तुम्हारा कहा बस किये जा रहा हूँ।
मुझे क्या पता क्यूँ जिये जा रहा हूँ।।
तुम्हें भूल जाऊँगा मैंने कहा था,
न यादों में लाऊँगा मैंने कहा था,
मगर माफ करना मुझे मेरे हमदम,
तुम्हें याद अब भी किये जा रहा हूँ।
अभी याद आती हैं वो तेरी बातें,
वो होठों की बंदिश,जन्नत सी आँखें,
भरोसा रखो मुझपे ऐ मेरे दिलवर,
मैं गैरों से बातें किये जा रहा हूँ।
नहीं तुमसे मिलना नहीं बात करना,
नहीं ख़त का लिखना नहीं याद करना,
सदा रहना खुश अब तो मैं भी सुखी हूँ,
कि सागर पे सागर पिये जा रहा हूँ।
तुम्हारा कहा बस किये जा रहा हूँ।
मुझे क्या पता क्यूँ जिये जा रहा हूँ।।
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
pankaj achaa hai dost.
lekin naya kam laga..
keep writing..
avaneesh tiwaree
पंकज जी
सारे कोमल शब्द और कोमल भाव। मनभावन और गेय रचना है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुंदर भाव है !!
तुम्हें भूल जाऊँगा मैंने कहा था,
न यादों में लाऊँगा मैंने कहा था,
मगर माफ करना मुझे मेरे हमदम,
तुम्हें याद अब भी किये जा रहा हूँ।
सच है. काश की भूल पाना इतना आसान होता .....
:)
मज़ेदार है
accha hai.
bharati tiwaree
पंकज जी,
एक तो प्यारी रचना और उसपर प्यारे भाव.
एक शब्द में बोलूँ तो कविता लाजवाब...
बधाई.....
पंकजजी,
सदा रहना खुश अब तो मैं भी सुखी हूँ,
कि सागर पे सागर पिये जा रहा हूँ।
क्या बात है!!
कथ्य की गेयात्मकता आकर्षित करती है. आगे आपसे और भी सुनने-पढ़ने को मिलेगा. इसी आशा के साथ.............
तुम्हारा कहा बस किये जा रहा हूँ।
मुझे क्या पता क्यूँ "लिखे" जा रहा हूँ।।
पिए जाइए।
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