चलिए तीसरे स्थान की कविता की बात करते हैं। इस पायदान पर एक बार फ़िर पिछली बार अपनी क्षणिकाओं के साथ शीर्ष ४ में रह चुकी कवयित्री हैं डॉ॰ अंजलि सोलंकी कठपालिया। इस बार इनकी कविता 'तेरी बार नहीं करता' ने यह कमाल किया है।
पेशे से डॉक्टर अंजलि सोलंकी का जन्म १९ सितम्बर १९८० को संगरिया (राजस्थान) में हुआ। प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा वहीं हुई। कटक से एम॰बी॰बी॰एस॰ (MBBS) करने के बाद फ़िलहाल पीजीआई चण्डीगढ़ (PGI, Chandigarh) से पैथोलॉजी में एम॰डी॰ (MD) कर रही हैं। साहित्य लिखना-पढ़ना इनका भावातिरके शौक़ है। यद्यपि इन सबके लिए बमुश्किल समय निकाल पाती हैं, लेकिन इनके जीवित रहने के लिए ये आवश्यक हैं।
तेरी बात नहीं करता
हाँ, मैं तुझे याद तो करता हूँ अक्सर
मगर तेरी बात नहीं करता
तेरे दोनो कदम, अलग दिशा में चले थे
कहती थी बहुत कुछ, होंठ किन्तु सिले थे
दुपट्टा भी उड़-उड़कर बगावत कर रहा था
बिन बात की इस बात पर मन मेरा हँस रहा था
समेट लेता हूँ मुस्कुराहटें
बात सरेआम नहीं करता
कुछ कहना तो है, पर तुम नहीं जानती
मुझे पाना तो है, मगर नहीं मानती
सिर्फ सवाल करती हो, जबाब नहीं है
कैसे ज़िन्दा हो, जबकि ख्वाब नहीं है
इतनी अधूरी हो तुम
जिसे मैं इंसान नहीं कहता
बड़बड़ाते रास्तों में खामोश सा चलता हूँ
रिश्तों के साँचे में दर्द सा ढलता हूँ
सहम जाते हैं अपने इस हाल में देखकर
भर आती है आँखे, घाव अपने कुरेदकर
आँखे मूँद लेता हूँ मगर
तुझे बदनाम नहीं करता
भूलने की कोशिश में, खुद को भुला रहा हूँ
भरोसे की दीवारो में, नफरत मिला रहा हूँ
मेरी रगों का लहू, कब से चुक गया है
सांस कैसे लूँ, हृदय् भी रूक गया है
झूठ कहता हूँ फिर भी सबसे
कि मैं तुझे याद नहीं करता
आते हुए तुमने तन्हाई छीनी थी
जाते हुए तुमने सर्वस्व ले लिया
मेरी बदनामियों में तुमने
कैसा ये वर्चस्व ले लिया
तुझसे तुझको माँगू कैसे,
मै तो खुदा से भी फरियाद नहीं करता
बात इतनी सी है कि मैं
तेरी बात नहीं करता
जजों की दृष्टि-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰५, ७, ६
औसत अंक- ६॰१७
स्थान- अठारहवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰३, ७॰४
औसत अंक- ६॰३५
स्थान- छठवाँ
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- सम्वेदनापूर्ण तो है किन्तु अच्छे प्रेमगीत के लिए भावना की पकड़ के साथ-साथ शिल्प को भी महत्व देना पडे़गा। काल पर भी ध्यान दें।
अंक- ५॰८
स्थान- आठवाँ
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
“बात इतनी सी है कि मैं तेरी बात नहीं करता” रचना कोमल मनोभावों की सुन्दर प्रस्तुति है। कवि ने बिना लाग लपेट, बिना अधिक शब्द-बिम्ब जाल बुने दिल खोल कर रख दिया है।
कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ७/१०
कुल योग: १४/२०
पुरस्कार- डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
चित्र- उपर्युक्त चित्र को वरिष्ठ चित्रकार स्मिता तिवारी ने बनाया है।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
मन की सीलन भरी गलियों में अंकुरित छोटी-छोटी चुप्पियां एकान्त की धूप में सज-संवर रही हैं।.. कविता का बुनावट अच्छी लगी।
कमाल की प्रस्तुति. कई बार लगा जैसे अपने मन की बात हो रही हो. There's a clarity of sorts in the whole presentation.
बहुत ही सहज, और स्वाभाविक. बहुत बढ़िया लेखन. बधाई.
