गुफ्तगू इस से भी करा कीजे
दोस्त है दिल न यूं डरा कीजे
बात दिल की कहा करो सबसे
आप घुटघुट के ना मरा कीजे
जब सुकूंसा कभी लगे दिल में
तब दबी चोट को हरा कीजे
याद आना है खूब आओ मगर
मेरी आंखों से मत झरा कीजे
तेरा इन्साफ बस सजायें ही
खोटे को भी कभी खरा कीजे
वो न थामेगा है यकीं फिर भी
हाथ उसकी तरफ जरा कीजे
वो है खुशबू ना बांधिए नीरज
उसको साँसों में बस भरा कीजे
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
नीरज जी,
गज़ल पढी है उर तब से ही गुनगुना रहा हूँ "गुफ्तगू इस से भी करा कीजे"।
जब सुकूंसा कभी लगे दिल में
तब दबी चोट को हरा कीजे
वो न थामेगा है यकीं फिर भी
हाथ उसकी तरफ जरा कीजे
बेहतरीन गज़ल। बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
वाह !!नीरज जी बहुत अच्छी लगी आपकी यह गजल .यह शेर विशेष रूप से पसंद आए
याद आना है खूब आओ मगर
मेरी आंखों से मत झरा कीजे
वो न थामेगा है यकीं फिर भी
हाथ उसकी तरफ जरा कीजे
बधाई आपको नीरज जी !!
वो है खुशबू ना बांधिए नीरज
उसको साँसों में बस भरा कीजे
बहुत खूब
अवनीश तिवारी
नीरज जी,
छोटे बहर की कमाल गजल निकली
ये कमाल यूंही आप बार बार कीजे
वाह नीरज जी वाह,
खूबसूरत गजल, गज के जैसी बात जल कि तरह समा गयी दिल तक..
याद आना है खूब आओ मगर
मेरी आंखों से मत झरा कीजे
bahut khuubsurat baat...badhaayi
जब सुकूंसा कभी लगे दिल में
तब दबी चोट को हरा कीजे
याद आना है खूब आओ मगर
मेरी आंखों से मत झरा कीजे
वाह.....क्या कहने...बात कोई नई नही है मगर शैली भा गई....मज़ा आ गया....आप युग्म के सबसे अच्छी ग़ज़लों के रचयिता हैं....
निखिल
बेहतर
बढिया है नीरज जी
जब सुकूंसा कभी लगे दिल में
तब दबी चोट को हरा कीजे
याद आना है खूब आओ मगर
मेरी आंखों से मत झरा कीजे
वो न थामेगा है यकीं फिर भी
हाथ उसकी तरफ जरा कीजे
उम्दा गज़ल है नीरज जी। आप तो इस क्षेत्र में अपनी स्वामित्व स्थापित करके हीं मानेंगे, ऎसा महसूस होता है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
मीटर-शास्त्र पर खरी उतरती आपकी यह ग़ज़ल नये तेवरों के अभाव में कम प्रभावित करती है। वैसे आज मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि यदि आप ग़ज़लों को गा सकते हैं तो उन्हें रिकार्ड करके हिन्द-युग्म के आवाज़ सेक्सन में प्रकाशित करें।
नीरज जी मजा आ गया.
बधाई हो
अलोक संघ "साहील"
याद आना है खूब आओ मगर
मेरी आंखों से मत झरा कीजे
aapki gazal roopi maila ka sase khobsoorat moti hai ye sher
bahut hi umda gazal hai neeraj ji wah
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