मैं खुद चाहूँ कविता मुझको थामे और स्वीकार करे
जिस के बारे मे लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे
ये अधूरी रह गई तो चेतना सो जायेगी
आसन्न प्रसवा नारी की प्रसव वेदना हो जायेगी
हो कर कविता पूरी मेरी इस पीडा का उपचार करे
जिस के बारे मे लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे
अधखुले केश,अधखुले नयन,अधखुले अधर मदमाते हैं
मेरी कविता मे आँसू और बिखरे सपने मुस्काते हैं
स्याही सिन्दूर बने इसका और कलम इसका श्रंगार करे
जिसके बारे में लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे
कविता मे रूप तुम्हारा है,प्रति शब्द स्वयं मे तारा है
जो धूप खिले पल्को के तले उसमे सौन्दर्य तुम्हारा है
जब सुने इसे अन्तरमन से,तारीफ इसकी संसार करे
जिसके बारे मे लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे
तेरी आँखो पर,तेरे गालों पर,तेरे होठो पर,तेरे बालों पर
और अब लिखता हूँ जीवन के भूले बिसरे कुछ सालों पर
चाहत से सजे उन सालो मे क्या पूरा जीवन जी पाया
मै आज सोचता हूँ मैने तब क्या खोया था क्या पाया
मन भावो को लयबद्ध करूँ,प्रति पंक्ति व्यक्त विचार करे
जिस के बारे मे लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे
जिस के बारे मे लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
13 कविताप्रेमियों का कहना है :
थक गया मैं करते करते याद तुझको,
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ,
इस शेर को बहुत अच्छा विस्तार मिला है तुम्हारी इस कविता में, बधाई विपिन जी
विपिन जी
कविता में आपकी भावनाओं की अच्छी अभिव्यक्ति हुई है । शब्द प्यार करेंगें ये कामना कुछ अद्भुत है ।
सुंदर भाव हैं कल्पना ही अदभुत है इस रचना की बधाई !!
विपिन जी,
कल्पना और भाव का सुन्दर संगम किया है आपने.. एक अच्छी रचना के लिये बधाई
हे विपिन ,
एक अच्छा अर्थ है. बहुत ही सुन्दर बना है.
बधाई
अवनीश तिवरी
सुन्दर अति सुन्दर..........
मुझे लगता है यह कविता ज्यादा शब्दों की वजह से मुटा गई है.
विपिन जी, हिन्द-युग्म पर आपका स्वागत है। रही बात कविता की, तो मुझे पसंद आई। सुंदर और सुस्पष्ट शब्दों का प्रयोग मन मोह गया।
शिल्प की बात करूँ तो "शब्द-शब्द मुझे प्यार करे" यह पंक्ति हर चार पंक्ति के बाद आते-आते यकायक छह पंक्ति का "गैप" ले ली। इसे देखिएगा , फिर से।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
शब्द शब्द मुझे प्यार करे
आसन्न प्रसवा नारी की प्रसव वेदना हो जायेगी
हो कर कविता पूरी मेरी इस पीडा का उपचार करे
आपका लेखन भावपूर्ण और परिपक्व है। देरी से टिप्पणी करने के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ किंतु यह मेरा ही दुर्भाग्य रहा कि इतनी अच्छी रचना इतनी देर बाद पढ सका।
*** राजीव रंजन प्रसाद
स्याही सिन्दूर बने इसका...
थोड़ा सा खटका.. फिर भी देख लीजिएगा।
अच्छी प्रेमकविता है। विशेषरूप से मंच से पढ़ी जाने योग्य। प्रवाह पर आप बहुत ज़ोर देते हैं और अच्छी बात यह है कि सटीक शब्दों का चयन आप करते हैं।
अति सुन्दर......
विपिन जी
बधाई
vipin ji, is kavita mein aapne nari shringaar ka bahut hi accha prayog kiya hai aur apne kavita ke bhav ko bhi
such mein shabad shabad hi pyara hai
aapko hardik shubhkamnaye
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)