मैंने मान लिया कि हम एक नहीं हो सकते
मैंने मान लिया कि फर्ज़ का बोझ कंधे से उतार कर तुम
अपनी ज़िन्दगी नहीं जीना चाहती
मैंने यह भी मान लिया कि हमारे रिश्तों का अंत
एक अंत हीन दर्द होगा
लेकिन मेरे चाँद
वह मोड़ जहाँ हम पीठ कर लेंगे
अभी चार कदम की दूरी पर है...
राधा भी कान्हा की नहीं हो सकी थी
लेकिन यह जान कर भी कि
कान्हा किसी मोड पर मुड ही जायेगा
राधा ने कदम थामे तो नहीं थे..
हम साथ हैं तो ज़िंदगी खूबसूरत है
हम साथ होते तो जिन्दगी खूबसूरत होती..
मैं भी आने वाले कल से डरता हूँ
मैं यह भी जानता हूँ कि तुम्हारे बिन
मैं सागर का पंछी हो जाऊंगा
लेकिन मेरे खूबसूरत साथी
ताउम्र हमसफर नहीं कुछ कदम ही सही
साथ साथ चलें हम
सपनों की फसल बोयें
कल जब याद आओ और बहुत याद आओ तुम
तो कोई ख्वाब जो पक कर सुनहला हुआ होगा
कानों में एकाएक गुदगुदी सी कर जायेगा
पुरबा कहेगी मुस्कुरा कर, पागल! आखें क्यों रोती हैं
यादें बेहद मीठी होती हैं..
*** राजीव रंजन प्रसाद
१९.१०.२०००
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
राजीव जी
सर्व प्रथम कुछ नया लिखने के लिए बधाई । यह रचना कुछ अलग अंदाज़ की लगी । जीवन में सभी रसों का अपना महत्व होता है । प्रेम की सुन्दर व्याख्या और दर्शन अच्छा लगा ।
कल जब याद आओ और बहुत याद आओ तुम
तो कोई ख्वाब जो पक कर सुनहला हुआ होगा
कानों में एकाएक गुदगुदी सी कर जायेगा
पुरबा कहेगी मुस्कुरा कर, पागल! आखें क्यों रोती हैं
यादें बेहद मीठी होती हैं..
यादें सचमुच बहुत मीठी होती हैं । बधाई स्वीकार करें ।
विरह के शुरुवात से यादो के मीठास को बडी सुन्दरता से बताया है.
सुन्दर रचना है.
अवनीश तिवारी
वाह!! राजीव जी यह कविता आपके लिखे से बिलकुल अलग लगी और मुझे बहुत बहुत पसंद आई ..
राधा भी कान्हा की नहीं हो सकी थी
लेकिन यह जान कर भी कि
कान्हा किसी मोड पर मुड ही जायेगा
राधा ने कदम थामे तो नहीं थे..
बहुत खूब .....
कल जब याद आओ और बहुत याद आओ तुम
तो कोई ख्वाब जो पक कर सुनहला हुआ होगा
कानों में एकाएक गुदगुदी सी कर जायेगा
पुरबा कहेगी मुस्कुरा कर, पागल! आखें क्यों रोती हैं
यादें बेहद मीठी होती हैं..
बहुत ही सुन्दर ..सच में यादे बहुत ही मीठी होती हैं ...बहुत बहुत बधाई इतनी सुन्दर रचना के लिए !!
सपनों की फसल बोयें
कल जब याद आओ और बहुत याद आओ तुम
तो कोई ख्वाब जो पक कर सुनहला हुआ होगा
कानों में एकाएक गुदगुदी सी कर जायेगा
पुरबा कहेगी मुस्कुरा कर, पागल! आखें क्यों रोती हैं
यादें बेहद मीठी होती हैं..
वाह राजीव जी बहुत दिनों बाद आपसे कोई ऐसी सुंदर रचना पढने को मिली है, आँखों से बहते खारे पानी men घुली यादें सचमुच मीठी होती है
कल जब याद आओ और बहुत याद आओ तुम
तो कोई ख्वाब जो पक कर सुनहला हुआ होगा
कानों में एकाएक गुदगुदी सी कर जायेगा
पुरबा कहेगी मुस्कुरा कर, पागल! आखें क्यों रोती हैं
यादें बेहद मीठी होती हैं..
ये पंक्तियाँ पूरी जिंदगी की खुशियों का सार प्रस्तुत करती हैं। अगर हर रिश्ते में यह हीं बात हो तो क्या बात हो!
अरसों बाद आपसे प्रेम-गीत सुनकर अच्छा लगा। बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
यादें बेहद मीठी होती है...
मैं शौभाजी से सहमत हूँ, यह रचना कुछ अलग अंदाज में लगी...
बहुत-बहुत बधाई!!!
प्रेम रंग की डूबी कविता लिये अलग अन्दाज.
कहाँ छुपा कर बैठे थे, रंजन जी महाराज..
रंजन जी महाराज खोल दो रंग पिटारा...
सतरंगी हो जाने दो मन आज हमारा....
भर पिचकारी रह-रह मारो अक्षय कलम की
मधुरसमय मधुप्यारी कविता प्रेम रंग की
kuch yaaden bahut meethi hoti hai aur kuch behad dard bhari.....ek positivity nazar aati hai is poem me....saath hi saath zazbaaton ki uthal puthal....aachi lagi...
राजीव जी!!
आपकी यह रचना और रचनाओ से भिन्न है....अच्छी लगी....
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मैंने मान लिया कि हम एक नहीं हो सकते
मैंने मान लिया कि फर्ज़ का बोझ कंधे से उतार कर तुम
अपनी ज़िन्दगी नहीं जीना चाहती
मैंने यह भी मान लिया कि हमारे रिश्तों का अंत
एक अंत हीन दर्द होगा
लेकिन मेरे चाँद
वह मोड़ जहाँ हम पीठ कर लेंगे
अभी चार कदम की दूरी पर है...
राधा भी कान्हा की नहीं हो सकी थी
लेकिन यह जान कर भी कि
कान्हा किसी मोड पर मुड ही जायेगा
राधा ने कदम थामे तो नहीं थे..
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राजीव जी,आपकी ये रचना आपकी पूर्ववर्ती रचनाऒं की अपेक्षा ,विषय और भावों की दृष्टि से नवीनता लिये हुये है। बहुत पसन्द आयी-
पुरबा कहेगी मुस्कुरा कर, पागल! आखें क्यों रोती हैं
यादें बेहद मीठी होती हैं.
यह प्रयोग पसंद आया-
वह मोड़ जहाँ हम पीठ कर लेंगे
अभी चार कदम की दूरी पर है...
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