अपनी मातृभाषा का सम्मान हर देश के लिये अत्यंत आवश्यक होता है. परंतु हमारे देश में आज तक हिंदी को अपना समुचित स्थान पाने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है. इसी विषय पर मैंने दो कुंडलियाँ लिखने का प्रयास किया है. आशा है कि इस विधा में मेरे इस पहले प्रयास को भी आपका स्नेह मिलेगा:
१)
हिंदी ही आवाज़ है, हर हिंदी की आज
फिर भी हिंदी बोलते, तुमको आती लाज
तुमको आती लाज, बोलते डैड पिता को
देते सबको दोष, छिपाते स्वयं खता को
मानो मत मानो इसे, कहते सच्ची बात
अपनी भाषा के बिना, सदा खाओगे मात
२)
अपनी भाषा के बिना, होता कब कल्याण
हिंदी को अपनाइये, यदि चाहो सम्मान
यदि चाहो सम्मान, पूरी दुनिया में पाना
भारत का परचम, सारे जग में फहराना
आओ प्रण ये करें, आज मिलके हम सारे
प्रगति करेगा देश, सदा हिंदी के सहारे
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
11 कविताप्रेमियों का कहना है :
अजय जी आज आपकी रचना ने वो प्रभाव नहीं छोडा जो हर बार होता है। ये मात्र काव्य-पल्लवन पर हिन्दी-दिवस के उपलक्ष्य में लिखी गई रचनाओं की आवृत्ति मात्र लगी।
हिन्दी तो अपनी प्यारी भाषा है इस में कोई शक नही है :)
पर यह कुछ अधूरी सी लगी ..वैसे पहला प्रयास है कोशिश अच्छी है आपकी
शुभकामना
रंजू
थोडी भाव संप्रेषणीयता में कमजोर अवश्य है किंतु हिन्द -युग्म के मंच पर कहली बार कुंडलियाँ ले कर कोई कलम प्रस्तुत हुई है और इसके लिये आप बधाई के पात्र हैं।
मानो मत मानो इसे, कहते सच्ची बात
अपनी भाषा के बिना, सदा खाओगे मात
प्रगति करेगा देश, सदा हिंदी के सहारे
कवि का कर्म, आपकी कलम बखूबी कर गयी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अजय जी नयी विधा को युग्म पर लाने के लिए धन्यवाद... आप जो कहना चाहते थे उसे आप कह तो पाए हैं पर तीव्रता की थोड़ी कमी लगी|
वैसे कुंडलियों के बारे मैं ज़्यादा पता तो नहीं पर मुझे लगता है की अगर अंतिम पंक्ति ज़्यादा मारक होती तो पूरी कुंडली और भी अच्छी बन पड़ती
अजय जी
अभी तक आपकी गज़लें पढ़ी हैं । यह नया प्रयोग अच्छा और प्रभावशाली लगा । कोशिश करें तो
अवश्य ही हिन्दी के प्रति रूझान हो सकता है । एक नवीन एवं सफ़ल प्रयोग के लिए बधाई ।
अजय जी,
इस बार कुछ कमी रह गई....शायद पिछ्ले कुछ समय से आप इतना बढिया लिखते रहे.. उसी का असर है जो अब तक उतरा नहीं है और यह रचना थोडी कमजोर प्रतीत हुई
हिन्द -युग्म पर पहली बार कुंडलियाँ......
एक नया प्रयोग......
अच्छा लगा ......
अजय जी
बधाई ।
अजय जी
आज जब हिन्द युग्म हिन्दी काव्य तो काव्य अपितु हिन्दी
साहित्य प्रेमी हिन्दी की मायके से प्राप्त शब्दावली पर भी प्रश्न
चिन्ह मात्र इस कारण उठाने लगे हैं कि उन्हें पसन्द नहीं है
हिन्दी साहित्य प्रेमी जानते हैं कि इस साहित्य की नानी संस्कृत
की मृत्यु मात्र इस कारण हो गयी कि इसका प्रयोग ही बन्द कर दिया गया
और आज तक कहीं कोई आवाज इसलिये नहीं कि यह कुछ लोगों की चिढ़ का
कारण थी।
ऐसे में कुण्डलियों के प्राचीन प्रयोग पर जाना साधूवाद का कारण है
शिल्प की दृष्टि से कूण्डली में जहां से प्रारम्भ करते हैं काव्य की अंतिम
पंक्ति वही होती है। मैं गलत हो सकता हूं कोई अन्य मित्र मुझे एवं प्रिय अजय जी को सुधार साकता है
अन्यथा आदरणीया शोभा जी और अन्ततोगत्वा साप्ताहिक समीक्षा तो है ही
शेष आपके प्रयास के लियए भूरि भूरि प्रसंशा
सप्रेम
अजय जी कुंडलियों का प्रयोग नया है, युग्म पर, एक और पहल की आपने, विश्वास है जल्द ही आप इस विधा में भी महारथ हासिल कर लेंगे
कुंडलिया छंद में मेरे इस पहले प्रयास पर अपने विचारों से अवगत कराने और मेरा मार्गदर्शन करने के लिये सभी मित्रों का धन्यवाद!
आदरणीय कान्त जी का मैं विशेष आभारी हूँ जिन्होंने इस छंद की एक महत्वपूर्ण शिल्पगत विशेषता की ओर मेरा ध्यान दिलाया जो न जाने कैसे मेरे ज़हन से निकल गयी थी. आगे भी मैं कुछ पुराने काव्य-रूपों में लिखने का प्रयास करता रहूँगा. आशा है कि आप सबका स्नेह यूँ ही मेरा मार्गदर्शन करता रहेगा.
पुनश्च: आभार!
अजय जी,
आपकी प्रशंसा और प्रोत्साहन इसलिए होना चाहिए , क्योंकि आपने एक नई विधा से हमारा परिचय कराया। भाव यदि कमजोर है तो कोई बात नहीं। आगे चलकर इसमें भी कोई कमी न रहेगी, ऎसा मेरा दृढ-विश्वास है।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)