1) लैंप-पोस्ट की रौशनी में भी,
बहुत काली है आज की रात...
वो तारा,
जिसमें मैं तुम्हे देखता था,
आज टूट कर गिरा है....
2) नेता विकास की बात करता है,
आम आदमी मुग्ध होता है,
वो इस बार फसलें बोता है,
और सपने भी....
फसलें उग आती हैं,
सपने मुरझा जाते हैं..
आम आदमी आत्महत्या करता है,
नेता अब भी विकास की बात करता है,
किसी और गाँव में...
3) भीषण नरसंहार के बाद,
जब सान्तवना की बारी आई,
देश के कोने-कोने से,
नेताओं की गाड़ी आई...
4) नेता चिल्लाता है,
सोचता है सच बोल रहा है...
जनता बहरी होकर सुनती है...
तालियाँ बजती हैं....
नेता बोलता जाता है तालियों के लालच में..
लालची नेताओं के लिए जनता जिम्मेदार है...
6) माधुरी लौटी है वापस,
ग्लिसरीन लगा कर रो रही है..
हॉल के लोग अँधेरे में भी जगे हुए हैं...
सुनते हैं ये वही लोग हैं,
जो हर साल बिहार की बाढ़
या विदर्भ की आत्महत्याओं का दौर वापस आने पर भी,
रिमोट से चैनल बदल कर,
देखते हैं सा-रे-गा-मा-पा
देश में अँधेरा पसरा है.....
माहौल के अँधेरे में भी लोग नही जग पाते....
मुझे "टीस" होती है.....
6) मैंने शब्द रच डाले,
लोगों ने अपने-अपने अर्थ निकाले,
वाह-वाह कर उठे,
तुम्हारी दी हुई "टीस"
मेरी सबसे बहुमूल्य निधि....
7) झुक कर पाँव छूता हूँ,
तो लोग मजहबी समझते हैं....
अल्पसंख्यकों की राजनीति में मशगूल देश में,
कौन समझता है,
बहुसंख्यक होने की टीस....
8) वह बिहार से एम.ए पास है...
बड़े बाप का बेटा है,
उसे एक ही टीस है...
कि उसने अगर दिल्ली से दसवीं तक भी पढ़ा होता....
बोल पाता बाजारू भाषा फर्राटे से,
कर पाता कॉल सेंटर में इज्ज़त से चौकीदारी....
9) साल का आख़िरी दिन है,
आओ हिसाब कर लें,
तुम्हारी कितनी मुस्कुराहटें मेरे पास हैं,
एक छुअन भी है...
एक वादा भी (कि तुम कभी नही भुलोगी मुझे)
सब रख लो...वादा मेरे पास ही रहने दो....
नए साल का तोहफा जानकर...
निखिल आनंद गिरि
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
13 कविताप्रेमियों का कहना है :
३ और ७ क्षणिका बहुत अच्छी हैं लेकिन बाकी में बात कहने मैं अपने ज्यादा शब्दों का उपयोग किया है जो की शायद कम शब्दों मैं कह सकते थे ,कुछ एक कहानी जैसी लगीं मुझे इस लिए कुछ कह प्रभाव नही छोड़ पायीं ,और आखिरी पंक्तियाँ "एक वादा भी (कि तुम कभी नही भुलोगी मुझे)
सब रख लो...वादा मेरे पास ही रहने दो....
नए साल का तोहफा जानकर..." इसमे भी कोष्टक मैं लिखने की जरुरत नही होनी चाहिए कुछ इस तेरह से लिखने की कोशिश करते तो बड़ा अच्छा रहता,मेरे ख्याल मैं कम शब्दों मैं बात कहना मुश्किल का है जो की कुछ क्षणिकाओं मैं आप कहने मैं सफल हुए हैं,मुझे जैसा लगा मैंने बोल दिया उमीद करता हूँ आप मेरी बातों का ज्यादा अच्छा या बुरा नही मानेंगे !!
दिव्य प्रकाश दुबे जी,
टिपण्णी का शुक्रिया...भाई, एक तो आपने अपना कीमती वक्त मेरी कविताओं को दिया, फ़िर खामियां भी निकालीं और इतनी सहजता से बताया भी, लेकिन कह गए कि मैं ज्यादा अच्छा न मानूं....
ये क्या बात हुई,...बहुत अच्छा लगा मुझे,,,,,,
और भी टिपण्णी करते रहे....तभी तो निखरेगी मेरी कलम....
