अभिलाषित
मैं तप्त पंक्ति पर्वत की स्तब्ध तुम्हारी दूरी से
मैं तृप्त शीतल दूब पुनः पुलकित तुम्हारे स्पर्श से
अचरज तुम्हारी दूरी से
अम्लान तुम्हारे स्पर्श से
मैं अभिलाषित मुझसे मिलने......
अभिशापित
एक बूंद वर्षा की यदि इस स्रोत में समा जाती
अंतः सागर के खारेपन में कुछ कमी तो आ जाती
अमर मिलन की आस लिए मन में मायूसी खलती है
अरमानों को टांग खूंटी पर आत्मा ख़ुद से जूझती है
क्यों सुलगाकर ज्वाला की चिंगारी कोई बुझाता नहीं
उर समाहित अवरुद्ध करुणा स्रोत प्रस्फुटित होता नहीं
मैं अभिशापित चली उनसे मिलने...
- सुनीता यादव
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छी कविता बन पड़ी है.....मगर ये नए तेवर कहाँ से लायीं...आपकी शैली तो बड़ी सहज होती है.....शब्दों का प्रयोग बड़ा सुनियोजित है...
निखिल
आपकी लिखने की शैली से अलग हट के यह रचना सुंदर लगी
क्यों सुलगाकर ज्वाला की चिंगारी कोई बुझाता नहीं
उर समाहित अवरुद्ध करुणा स्रोत प्रस्फुटित होता नहीं
मैं अभिशापित चली उनसे मिलने...
सुंदर भाव है ..बधाई सुनीता जी !!
मैं अभिलाषित मुझसे मिलने.. ही कहना चाहतीं थीं या 'तुमसे ' की जगह 'मुझसे ' लिख दिया ?अच्छे शब्दो का प्रयोग है पर चयन और प्रयोग में सुधार की संभावना है । 'अभिशापित' बेहतर है , कथ्य में और स्पष्टता हो सकती थी । प्रयास अच्छा है ।
achha contrast hai... prayogatmak
आलोक जी मैं अभिलाषित मुझसे मिलने ...यही मुझे लिखना था...
जब पर्वत बनकर दूर से भी दूर हो जाती हूँ तब मैं दूब बनकर पास से भी पास हूँ ..मैं सो अहम् को प्रस्तुत करना चाहती थी ...
आप सब की प्रेरणा ही मेरे संबल है...
सुनीता
बहुत सुंदर है -
इस बार आपकी रचाना सरल नही है .
दो विरुध विषय पे कहना सुंदर है.
अवनीश तिवारी
सिर्फ़ कठिन कहना अच्छी कविता नहीं होता सुनीता जी।
सब बातों को जोड़ कर देखिए, बिखरी बिखरी उलझी हुई बातें हैं- अपने ही अर्थ का विरोध करती हुई।
सुनीता जी,
दोनो ही क्षणिकायें अच्छी है। कुछ शब्द भाव-संप्रेषणीयता में बाधक अवश्य हैं किंतु रचना को एक अच्छा प्रयोग अवश्य माना जायेगा।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुनीता जी,
शब्दों में जटिलता तो है.. परंतु प्रयोग सराहनीय है..
और कवितायें सारगर्भित
पहली रचना काफ़ी पसंद आई।
सुनीता जी,
दोनों कविताएँ बड़ी हीं खूबसूरत हैं। शब्द-संयोजन बढिया है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
दोनों की दोनों कविताओं को मैं पूरी तरह से समझ नहीं पाया।
the two poems are very nice.you cam assimilate the inner meaning if u go deeper into the poems.with blessings
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