छोडते हो धिरे से, चलते हुए हाथ
और मुझे देते हो, जिने कि सौगात
लडखडाउँ जब जब, तब थामते हो तुम
ओ बाबा कितने, प्यारे हो तुम
अपने शब्दों से तुम, मुझको देते शक्ति
डटकर जिने कि तुम, जगाते हो आसक्ति
बिखरादूँ मै जब, समेटते हो तुम
ओ बाबा कितने, प्यारे हो तुम
वृक्षरूप से मुझपर छाया धरते हो तुम
आकाश जितना मुझसे प्रेम करते हो तुम
जीत जाऊँ मै तब, नाचते हो तुम
ओ बाबा कितने, प्यारे हो तुम
तुषार जोशी, नागपुर
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत प्यारी रचना....तुषार जी...
मुझे मेरे बाबा की याद आ गयी.......
जब भी मैं तैय्यार होकर बहर निकलती थी कलेज जाने के लियें तो वो कोई ना कोई चीज मेरे मन की अपने पास रखे हुए होते थे...मेरे सबसे अच्छे मित्र थे....
सबसे अधिक सुखद क्षण जीवन के.............आहा....
सुधियों की गलियों में फिर से ले जाने के लियें आपकी मन से आभारी हूं |
बहुत-बहुत बधाई |
स-स्नेह
गीता पंडित
बहुत बढिया!!
तुषार जी,
आपकी कविता को महसूस कर स्पंदित हुआ जा सकता है। बहुत प्यारी रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
तुषार जी
आपकी बहुत अच्छी -अच्छी कविताएँ पढ़ी हैं मैने । उस दृष्टि से यह कविता कुछ हल्की लगी ।
पर भाव प्रबल है । दादा-दादी के लिए आपके विचार प्रशंसनीय हैं । मैने भी एक बार लिखा था
एक वृक्ष है मेरे आँगन में
घना, छायादार,
फल फूलों से लदा ।
झूमता-इतराता ।
सुख-सम्पन्नता बरसाता ।
हम सब पर प्यार लुटाता ।
सस्नेह
बढिया जी
बहुत बढिया...
अच्छी रचना है जोशी जी, मगर ये सच है कि आपकी अन्य बहुत सारी रचनायें बहुत सशक्त हैं इसलिये थोडी हल्की प्रतीत हो रही है..
बुजुर्गप्रेम दर्शाती रचना के लिये बधाई
तुषार जी,
भाव के दृष्टिकोण से तो रचना सही है पर जैसा कि अन्य पाठकों ने भी संकेत किया है आपके स्तर के हिसाब से थोड़ी हल्की है। ऐसे समय में जबकि बहुधा बुजुर्गों को उपेक्षा का दंश झेलना पड़ता है, यह कविता और भी प्रासंगिक हो जाती है।
मित्र तुषार जी
आपकी कविता में हमारी सामाजिक चेतना को
अपने बड़ों के प्रति हमारी आदर एवं कृतग्यता
का भाव इस काव्य की विशिष्टता है
सप्रेम
बिखरादूँ मै जब, समेटते हो तुम
ओ बाबा कितने, प्यारे हो तुम
very nice tushar ji, but the typing has a lot of mistakes, which somtimes interrupt the reading
तुषार जी सुंदर लिखा है आपने !!
छोडते हो धिरे से, चलते हुए हाथ
और मुझे देते हो, जिने कि सौगात
सुंदर, मधुर , अप्रतीम कविता है, तुषार जी।
बधाई स्वीकारें।
तुषार जी,
भाव पक्ष में सबल परन्तु आप के स्तर से नीचे रही यह रचना... आपसे आपेक्षाये अधिक हैं
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