सस्नेह,
निखिल
क्षणिकाओं के क्रम अनुसार --
1-भावपूरण है.
२- क्षणिका को वजनी बनने हेतु थोड़ा छोटी की जा सकती है.
३-भावुक रचना--- एक कटु सत्य है.
४-व्यंग्य का पुट लगा.
५-माधुरी ---प्रसंग क्षणिका -यथार्थ की टीस ही है.
६-अच्छी है.
७-बहुत ही बढिया लिखी है.
८-व्यंग्य तीखा है.मगर क्या ये सच है??
९-नए साल का तोहफा -अच्छे भाव समेटे हैं हिसाब करने को.
निखिल भाई , बहुत दिनों बाद युग्म पर लौटा हूँ। आते हीं आपकी क्षणिकाएँ पढी, मन प्रसन्न हो गया।वैसे तो सारी क्षणिकाएँ उम्दा है, अपनी बात कहने में सक्षम हैं, लेकिन २, ६, ७ और ९ मुझे सबसे ज्यादा मारक लगीं।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
निखिल भाई, क्षणिकाएँ अच्छी हैं,मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि मुझे ज्यादा कुछ कहने की मनाही है,खैर बहुत बहुत बधाई.
आलोक सिंह "साहिल"
नमस्कार ,
आपकी कविता मुझे बहुत ही अच्छी लगी है ....
आप शायद मुझे नही जानते हो ...
परन्तु मैं आप को जनता हूँ .......
चलिए कोई बात नही एक दिन जान भी जायेंगे .
खैर मेरे बस में इतना टू नही है की मैं अआप की कविता में कोई नुक्स निकल सकूं ...
नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ .......अश्वनी कुमार गुप्ता ...
अल्पना जी,
एक-एक क्षणिका पर अलग से लिखने का विशेष धन्यवाद....
अश्विनी जी,
टिपण्णी करने का शुक्रिया....भाई, अपना परिचय भी देते तो अच्छा रहता....खैर, आप ऐसे ही सम्बन्ध चाह्ते हैं तो यही सही....आगे भी अपना प्यार देते रहे...
तनहा जी,
कहाँ गायब थे? खैर, अच्छा लगा की मेरी कविताओं से आप लौटे....मिठाई भी खानी है अभी तो....
निखिल
अच्छा लगता है हम सभी लोग एक दूसरे की टिप्पणियों को बिल्कुल सही मनोभाव के साथ ग्रहण करते हैं ,जय हो जय हो "हिंद युग्म "
जय हो हिन्दयुग्म नहीं....कहिये "हिन्दी जिन्दाबाद....."
प्रिय निखिल
बहुत बढ़िया लिखा है । विशेष रूप से कुछ प्रयोग तो बहुत सटीक बन पड़े हैं -
नेता चिल्लाता है,
सोचता है सच बोल रहा है...
जनता बहरी होकर सुनती है...
तालियाँ बजती हैं....
नेता बोलता जाता है तालियों के लालच में..
लालची नेताओं के लिए जनता जिम्मेदार है...
बधाई स्वीकारें
वाह निखिल जी क्या उम्दा लिखा है आपने.. कम शब्दों में बहुत कुछ कह गए आप.. या यूं कहिये के बहुत प्यार से चांटा मारा है आपने.. अल्लाह करे आपकी कलम से ऐसा ही दर्द और ऐसी ही सच्चाई व्यक्त होती रहे.. हमारे देश को आप जैसे कवियों की बहुत ज़रूरत है.. मेरी तरफ़ से आपको हार्दिक सुबह कामनाएं...
निखिल जी,
आपकी कलम की धार का मैं सर्वदा प्रशंसक रहा हूँ, ये पंक्तियाँ खास पसंद आयीं:
आम आदमी आत्महत्या करता है,
नेता अब भी विकास की बात करता है
जब सान्तवना की बारी आई,
देश के कोने-कोने से,
नेताओं की गाड़ी आई
नेता बोलता जाता है तालियों के लालच में..
लालची नेताओं के लिए जनता जिम्मेदार है
अल्पसंख्यकों की राजनीति में मशगूल देश में,
कौन समझता है,
बहुसंख्यक होने की टीस....
*** राजीव रंजन प्रसाद
आप और आपके परिवार को नव-वर्ष की ढेरों सारी शुभकामना और बधाई.
Hindi Sagar
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