यह कविता वाराणसी और उसके आसपास गाये जाने वाली सधुक्कड़ी शैली के गीतों की एक विधा 'छनपकैईया' पर आधारित है।
छन ओ भईया
छन ओ भईया
छन ओ भईया छन!
छन ओ भईया
छन ओ भईया
छन के अन्दर हम
छन के अन्दर पैदा हो गये
छन में निकला दम
छन ओ भईया
छन ओ भईया
छन ओ भइया छन!
छन ओ भईया
छन ओ भईया
छन के अन्दर प्यार
छन से आया दिल के भीतर
बाजे मन के तार!
छन ओ भईया
छन ओ भईया
छन ओ भईया छन!
छन ओ भईया
छन ओ भईया
छन के अन्दर पैसा
कुछ ने कर ली बहुत कमाई
कुछ बोले यह कैसा!
छन ओ भईया
छन ओ भईया
छन ओ भईया छन!
अवनीश गौतम
रचना काल: 1994
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
इस शैली से परिचित कराने के लिए धन्यवाद.
अच्छा बना है.
बधाई.
अवनीश तिवारी
वाह हो भइया वाह!
यह 'पकैया' ही हो गयी है। कोई भी शैली हो कथ्य के अभाव में व्यर्थ ही है। नुक्कड-वुक्कड के लायक है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
तीन चौथाई कविता पर तो छन ने कब्ज़ा जमा लिया है। गाने पर शायद कुछ ठीक लगे, वैसे तो कुछ नहीं है।
इसकी धुन पता होती तो और आनंद आता।
भंवरें हो जाने के बाद दुल्हन की सखियाँ दूल्हे से "छन" कहने की
जिद करती हैं...हंसी - ठिठोली में जो गीत गाया जाता है....छन वही विधा है...
" छन - पकैय्या " से ही शुरू होता है....".छन भैया " कहकर अर्थ का अनर्थ सा लग रहा है.....
"हंसी - ठिठोली में जो गीत गाया जाता है....छन वही विधा है."
गीता जी आपकी बात दुरुस्त है. मैने बनारस में इसे होली के प्रसंग में सुना है. हाँलाकि वह वयस्क किस्म की चीज थी. होली के दिनों मे अस्सी घाट पर होने वाला कवि सम्मेलन की यह एक विशेषता है.
और दूसरी बात यह कविता सिर्फ मज़े के लिये लिखी गई है. और ऐसा तो किया ही जा सकता है. तो पाठकों आन्नद लें. अर्थ के चक्कर में मज़ा नहीं आएगा.
कुछ खास नही लगा। हाँ ले देकर जो लाईन ठीक लगी-
छन ओ भईया
छन ओ भईया
छन के अन्दर हम
छन के अन्दर पैदा हो गये
छन में निकला दम
भाई अवनीश जी!
आपने तो खूब छानी
इस शैली से तो मैं भी अपरिचित हूँ
इसलिए कह नहीं सकता कि कविता कैसी है
एक नई चीज देने के लिए धन्यवाद!
लोकगीतों की सधुक्कड़ी परम्परा को जीवित करने का प्रयास सराहनीय है। छन (क्षण) की महिमा भी मस्ती में कह गये हैं आप। कभी मौका निकालकर आवाज़ दे दीजिएगा।
isme kavita kidhar hai......
khaali CHAN.CHAN......
are dhun bhi sunaa dijiye...
विशेषज्ञ तो नहीं हूँ किसी भी विधा का परंतु यहाँ गहनता से सोचकर देखा तो मुझे लगा कि 'छन' शब्द बहुअर्थी है..
कहीं छन सम्बोधन है तो कही. छान, क्षण, आवाज, सुनना आदि अर्थों में प्रयोग हुआ है..
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