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Monday, November 19, 2007

होमो सेपियंस


‘होमो सेपियंस !!’

हाँ, यही बताई थी
उसने अपनी जाति
तिस पर,
नेताजी ने चेहरे पर
बिना भाव बदले
उसे लताड़ा था --
’अरे तू कैसे हो गया होमो सेपियंस ?
फिर हम क्या हैं ?
कुछ पता भी है
समाज के प्रबुद्ध लोग कहलाते हैं—
होमो सेपियंस !’

‘पर ‘सर’ मैंने तो पढा है कि
सम्पूर्ण आधुनिक मानव....’

‘ऐसा विज्ञान कहता होगा,
समाज नहीं ;
जानते नहीं विज्ञान समाज का दास है...
तू विज्ञान की नज़र से देख रहा है
मैं प्रबुद्ध समाज की नज़र से
और
जहाँ से मैं देख रहा हूँ
तू मुझे आदिम होमो इरेक्टस या होमो.......
नज़र आता है;
नहीं तो कमबख़्त अपने नाम से पहले
तू अपनी जाति बताता
यूँ मुझे आधुनिकता का पाठ न पढ़ाता।’

नेताजी को सहसा कुछ याद आया
शांत-संयत हो कहा –
‘भई, जाओ मिहनत करो
हम सुसंस्कृत भारतीय हैं
यूँ आधुनिकता के नाम पर
हमें बर्बाद करने की
कोशिश तो न करो ।’

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

ऐसा विज्ञान कहता होगा,
समाज नहीं ;
जानते नहीं विज्ञान समाज का दास है...
तू विज्ञान की नज़र से देख रहा है
मैं प्रबुद्ध समाज की नज़र से

विशिष्ट प्रकार के नेताओं पर प्रहार सटीक है.

सुंदर
अवनीश तिवारी

शोभा का कहना है कि -

अभिषेक जी
वाह अच्छा लिखा है -
ऐसा विज्ञान कहता होगा,
समाज नहीं ;
जानते नहीं विज्ञान समाज का दास है...
तू विज्ञान की नज़र से देख रहा है
मैं प्रबुद्ध समाज की नज़र से
बधाई स्वीकारें ।

दिवाकर मणि का कहना है कि -

भाई पाटनी जी !!
बहुत सही कहा आपने. जो नेतृत्व-शक्ति दुहाई देते नहीं थकती है-परम्पराओं की, वास्तव में वे स्वयं उन चीजों से अनभिज्ञ होते हैं. इन नेताओं पर निम्न पंक्तियाँ सटीक बैठती हैं -

आपसी चर्चा के दौरान
'तिरंगा झंडा' में
"कौन-सा रंग नीचे होता है?"
जब वह नहीं जाना,
तब कहीं जाकर
विदेशियों ने उसे
'भारतीय नेता' माना |

व्याकुल ... का कहना है कि -

अभिषेक जी ,
बहुत ही सुंदर है आपकी कविता ...ऐसे ही लिखते रहिये ..नए विषय पर ....बधाई स्वीकार करे
‘ऐसा विज्ञान कहता होगा,
समाज नहीं ;
जानते नहीं विज्ञान समाज का दास है...
तू विज्ञान की नज़र से देख रहा है
मैं प्रबुद्ध समाज की नज़र से
और
जहाँ से मैं देख रहा हूँ
तू मुझे आदिम होमो इरेक्टस या होमो.......
नज़र आता है;
नहीं तो कमबख़्त अपने नाम से पहले
तू अपनी जाति बताता
यूँ मुझे आधुनिकता का पाठ न पढ़ाता।’

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर अभिषेक जी ...

तू विज्ञान की नज़र से देख रहा है
मैं प्रबुद्ध समाज की नज़र से

बधाई!!

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

तू मुझे आदिम होमो इरेक्टस या होमो.......
नज़र आता है;
नहीं तो कमबख़्त अपने नाम से पहले
तू अपनी जाति बताता
यूँ मुझे आधुनिकता का पाठ न पढ़ाता।’

कलम बहुत पैनी है, व्यंग्य में कवि की महारत है। उत्कृष्ट रचना।

*** राजीव रंजन प्रसाद

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

नया विषय, नया कौशल, प्रेरक व्यंग
अच्छा लिखा है

बधाई

Sajeev का कहना है कि -

bahut sahi.....

RAVI KANT का कहना है कि -

अभिषेक जी ,
बहुत सही व्यंग्य है-

नेताजी को सहसा कुछ याद आया
शांत-संयत हो कहा –
‘भई, जाओ मिहनत करो
हम सुसंस्कृत भारतीय हैं
यूँ आधुनिकता के नाम पर
हमें बर्बाद करने की
कोशिश तो न करो ।’

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

‘होमो सेपियंस !!’

हाँ, यही बताई थी
उसने अपनी जाति

नहीं तो कमबख़्त अपने नाम से पहले
तू अपनी जाति बताता
यूँ मुझे आधुनिकता का पाठ न पढ़ाता।’

तीखा कटाक्ष।
बधाई अभिषेक जी।

विश्व दीपक का कहना है कि -

कुछ पता भी है
समाज के प्रबुद्ध लोग कहलाते हैं—
होमो सेपियंस !

जानते नहीं विज्ञान समाज का दास है...

तू मुझे आदिम होमो इरेक्टस या होमो.......
नज़र आता है;
नहीं तो कमबख़्त अपने नाम से पहले
तू अपनी जाति बताता
यूँ मुझे आधुनिकता का पाठ न पढ़ाता।

हम सुसंस्कृत भारतीय हैं

पाटनी जी,
शब्दों का आपने ऎसा मायाजाल बुना है कि कविता खुद-ब-खुद व्यंग्य की परिधि को परिभाषा देती है। बहुत हीं सटीक व्यंग्य है। अच्छा प्रयोग दिख रहा है। आपसे अब उम्मीदें बढ गई हैं।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आपके तेवर बहुत भाते हैं मुझे।

mona का कहना है कि -

The award given for this poem speaks for itself

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