाह अपार .... मेरे अनुसार यहाँ खिलता नहीं खिलती होना चाहिए था। इस ओर ध्यान दीजिएगा।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
तनहा जी नमस्कार...
जी हाँ गलती से खिलता लिख दिया शायद .....मुझे ध्यान देना चाहिए था .
जहाँ तक सुबह की नग्नता है वह प्रयोग बिल्कुल सही है ..इसे आप सकारात्मक दृष्टि से देखें
नग्नता में खुलापन है ..अगली पंक्ती ..पसारती .... में उज्ज्वलता व कर्मठता ..इस सन्दर्भ के साथ पढ़ें आशा है अभी आप समझ गए होंगे मैंने इसका प्रयोग क्यों किया...:-)
सुनीता यादव
सुनीता जी
वाह बहुत सुन्दर लिखा है । भाव और भाषा दोनो अति उत्तम । विशेष रूप से-
देख बसेरे से दूर सिमटा एक कबूतर
बुनता आसमान में चंचलता का तार
पत्थरों की गहन ओट से
खिलता फूल की चाह अपार ..................
गिरते टूटे पंख नभ से
मिटता जैसे भय मानस से
अटका राही सुध खो बैठा
देख बीज में सूरज को जैसे ..............
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
'घायल अंतस में अश्रूस्राव हो
तो पोछ न देना
अग्निपथ चुन लिया है तो
विश्राम न लेना .......
सुनीता जी, बहुत सुन्दर लिखा है.
अच्छी प्रस्तुति.
वाह सुनीता, बहुत ही सुंदर कविता, सुबह की नग्नता सचमुच सुंदर है, तुम्हारी उर्जा को नमन है, रुक जाना नहीं तू कहीं हार के ..... बढ़िया , बधाई
सुनीता जी,
आपके शब्द संयोजन प्रशंसनीय है। सकारात्मक अंत से रचना और निखरी है।
मिल जायेगा अस्मिता को
अनोखा -सा अभिमान
हर पीढी करने लगेगी
तब तेरा सम्मान .....
तेरा सम्मान .......
*** राजीव रंजन प्रसाद
"घायल अंतस में अश्रूस्राव हो
तो पोछ न देना
अग्निपथ चुन लिया है तो
विश्राम न लेना .............."
अहर्निश कर्मयोगी का यही धर्म है ,सुनिताजी.बहुत ही उत्प्रेरक रचना है ...
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