धरा का रूप धरे
उजाला तुझ सूरज से पाती
तेरे बिना सजना मैं
श्याम वर्ण ही कहलाती
पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
धूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती
मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
ख़ुद पर ही इठलाती
कहाँ तलाशुं तुमको मैं प्रीतम
हर खोज एकाकी सी रह जाती
घिरी इस दुनिया के मेले में
तेरा कहीँ ठौर तो पाती
बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
रंजना जी
पुनः एक सुन्दर कविता पढ़ने को मिली । प्रेम के सूक्ष्म मनोभाव आपकी कविता में खूब सजते हैं ।
इस कविता ने महादेवी वर्मा जी की याद दिला दी ।
जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करूणा कितने संदेश
बिछ जाते राहों में
बन पराग
गाता साँसों का तार-तार
अनुराग भरा उन्माद राग
एक सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई ।
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!
रंजना जी,प्यार करने वालों को और क्या चाहिए। यदि साथी हाथ बढाकर थाम ले तो 'मन के तार'झंकार से भर जाते हैं। मन भावों की सुन्दर प्रस्तुती है……………………वैसे भी आपकी रचनाओं मे बडे गहरे अर्थ होतें हैं!
advitiya hai sach men tumharee kavityaon ne naye star ko choo liya hai ham prashansa ke liye bhee chote pad jate hain
Anil masoomshayer
रंजना जी
बहुत सुन्दर रचना, मंत्रमुग्ध करने वाली, प्यार की पूरकता तलाशती मनोस्थती दर्शाती सुन्दर अभिव्यक्ति
सस्नेह
राघव
प्रिय रंजन जी
मैं आपको इतने समय से पढ़ रहा हूँ, पर यूं लगता है की आपकी हर रचना आपकी एक नई पहचान लिए आती है.
पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
धूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती
मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
ख़ुद पर ही इठलाती
बहुत ख़ूब, बहुत अच्छी.
प्रिय Ranjana ji
मैं आपको इतने समय से पढ़ रहा हूँ, पर यूं लगता है की आपकी हर रचना आपकी एक नई पहचान लिए आती है.
पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
धूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती
मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
ख़ुद पर ही इठलाती
बहुत ख़ूब, बहुत अच्छी.
रंजू जी,
सुन्दर रचना है जिसमें प्रीतम की महिमा का पता चलता है...सभी छंद उत्कर्ष्ट बन पडे है.
दूसरे छंद में शायद आप "न" लगाना भूल गई...
न पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन जाती."
बधाई
सुंदर कविता, दिन ब दिन आपकी लेखनी नए आयामों को छूती जा रही है, बधाई!!
जारी रखें
रंजना जी. आपने आदर्श प्यार की मरीचिका के पीछे भागती प्रेयसी की अवस्था का बखूबी चित्रण किया है . पर हकीकत तो हमेशा से मध्यमार्गी सामाजिक वस्तुस्थिति ही रही है. या फ़िर लैला और अनारकली सा अंत.
रंजना जी,
प्रेम का बडा विज्ञानिक विश्लेषण किया है रंजना जी इस बार आपने। आपकी सर नयी कविता इन दिनों नये स्वर में प्रस्तुत हो रही है, आप बधाई की पात्र हैं। कई पंक्तियाँ बहुत सुन्दर बन पडी हैं:-
तेरे बिना सजना मैं
श्याम वर्ण ही कहलाती
मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती
बहुत खूब!!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
shobhna ne bilkul sahi kaha hai
ab aapki kavita pad kar esa lagta hai ki jese ham mahadevi verma ki kavita pad rahe ho
sunder bav ke sath sunder lay or taal hai
keep it up ranju ji
mine blowing
बहुत अच्छी बनी है .
बधाई
अवनीश एस तिवारी
आदरणीय
रंजना जी
आपका काव्य अब काव्य नहीं रहा
लौकिक से पारलौकिक तक की युग यात्रा पर
निकले यात्रियों के जत्थे में दूर जाते हुये आपको
देखकर काव्य पर टिप्पणी करने के लिये स्वयं को
बहुत छोटा पाता हूं
किस कविता को और किस पंक्ति को
उद्धृत करूं
सादर शुभकामना
ज्यादा नहीं बस इतना कहेंगे कि कोमल रचना है मनोभाव दर्शाती. बधाई.
रंजना जी , प्रेम रस में डूबी ये रचना प्रतिदान एक उत्कृष्ट रचना है ! एक एक शब्द अर्थ पूर्ण और भावपूर्ण है !
कहाँ तलाशूं तुमको मैं प्रीतम
हर खोज एकाकी सी रह जाती
घिरी इस दुनिया के मेले में
तेरा कहीं ठौर तो पाती
एक प्रेयसी की विरह वेदना को दर्शाती रचना अच्छी बन पड़ी है !सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें !
रंजना जी !
सुन्दर
बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!
बहुत खूब!!!
फ़िर से इतेना सुंदर कविता लिखी है आपने रंजना जी.......... आपको बहुत बहुत बधाई....... हर पंक्ति को पड़ कर लगता है जेसे लिखने से पहेले प्यार की सारी गेहेरायिया जांच ले है...... सबसे सुंदर पंग्तिया है :- पाती जो तेरे प्यार की तपिश, तो हिमखण्ड ना बन पाती...... अगर हमारे दिल को प्यार की गरमाई ना मिले तोः एक ठंडे पत्तर के तरह हमारे दिल को भारी बनाए रखता है...... हम हिमखंड की तरह एकाकी, कठोर और कुछ भी ना मेहेसुस करने वाले एक रोबोट बन जाते है....... पर मरीचिका के पीछे भागती प्रेयसी तएब तक भटकती रहेगी जब तक वह येः सचाई नही समझ जाती के मर्द से कभी भी ज्यादा उपेक्षा नही करनी चाहिए...... once Jacqueline Kennedy (wife of great president of USA who was also a womaniser) said that once u accept the fact that expecting too much from your man is futile, then life of a woman becomes easy......
Thanks for writing such a great poem so that we all were made to think the real meaning and aspirations of love....... One of ur deep poems....
पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
धूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती
वाह क्या बात है, रंजू जी कमाल लिखा है आपने
रंजना जी,
पुनः एक अच्छी रचना हेतु धन्यवाद.
"हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!"
प्रस्तुत पंक्तियों में यदि "अपने" शब्द नहीं भी रहता तो भी अभिव्यक्ति में कमी नहीं होती. कारण कि "प्रतिदान" उसकी पूर्ति कर दे रहा है.
रचना की महत्ता पर अन्य टिप्पणीकारों से मेरी सहमति है, अतः "पिष्टपेषण" नहीं करना चाहता.
सधन्यवाद,
मणि
सूक्ष्म श्रांगारिक भावों का चित्रण कोई आपसे सीखे !
देर से आने के लिए क्षमा चाहूँगा .. ऊपर सब कुछ कहा जा चुका है कुछ शेष ही नही रहा बोलने को..
वाह क्या ख़ूब कहा है..
मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती
सुंदर रचना के लिए बधाई
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