फटाफट (25 नई पोस्ट):

Thursday, October 18, 2007

प्रतिदान



धरा का रूप धरे
उजाला तुझ सूरज से पाती
तेरे बिना सजना मैं
श्याम वर्ण ही कहलाती

पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
धूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती

मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
ख़ुद पर ही इठलाती

कहाँ तलाशुं तुमको मैं प्रीतम
हर खोज एकाकी सी रह जाती
घिरी इस दुनिया के मेले में
तेरा कहीँ ठौर तो पाती

बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

20 कविताप्रेमियों का कहना है :

शोभा का कहना है कि -

रंजना जी
पुनः एक सुन्दर कविता पढ़ने को मिली । प्रेम के सूक्ष्म मनोभाव आपकी कविता में खूब सजते हैं ।
इस कविता ने महादेवी वर्मा जी की याद दिला दी ।
जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करूणा कितने संदेश
बिछ जाते राहों में
बन पराग
गाता साँसों का तार-तार
अनुराग भरा उन्माद राग
एक सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई ।

Atul Chauhan का कहना है कि -

हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!
रंजना जी,प्यार करने वालों को और क्या चाहिए। यदि साथी हाथ बढाकर थाम ले तो 'मन के तार'झंकार से भर जाते हैं। मन भावों की सुन्दर प्रस्तुती है……………………वैसे भी आपकी रचनाओं मे बडे गहरे अर्थ होतें हैं!

masoomshayer का कहना है कि -

advitiya hai sach men tumharee kavityaon ne naye star ko choo liya hai ham prashansa ke liye bhee chote pad jate hain

Anil masoomshayer

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

रंजना जी

बहुत सुन्दर रचना, मंत्रमुग्ध करने वाली, प्यार की पूरकता तलाशती मनोस्थती दर्शाती सुन्दर अभिव्यक्ति

सस्नेह
राघव

Manuj Mehta का कहना है कि -

प्रिय रंजन जी
मैं आपको इतने समय से पढ़ रहा हूँ, पर यूं लगता है की आपकी हर रचना आपकी एक नई पहचान लिए आती है.

पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
धूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती

मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
ख़ुद पर ही इठलाती


बहुत ख़ूब, बहुत अच्छी.

Manuj Mehta का कहना है कि -

प्रिय Ranjana ji
मैं आपको इतने समय से पढ़ रहा हूँ, पर यूं लगता है की आपकी हर रचना आपकी एक नई पहचान लिए आती है.

पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
धूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती

मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
ख़ुद पर ही इठलाती


बहुत ख़ूब, बहुत अच्छी.

Mohinder56 का कहना है कि -

रंजू जी,

सुन्दर रचना है जिसमें प्रीतम की महिमा का पता चलता है...सभी छंद उत्कर्ष्ट बन पडे है.

दूसरे छंद में शायद आप "न" लगाना भूल गई...

न पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन जाती."

बधाई

Sanjeet Tripathi का कहना है कि -

सुंदर कविता, दिन ब दिन आपकी लेखनी नए आयामों को छूती जा रही है, बधाई!!
जारी रखें

डाॅ रामजी गिरि का कहना है कि -

रंजना जी. आपने आदर्श प्यार की मरीचिका के पीछे भागती प्रेयसी की अवस्था का बखूबी चित्रण किया है . पर हकीकत तो हमेशा से मध्यमार्गी सामाजिक वस्तुस्थिति ही रही है. या फ़िर लैला और अनारकली सा अंत.

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

रंजना जी,

प्रेम का बडा विज्ञानिक विश्लेषण किया है रंजना जी इस बार आपने। आपकी सर नयी कविता इन दिनों नये स्वर में प्रस्तुत हो रही है, आप बधाई की पात्र हैं। कई पंक्तियाँ बहुत सुन्दर बन पडी हैं:-

तेरे बिना सजना मैं
श्याम वर्ण ही कहलाती

मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती

बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती

बहुत खूब!!!