"सहम जाते हैं अपने इस हाल में देखकर
भर आती है आँखे, घाव अपने कुरेदकर
आँखे मूँद लेता हूँ मगर तुझे बदनाम नहीं करता"
कविता अपनी सी लगी । मन का प्रीतमय दर्द कागज़ पर उभर आया ।सबसे अच्छा पहलू कलम की पकड़, मन को भा गई ।
आपकी लेखनी को प्रणाम ।
भवदीय,
आर्यमनु, उदयपुर ।
झूठ कहता हूँ फिर भी सबसे
कि मैं तुझे याद नहीं करता
आते हुए तुमने तन्हाई छीनी थी
जाते हुए तुमने सर्वस्व ले लिया
भावपूर्ण रचना
शुभकामनायें
जो चार पंक्तियाँ सबसे अधिक पसंद आईं।
भूलने की कोशिश में, खुद को भुला रहा हूँ
भरोसे की दीवारो में, नफरत मिला रहा हूँ
आते हुए तुमने तन्हाई छीनी थी
जाते हुए तुमने सर्वस्व ले लिया
स्मिता जी, आपकी चित्रकारी लाजवाब है।
तपन शर्मा
बहुत खूब सूरत कविता बधाई
स्मिता जी ..
आपकी कविता पढ़कर काफी अच्छा लगा ..ऐसी कविता बहुत कम पढने को मिलती है .... इस कविता की सही प्रशंशा तो कोई भुक्त्भोगी प्रेमी ही कर सकता है ....मुझ जैसा व्यक्ति नही ..जो की अभी तक प्रेम से अछुता है ..
''भूलने की कोशिश में, खुद को भुला रहा हूँ
भरोसे की दीवारो में, नफरत मिला रहा हूँ
मेरी रगों का लहू, कब से चुक गया है
सांस कैसे लूँ, हृदय् भी रूक गया है
झूठ कहता हूँ फिर भी सबसे
कि मैं तुझे याद नहीं करता''
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ..मगर साथ ही यह भी कहना चाहूँगा कि स्मिता तिवारी जी के बनाये चित्र ने आपकी कविता में जान डाल दी है ....l
कवि की प्रस्तुति को सुन्दर सरल और सहज कहा जा सकता है। प्रसंशनीय। स्मिता की को बहुत सुन्दर चित्र के लिये हार्दिक आभार जिसके कारण यह प्रस्तुति के बिम्ब और स्पष्ट हुए हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
भूलने की कोशिश में, खुद को भुला रहा हूँ
भरोसे की दीवारो में, नफरत मिला रहा हूँ
आते हुए तुमने तन्हाई छीनी थी
जाते हुए तुमने सर्वस्व ले लिया
मेरी बदनामियों में तुमने
कैसा ये वर्चस्व ले लिया
अंजलि जी,
बहुत हीं सधी हुई लेखनी है आपकी। हर बात को कहने का अंदाज भी उम्दा है। यही कारण है कि आपकी यह रचना बेहद पसंद आई। बधाई स्वीकारें।
स्मिता जी को सुंदर चित्रांकन के लिए बहुत-बहुत बधाई।
कविता में नयापन तो नहीं है, हाँ लेकिन सच्ची अनुभूतियाँ हैं। स्मिता जी का रंग भरने का प्रयास प्रसंशनीय है।
बड़बड़ाते रास्तों में खामोश सा चलता हूँ
रिश्तों के साँचे में दर्द सा ढलता हूँ
सहम जाते हैं अपने इस हाल में देखकर
भर आती है आँखे, घाव अपने कुरेदकर
आँखे मूँद लेता हूँ मगर
तुझे बदनाम नहीं करता
अंजलि जी, कोमल भावनाओं को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने। अच्छी रचना।
अंजलि जी !!
बहुत अच्छी लगी.....लिखने कि शैली बहुत ही बढिया है...सामान्य भाषा का प्रयोग करके आपने बहुत ही उम्दा रचना की है...
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तेरे दोनो कदम, अलग दिशा में चले थे
कहती थी बहुत कुछ, होंठ किन्तु सिले थे
दुपट्टा भी उड़-उड़कर बगावत कर रहा था
सहम जाते हैं अपने इस हाल में देखकर
भर आती है आँखे, घाव अपने कुरेदकर
आँखे मूँद लेता हूँ मगर
तुझे बदनाम नहीं करता
मेरी रगों का लहू, कब से चुक गया है
सांस कैसे लूँ, हृदय् भी रूक गया है
झूठ कहता हूँ फिर भी सबसे
कि मैं तुझे याद नहीं करता
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