फटाफट (25 नई पोस्ट):

Monday, December 10, 2007

जिस दिन मैं हारी थी सचमुच


जिस दिन मैं हारी थी सचमुच,
उस दिन ही जीत पाई थी जैसे

पीड़ा के ही आँचल में पलकर
पूर्ण यौवन में खुशी आई थी जैसे

हरेक सपना टूटकर जब बिखरा
आशा की नई बदलियाँ छाई थी जैसे

झूमकर नाचते रहे तारे यों
रात तो उजाले की परछाई थी जैसे

टकरा के लौटी किरण जो अकेली,
खोई हुई चमक फिर लाई थी जैसे

मन का रिश्ता ऐसा जुड़ा दर्द से,
अपनी ही तनहाई, पराई थी जैसे

मजबूरियाँ यूँ सिखाती रही हर दिन,
खामोश सी एक दुहाई थी जैसे

कुछ क्षणों ने ही बदल डाला सब कुछ,
उनमें ही ज़िन्दगी समाई थी जैसे

तनिक विश्वास को भी पूजा ऐसे,
गरीब की उम्र भर की कमाई थी जैसे

उस दिन ये आत्मा भी
धवल ज्योति में नहाई थी जैसे

जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी,
पुनर्जन्म की गूँजती शहनाई थी जैसे

प्रलय हारी अनंत सृष्टि के हाथों,
मेरा आरंभ उसकी विदाई थी जैसे।

अंजलि सोलंकी

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

9 कविताप्रेमियों का कहना है :

Alpana Verma का कहना है कि -

अंजलि जी मुझे तो आप की यह कविता बहुत पसंद आयी .
किस पद की तारीफ करूँ समझ नहीं आ रहा -क्यों कि हर पद खूबसूरत है.
फ़िर भी ये कुछ ख़ास लगे-
'तनिक विश्वास को भी पूजा ऐसे,
गरीब की उम्र भर की कमाई थी जैसे '
और--
जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी,
पुनर्जन्म की गूँजती शहनाई थी जैसे
प्रलय हारी अनंत सृष्टि के हाथों,
मेरा आरंभ उसकी विदाई थी जैसे।

-बधाई स्वीकारें :)

Anonymous का कहना है कि -

अंजलि जी,
जो प्यारी कविता आपने लिखी उससे कमतर की उम्मीद हम कर ही नहीं सकते थे.
बहुत ही प्यारी कविता.
बधाई
अलोक सिंह "साहिल"

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

अति सुन्दर, बहुत प्यारी भाव-युक्त कविता
अल्पना जी से शत-प्रतिशत सहमत.
समझ नही आ रहा किस पद पर क्या लिखूँ

बहुत बहुत बधाई

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर लिखा है अंजलि जी ..

कुछ क्षणों ने ही बदल डाला सब कुछ,
उनमें ही ज़िन्दगी समाई थी जैसे
वाह ..

प्रलय हारी अनंत सृष्टि के हाथों,
मेरा आरंभ उसकी विदाई थी जैसे।

बहुत अच्छा लगा आपकी इस रचना को पढ़ना ..बधाई

Sajeev का कहना है कि -

हरेक सपना टूटकर जब बिखरा
आशा की नई बदलियाँ छाई थी जैसे
वाह सुंदर ग़ज़ल

Nikhil का कहना है कि -

अंजलि जी,
कविता के भाव बेहतर हैं मगर कसाव बिल्कुल नही है....मतलब पठनीयता की दृष्टि से कमज़ोर रचना ही कही जायेगी.....
आपने एक अच्छा व्यंजन बिना नमक के परोस दिया,....

निखिल आनंद गिरि

मनीष वंदेमातरम् का कहना है कि -

अँजलि जी!

अच्छे भाव हैं,पर निखिल जी की बात पर भी ज़रा ध्यान दिजियेगा

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

अंजलि जी आपकी कविता मुझे पसंद आई क्यों की
१) आपका हर पद सोचने पर मजबूर कर देता है.. बहुत गहरे भाव छिपे है हर पद मै
२) बहुत कम शब्दों मै बहुत बड़ी बाटी कही गयी है
३) पद्य के नज़रिये से हर पद(सिवाय एक) सही बैठता है
कुछ पद बहुत अच्छे लगे जैसे

"पीड़ा के ही आँचल में पलकर
पूर्ण यौवन में खुशी आई थी जैसे"
और
"झूमकर नाचते रहे तारे यों
रात तो उजाले की परछाई थी जैसे"
४) आपकी कविता बहुत अच्छी सिख्षा देती है की "हमे अपने बुरे दौर को भी सफलता की सीधी के तरह देखना चाहिए.. " और यही बात आपने कई उदाहरानो द्वारा सिद्ध सी की है

ये बातें मै समझना चाहूँगा:-
१) कुछ पदों का मतलब कुछ ज्यादा ही गहरा है शायद दो-तीन बार पद कर ही समझ पाया
जैसे
"उस दिन ये आत्मा भी
धवल ज्योति में नहाई थी जैसे"
२) और यही पद थोडा और पदों से भिन्न भी लगता है.. पद्य की दृष्टि से..
कुल मिला कर बहुत सुन्दर रचना बनी है.. कृपया आप ओना सुन्दर कम जरी रखें
सादर
शैलेश

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

लगभग प्रत्येक पंक्ति के भाव सुंदर हैं, लेकिन शिल्प बहुत कमज़ोर है। पठनीयता प्रभावित हो रही है। मुझे यह आपका शुरूआती लेखन लगता है।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)