*** राजीव रंजन प्रसाद

loke का कहना है कि -

shobhna ne bilkul sahi kaha hai
ab aapki kavita pad kar esa lagta hai ki jese ham mahadevi verma ki kavita pad rahe ho

sunder bav ke sath sunder lay or taal hai
keep it up ranju ji
mine blowing

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बहुत अच्छी बनी है .

बधाई

अवनीश एस तिवारी

Unknown का कहना है कि -

आदरणीय
रंजना जी

आपका काव्य अब काव्य नहीं रहा
लौकिक से पारलौकिक तक की युग यात्रा पर
निकले यात्रियों के जत्थे में दूर जाते हुये आपको
देखकर काव्य पर टिप्पणी करने के लिये स्वयं को
बहुत छोटा पाता हूं

किस कविता को और किस पंक्ति को
उद्धृत करूं

सादर शुभकामना

Udan Tashtari का कहना है कि -

ज्यादा नहीं बस इतना कहेंगे कि कोमल रचना है मनोभाव दर्शाती. बधाई.

शिवानी का कहना है कि -

रंजना जी , प्रेम रस में डूबी ये रचना प्रतिदान एक उत्कृष्ट रचना है ! एक एक शब्द अर्थ पूर्ण और भावपूर्ण है !
कहाँ तलाशूं तुमको मैं प्रीतम
हर खोज एकाकी सी रह जाती
घिरी इस दुनिया के मेले में
तेरा कहीं ठौर तो पाती
एक प्रेयसी की विरह वेदना को दर्शाती रचना अच्छी बन पड़ी है !सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें !

गीता पंडित का कहना है कि -

रंजना जी !

सुन्दर

बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!


बहुत खूब!!!

Anonymous का कहना है कि -

फ़िर से इतेना सुंदर कविता लिखी है आपने रंजना जी.......... आपको बहुत बहुत बधाई....... हर पंक्ति को पड़ कर लगता है जेसे लिखने से पहेले प्यार की सारी गेहेरायिया जांच ले है...... सबसे सुंदर पंग्तिया है :- पाती जो तेरे प्यार की तपिश, तो हिमखण्ड ना बन पाती...... अगर हमारे दिल को प्यार की गरमाई ना मिले तोः एक ठंडे पत्तर के तरह हमारे दिल को भारी बनाए रखता है...... हम हिमखंड की तरह एकाकी, कठोर और कुछ भी ना मेहेसुस करने वाले एक रोबोट बन जाते है....... पर मरीचिका के पीछे भागती प्रेयसी तएब तक भटकती रहेगी जब तक वह येः सचाई नही समझ जाती के मर्द से कभी भी ज्यादा उपेक्षा नही करनी चाहिए...... once Jacqueline Kennedy (wife of great president of USA who was also a womaniser) said that once u accept the fact that expecting too much from your man is futile, then life of a woman becomes easy......
Thanks for writing such a great poem so that we all were made to think the real meaning and aspirations of love....... One of ur deep poems....

Sajeev का कहना है कि -

पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
धूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती
वाह क्या बात है, रंजू जी कमाल लिखा है आपने

दिवाकर मणि का कहना है कि -

रंजना जी,
पुनः एक अच्छी रचना हेतु धन्यवाद.

"हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!"

प्रस्तुत पंक्तियों में यदि "अपने" शब्द नहीं भी रहता तो भी अभिव्यक्ति में कमी नहीं होती. कारण कि "प्रतिदान" उसकी पूर्ति कर दे रहा है.

रचना की महत्ता पर अन्य टिप्पणीकारों से मेरी सहमति है, अतः "पिष्टपेषण" नहीं करना चाहता.

सधन्यवाद,
मणि

विपुल का कहना है कि -

सूक्ष्म श्रांगारिक भावों का चित्रण कोई आपसे सीखे !
देर से आने के लिए क्षमा चाहूँगा .. ऊपर सब कुछ कहा जा चुका है कुछ शेष ही नही रहा बोलने को..
वाह क्या ख़ूब कहा है..

मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती

बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती

सुंदर रचना के लिए बधाई

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)