बंद मुठ्ठी से रेत की मानिंद
रिश्ते भी दरक जाते हैं
थामते-थामते भी हाथों से फिसल जाते हैं।
रीती हथेली को फैला कर उन
अहसासों को जिया जाता है
जिन्हें थामा था तमाम हसरतों के साथ।
मद्धम सी खुशबू अब भी मेरे ज़ेहन में बाकी है
जो गुज़ारे थे पल तेरे साथ
उन लम्हात को बंद आंखों में जिया जाता है।
तेरा तस्सुवर जीने का मकसद है मेरा
अब तो कायनात का भी डर जाता है।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छा इरादा हे -
तेरा तस्सुवर जीने का मकसद है मेरा
अब तो कायनात का भी डर जाता है।
सुंदर.
अवनीश तिवारी
बंद मुठ्ठी से रेत की मानिंद
रिश्ते भी दरक जाते हैं...
सत्य! जीवन का अनुभव आपकी कलम से टपक रहा है, रिश्ते जितने ठोस नज़र आते है.. उतने ही नाजुक होते है...
मगर फिर भी एक सत्य यह भी कि रिश्तों से ही जीवन है... बिना रिश्तों के जीवन की कभी कल्पना करके देखियेगा.. बनना/बिगड़ना तो प्रकृति का नियम है।
अनुराधा जी बहुत अच्छा लिखा है.. परंतु
रिश्ते नहीं होते तो
रेत कि तरह नहीं
घाव की तरह रिसते
लिखें जबरदस्त लिख रही हो..
बधाई
अनुराधा जी,
क्षणिका की यही बात सबसे अच्छी है कि घाव करें गंभीर। आपकी यहाँ रचना एसी ही है...।
तेरा तस्सुवर जीने का मकसद है मेरा
अब तो कायनात का भी डर जाता है।
बहुत खूब।
*** राजीव रंजन प्रसाद
तेरा तस्सुवर जीने का मकसद है मेरा
अब तो कायनात का भी डर जाता है।
अनुराधा जी यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी सुंदर.!!..
कितने कोमल हैं ये जज्बात. अनुराधा जी रह रह कर मन में ये ख्याल आता है......
क्या बात है!!
बढ़िया लिखा है आपने!!
तेरा तस्सुवर जीने का मकसद है मेरा
अब तो कायनात का भी डर जाता है।
अनुराधा जी,
उम्दा रचना है। रिश्तों का एक पक्ष आपने बड़ी हीं बखूबी रखा है। दूसरा पक्ष भी कभी आपसे सुनना चाहूँगा।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
बिम्ब, उपमान बहुत पुराने हैं। यूनिकवयित्री से मैं इससे १० गुनी गुणवत्ता की उम्मीद रखता हूँ।
बंद मुठ्ठी से रेत की मानिंद
रिश्ते भी दरक जाते
तेरा तस्सुवर जीने का मकसद है मेरा
अब तो कायनात का भी डर जाता है।
anuradha ji ye linen behatarin hai.parantu pure kavita per najar daalein to thode se gahrai ka abhav khala.
alok singh "sahil"
बंद मुठ्ठी से रेत की मानिंद
रिश्ते भी दरक जाते हैं
मुठ्ठी से रिश्ते सरक सकते हैं, दरकना याने चटकना- मुठ्ठी में रेत हो तो सरकेगी दरकेगी नहीं.
अहसासों को मन में रखा जाता है, हथेली में नहीं. रीती हथेली को फैलाकर सिर्फ़ लकीरें देखी जा सकती हैं. रिश्तों को जीने के लिए मन तक जाना होगा.
कोशिश अच्छी है पर प्रतीक भी ठीक होना जरूरी है.
-संजीव 'सलिल'
बंद मुठ्ठी से रेत की मानिंद
रिश्ते भी दरक जाते हैं
मुठ्ठी से रिश्ते सरक सकते हैं, दरकना याने चटकना- मुठ्ठी में रेत हो तो सरकेगी दरकेगी नहीं.
अहसासों को मन में रखा जाता है, हथेली में नहीं. रीती हथेली को फैलाकर सिर्फ़ लकीरें देखी जा सकती हैं. रिश्तों को जीने के लिए मन तक जाना होगा.
कोशिश अच्छी है पर प्रतीक भी ठीक होना जरूरी है.
-'सलिल'
बंद मुठ्ठी से रेत की मानिंद
रिश्ते भी दरक जाते हैं
मुठ्ठी से रिश्ते सरक सकते हैं, दरकना याने चटकना- मुठ्ठी में रेत हो तो सरकेगी दरकेगी नहीं.
अहसासों को मन में रखा जाता है, हथेली में नहीं. रीती हथेली को फैलाकर सिर्फ़ लकीरें देखी जा सकती हैं. रिश्तों को जीने के लिए मन तक जाना होगा.
कोशिश अच्छी है पर प्रतीक भी ठीक होना जरूरी है.
-संजीव 'सलिल'
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