मैं...रोज़ सपना देखता हूँ...
...कि एक पर्वत है मर्यादाओं का,
कि एक सागर है आंसुओं का;
कि एक पुल है टूटा-हुआ सा॥
मैं... रोज़ सपना देखता हूँ.....
कि एक इन्द्रधनुष है मेरे पास,
कि आकाश तुम्हारा है,
कि हम दोनो पंछी है; (पर कटे हुए-से)
मैं... रोज़ सपना देखता हूँ...
कि एक देह है मृतप्राय;
कि कुछ शब्द हैं निष्प्राण,
कि एक रिश्ता है अजनबी-सा...
मेरा सपना टूट रहा है..
आज बीत चला है...
दरवाज़े पर दस्तक देता है कल;
नए सपने लिए...
आओ हम-तुम कुछ नए सपने जियें....
कोई फर्क नही पड़ता.....
यदि आज का सपना,
बिना चीख-पुकार के ही,
दम तोड़ दे.............
निखिल आनंद गिरि
+919868062333







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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
ह्म्म्म्म्म ..... आगे ....
प्रिय निखिल
एक प्यारी सी कविता लिखी है तुमने । सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें सपने देखे हैं तुमने । सपने देखना
कभी मत छोड़ना । मेरा सपना टूट रहा है..
आज बीत चला है...
दरवाज़े पर दस्तक देता है कल;
नए सपने लिए...
आज टूट रहा है तो क्या हुआ कल फिर आएगा । एक नई सुबह लेकर । आशा की डोर कभी मत छोड़ना ।
शुभकामनाओं एवं आशीर्वाद सहित
निखिल जी
आज बीत चला है...
दरवाज़े पर दस्तक देता है कल;
नए सपने लिए...
आओ हम-तुम कुछ नए सपने जियें....
कोई फर्क नही पड़ता.....
यदि आज का सपना,
बिना चीख-पुकार के ही,
दम तोड़ दे.............
आपकी शैली और उपरोक्त पंक्तियां मुझे विषेश रूप से अच्छी लगीं
आओ हम-तुम कुछ नए सपने जियें....
कोई फर्क नही पड़ता.....
यदि आज का सपना,
बिना चीख-पुकार के ही,
दम तोड़ दे.............
वाह!! अगली कडी की प्रतीक्षा में।
*** राजीव रंजन प्रसाद
आज दोनों की दोनों कविताएँ अमृता प्रीतम की याद दिलाती हैं। सपनों की दुनिया और ज़मीनी हक़ीकत का अंतर स्पष्ट करती आपकी यह कविता काव्य-रस भी देती है।
कि एक सागर है आंसुओं का;
कि एक पुल है टूटा-हुआ सा॥
कि हम दोनो पंछी हैं
यदि आज का सपना,
बिना चीख-पुकार के ही,
दम तोड़ द
निखिल भाई,
मुझे आपकी रचना बहुत पसंद आई। बहुत सारे ख्वाब ...... बहुत सारी आशाएँ और अंत में उन्हीं सपनों के दम तोड़ने पर फर्क न पड़ने का भाव, कविता में उतार-चढाव लाता है। यही इसकी खासियत भी है।
अगले भाग के इंतजार में-
विश्व दीपक 'तन्हा'
गिरि जी,
कि एक देह है मृतप्राय;
कि कुछ शब्द हैं निष्प्राण,
कि एक रिश्ता है अजनबी-सा...
मेरा सपना टूट रहा है..
आज बीत चला है...
दरवाज़े पर दस्तक देता है कल;
नए सपने लिए...
आओ हम-तुम कुछ नए सपने जियें....
कोई फर्क नही पड़ता.....
यदि आज का सपना,
बिना चीख-पुकार के ही,
दम तोड़ दे.............
बढिया बहुत बढिया...
बहुत खूब निखिल आशावादी होना अच्छी बात है।
निखिल जी,
सपने देखना तो जरूरी है... साथ ही सपनो को साकार करना और भी ज्यादा जरूरी... सुन्दर कविता है.
कि एक इन्द्रधनुष है मेरे पास,
कि आकाश तुम्हारा है,
कि हम दोनो पंछी है; (पर कटे हुए-से)..
बहुत खूब निखिल बहुत सुंदर सपना सुंदर भाव और सुंदर लफ्जों में सजा
बधाई आप यूं ही सपने देखते रहे ...इंतज़ार रहेगा अगले सपने का :)
निखिल भाई, बहुत ही प्यारी कविता.मैं भारतवासी जी के विचारों से भी इत्तफाक रखता हूँ.
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
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