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Monday, December 10, 2007

जबाँ को दिल बनाया है


क्यों ऐसे रहनुमा तुमने चुने हैं
किसी के हाथ के जो झुनझुने हैं

तपिश रिश्तों में न ढूंढे कहीं भी
शुकर करना अगर वो गुनगुने हैं

बहुत कांटे चुभेंगे याद रखना
अलग गर रास्ते तुमने चुने हैं

जबाँ को दिल बनाया है उन्होंने
जिन्होंने गीत कोयल से सुने हैं

यहाँ जीने के दिन हैं चार माना
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं

परिंदे प्यार के रख हाथ नीरज
हटा जो जाल नफरत के बुने हैं

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17 कविताप्रेमियों का कहना है :

Avanish Gautam का कहना है कि -

जय हो! मज़ा आ गया! साधु- साधु!!

बालकिशन का कहना है कि -

बहुत ही अच्छी गजल.
यहाँ जीने के दिन हैं चार माना
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं
सुंदर! अति सुंदर!

Anonymous का कहना है कि -

नीरज जी अच्छी कविता लिखी आपने.
बधाई
अलोक संघ "साहील "

अमिताभ मीत का कहना है कि -

अच्छा है सर जी. सच कहा है :
बहुत कांटे चुभेंगे याद रखना
अलग गर रास्ते तुमने चुने हैं
..... पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.

Sajeev का कहना है कि -

क्यों ऐसे रहनुमा तुमने चुने हैं
किसी के हाथ के जो झुनझुने हैं
नीरज जी आपकी ग़ज़लें हमेशा ही बिल्कुल सही मीटर में होती है एकदम दुरुस्त, यह भी अपवाद नही है.... बहुत सुंदर

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत कांटे चुभेंगे याद रखना
अलग गर रास्ते तुमने चुने हैं

बहुत ही खूबसूरत लिखा है आपने नीरज जी ...बेहद पसंद आई आपकी यह गजल बधाई !!

Alpana Verma का कहना है कि -

आप की ग़ज़ल भा गयी-
हर शेर दाद के काबिल लगा.
ख़ास कर यह कमाल का है---
'तपिश रिश्तों में न ढूंढे कहीं भी
शुकर करना अगर वो गुनगुने हैं.'
वाह ! वाह !

Unknown का कहना है कि -

परिंदे प्यार के रख हाथ नीरज
हटा जो जाल नफरत के बुने हैं

वाह ! वाह !

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

नीरज जी,

हर शेर में एक बात है, गहरायी है और आपकी वह छाप है जिसमें आपका अनुभव और इस विधा पर पकड दिखायी पडती है।

बधाई स्वीकारें।

*** राजीव रंजन प्रसाद

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

बहुत अच्छी लगी आपकी गज़ल नीरज जी।
जबाँ को दिल बनाया है उन्होंने
जिन्होंने गीत कोयल से सुने हैं

यहाँ जीने के दिन हैं चार माना
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं

इन दो शेरों में जाने कितना कुछ कह दिया। मज़ा आ गया...

Sunny Chanchlani का कहना है कि -

पहला शेर मुझे सबसे अच्छा लगा बिल्कुल वास्तविक है
बधाई हो
क्यों ऐसे रहनुमा तुमने चुने हैं
किसी के हाथ के जो झुनझुने हैं

Nikhil का कहना है कि -

"बहुत कांटे चुभेंगे याद रखना
अलग गर रास्ते तुमने चुने हैं"
बहुत अच्छे....
आपकी ग़ज़लें प्रेरित करती हैं,..

निखिल आनंद गिरि

मनीष वंदेमातरम् का कहना है कि -

नीरज जी

यहाँ जीने के दिन हैं चार माना
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं

वाह! वाह! बहुत खूब

नीरज गोस्वामी का कहना है कि -

आप सभी पाठकों का, जिनसे मुझे लिखने की शक्ति मिलती है, मेरी ग़ज़ल पढने और पसंद करने का तहे दिल से शुक्रिया. इसी तरह स्नेह बनाये रखें.
नीरज

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

नीरज जी
आपकी सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई!!!
मुझ ग़ज़ल पढ़ कर ऐसा महसूस हुआ
१) शब्द चयन बहुत सुन्दर है
२) ग़ज़ल के लिहाज़ से बहुत सही बैठती है
३) हर पद अपने आप मै गहरा अर्थ लिए है
४) ये पंक्तिया बहुत पसंद आई
"जबाँ को दिल बनाया है उन्होंने
जिन्होंने गीत कोयल से सुने हैं"

कुछ बाते मेरी समझ नहीं आई
१) शीर्षक का ग़ज़ल पर किस तरह सही बैठता है?
२) हर शेर का अपना मतलब है. पर पूरी ग़ज़ल किसी एक चीज़ के आस पास बुनी हुई होती है.. वो चीज़ समझ नहीं आई..
सादर
शैलेश

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

नीरज जी,

आप ग़ज़ल बहुत बढ़िया लिखते हैं और इस बार तो हर एक शे'र वज़नी रखा है आपने।

नीरज गोस्वामी का कहना है कि -

Shailesh Jamloki जी
नमस्कार. ग़ज़ल के शीर्षक का कोई अर्थ नहीं होता , अधिक तर ग़ज़ल के शीर्षक नहीं हुआ करते केवल उनकी पहचान के लिए किसी शेर या उसके हिस्से को शीर्षक बना दिया जाता है दूसरे ये भी ज़रूरी नहीं होता की ग़ज़ल किसी एक मुद्दे पर ही लिखी जाए अलग अलग मूड और विषय के शेरों को जोड़ कर भी ग़ज़ल कही जाती है लेकिन हर शेर अपने आप में पूरी बात कहता है. आपने मेरी ग़ज़ल पढी और पसंद की उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया.
नीरज

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